सोमवार, 1 अगस्त 2011

जीवन तो अपने विवेक से जीना है


भई, तुमसे किसने कहा था !
किसने कहा था कि किस्मत से उलझो ?
बल्कि समझाया था ..
वक्त की नज़ाकत समझो !
जो होता है होने दो !
होनी को कौन टाल पाया है ?
सब प्रभु की माया है !
कुछ भी ऊल-जलूल मत बको !
देखो अपनी हद में रहो ..
पर तुम्हें तो जीवन की
पोथी को बांचना है !
ज़िंदगी के हर इम्तिहान की
कॉपी को जांचना है !
भाग्य से लङ कर गढ़ जीतना है !
अपने जीवट का जौहर दिखाना है !
नट का नाच
सीखना और सिखाना है !
जमूरा नहीं.. उस्ताद बन कर
खेल दिखाना है !
खैर..देखो अब नतीजा क्या निकलता है !
तुम्हारा माद्दा पास या फ़ेल होता है !
कब तक टिकोगे बहाव के आगे ?
डूबते हैं जो बाज़ नहीं आते !

अच्छा जाओ.. जो मन में आये करो !
अभिमन्यु की तरह चक़व्यूह से लङो !
पराक़म करो !
जिसका जो होना है सो होना है !
पर तुम्हें भी जो करना है सो करना है !
जीवन की ये कैसी विडंबना है !

पर तुम्हारा ये कहना है -
विडंबनाओं को साथ लेकर जीना है.
विसंगतियों को स्वीकार करना है..
और फिर परास्त करना है.

तो ठीक है..
अब जैसा तुम कहो.

कोई चमत्कार हो ना हो, 
मन का माना हो ना हो,
जीवन तो अपने विवेक से जीना है.

जीवन तो अपने विवेक से जीना है.


रविवार, 24 जुलाई 2011

अर्थात्



मन की बात
जब एक बार
काग़ज़ पर
उतार दी,
फिर वो बात
लिखने के साथ
पढने वाले की
भी हो गई..

सिर्फ़ अपनी
कहां रही ?





शनिवार, 9 जुलाई 2011

शायद



कौन जाने अब
किन हालात में
फिर मुलाक़ात हो ..

कोई बात हो ना हो,
मेरी दुआ हमेशा
तुम्हारे साथ हो.

तुम्हारी दुनिया
ख़ुदा की रहमत से
आबाद हो.

जिस रास्ते पर चलो
तुम्हारा हमखयाल
ज़रूर तुम्हारे साथ हो.

अकेलेपन का
कभी ना
एहसास हो.

...शायद कभी
फिर मुलाक़ात हो.



बुधवार, 1 जून 2011

तुकबंदी बनाम कविता



जो चाहा
और जो हुआ,
इन दोनों
सौतेले झमेलों में...
कितने भी हाथ-पाँव पटको
कितने भी पैंतरे बदल-बदल कर देखो
सोच-सोच कर सर दे मारो...

समझदारों !
जो चाहा
और जो हुआ
इन दोनों में तुक बैठेगी नहीं,
कितनी भी कर लो तुकबंदी !

हाँ ! अगर
जो हुआ उसे
सोच की कसौटी पर
कस कर
परखो
और कुछ कर दिखाओ
तो इंशा अल्लाह !
तुकबंदी भी होगी उम्दा,
और बनेगी ज़िंदगी कविता.

                                                                                                                                                           

रविवार, 22 मई 2011

शनिवार, 23 अप्रैल 2011


बच्चे

बड़े बहुत उलझाते हैं 
मुझको बच्चे ही भाते हैं
 
बच्चों की भोली बातों से 
सारे शिकवे मिट जाते हैं                                                                                                                                                      
जब हिम्मत टूट जाती है
बच्चे उम्मीद बंधाते हैं
 
जब बादल छा जाते हैं
बच्चे सूरज बन जाते हैं
 
 
....................................

                                                                  

जब चाँद नहीं होता नभ में                                                    
बस तारे टिमटिमाते हैं 
तब घर के अँधेरे कोनों में
दीये जगमगाते हैं                                                                                                    


........................................

अपने बच्चों को मैं क्या दूं                                                                      
उन पर मैं क्या कुर्बान करूं
वो ही मेरा मुस्तकबिल हैं 
और मेरी सारी दुनिया हैं                                                                       


 

सीखना और समझना 

जो तजुर्बा           
ना सिखा पाया                                             
वो मेरे                                                                    
छोटे से                                                              
बच्चे के                                                                                          
मासूम सवाल ने                                                                        
समझा दिया .                                                                                



मेहनत के बाज़ार में   
हुनर का सिक्का चलता है,      
जब किस्मत की बोली लगती है
हुनर का डंका बजता है .


सर्कस की बड़ी नुमाइश में
बाज़ीगर खेल दिखाता है,
अपने फ़न से हरफ़नमौला
दुनिया लूट ले जाता है .


तक़दीर किसी के बस में नहीं
पर जीना जिसको आता है ,
अपने हाथों की लकीरों को
वो अपने आप बनाता है .



शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011


जिसको जितना प्यार करो
वो उतना दुःख दे जाता है 

सच बोलो सबका कहना है
सच सहना किसको आता है 

जो शब्द नहीं कह पाते हैं 
वो चुप रहना कह जाता है 

जब सूरज भी बुझ जाता है
इक दिया उजाला लाता है

सीखो जितना भी सीख सको
अपना हुनर ही काम आता है 

जो बातें ख़ुद न सीख सके
वो वक़्त हमें सिखलाता है

 

रविवार, 17 अप्रैल 2011

चुपचाप 

आंकड़े
बहुत सारे
आपको मिल जायेंगे ,
जो बताएँगे ,
लोग कितने
दिल का धड़कना
रुक जाने से ,
वक़्त - बेवक्त मर जाते हैं .

पर कोई नहीं जान पाता
कि दिल टूटने से      
कौन कब मर जाता है .

क्योंकि
दिल के टूटने की
आवाज़ नहीं होती .
आवाज़ क्या ..
आहट तक 
नहीं होती .

चुपचाप 
दिल धड़कता रहता है .
और दुनिया का झमेला चलता रहता है .

दिल टूटने का
सिर्फ उसको पता
चलता है ,
जिसका 
दिल टूटता है .

क्योंकि
दिल के टूटने की
आवाज़ नहीं होती .
आवाज़ क्या ..
आहट तक 
नहीं होती .

चुपचाप 
दिल धड़कता रहता है .
और दुनिया का झमेला चलता रहता है .

दिल का टूटना
एक गुम चोट होती है . 
किसी को नहीं चलता पता
और तमाम दुनिया
तबाह होती है .

नब्ज़ चलती है .
उम्र दराज़ होती है .
पर ज़िन्दगी ?
ज़िन्दगी बेहोश ..
बस .. सांस लेती है .

शायद कभी 
आये कोई ,
मन की पाती
बांचे कोई ,
बात अनकही
समझ जाये कोई.
अपनाये, 
नयी ज़िन्दगी दे जाये .
अपने आंसुओं से
मुरझाई 
मन की मिटटी
सींच जाये कोई . 
 
शायद
कभी कोई आये
फिर से जीना सिखाये ,
जीने की वजह दे जाये .
बहते आंसुओं को पिरो कर
नदी की तरह
आत्मसात करना
और बहना 
सिखा जाये . 



रविवार, 3 अप्रैल 2011


आघात

सदमा पहुंचना किसे कहते हैं, मुझे नहीं पता. 
हलाल होना क्या होता है, मैंने नहीं देखा.

शायद
धीरे-धीरे
अस्तित्व में दरारें पड़ना,
सदमा कहलाता होगा .

शायद
बार-बार
भरोसे का टूटना,
हलाल होना होता होगा.

क्यों ?
इस शब्द का विशलेषण ही
एहसास की 
कमर तोड़ देता होगा .

इस सारे झमेले के बीच
भावुक मन ही
पागल करार दिया जाता होगा .

सोच का बारूद फटना ही
पागलपन होता होगा,
शायद.

नियति का संवेदनहीन
प्रहार ही
विश्वासघात का दूसरा
नाम होगा .
शायद.

ऐसी परिस्थिति में
हे ईश्वर तुमसे ..
प्रार्थना क्या करूँ ?
तुमसे क्या मांगूं ?

अभय का वरदान ?
पर मैं तो देवता नहीं हूँ.
पौराणिक चरित्र भी नहीं हूँ.
मनुष्य के
मन की मिट्टी में
संवेदना की खाद
तुम्ही ने तो डाली है .

द्वन्द अंतरतम का
मन की पीड़ा का
अंकुर बन कर फूटेगा ही.
पौधा पनपेगा ही.

पर इतना तो करो -
फल कड़वा न हो .
फूलों की खुशबू कम ना हो .
पेड़ का तना कमज़ोर ना हो.  

कोई भी
आघात
जड़ें खोद न पाये मेरी .

भले ही
आघात पर आघात हो.
भले ही
सब कुछ मेरा
टूट कर
गया हो बिखर
भीतर ही भीतर.

फिर भी
ह्रदय का स्पंदन,
मेरा पागल मन,
स्वस्थ चिंतन,
बचा रहे.
जैसा था,
वैसा ही रहे.

क्योंकि
पतझड़ का 
बार-बार आना,
मौसम का बदलना,
वार पर वार होना,
सह लेगा मेरा मन.

पर जब तक जीवन है,
जीवन का कुछ प्रयोजन है,
ह्रदय मेरा 
सूखा ठूंठ
हो कर 
न रह जाये,
संवेदनहीन 
ना हो जाये.

इतनी कृपा करना -
आत्मसम्मान मेरा
आत्मबोध की भूमि पर
अडिग रहे.
वटवृक्ष बन कर
छाया देता रहे.

मनोबल मेरा
आघात भवितव्य का 
सहे
पर अपनी ज़िद पर अड़ा रहे. 

सीधा खड़ा रहे.





फ़र्क

हमेशा ..

कुछ लोग बताएंगे हमेशा
फ़र्क है कितना
मेरे और तुम्हारे बीच में अनचीन्हा 
चटक कर दरार पड़ने जितना .

और कुछ लोग समझाएँगे हमेशा
फ़र्क पड़ता है कितना
सराहने से .. आपस में है जो समानता
चौड़ी दरार को पाटने जितना .

फ़र्क पड़ता है .

एक नज़रिया
दिलों में फ़र्क लाता है .
एक जज़्बा
दिलों का फ़र्क मिटाता है. 




बुधवार, 25 अगस्त 2010



 
जद्दोजहद

मेरी सारी
जद्दोजहद
किसी और की
जगह
लेने के लिए 
नहीं,
अपनी जगह
ख़ुद
बनाने के लिए
है.
 

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

विडंबना

आप जिनसे बहुत प्यार करते हैं .
आप जिनकी बलाएँ लेते हैं .
आप जिनका दुःख बांचना चाहते हैं .
आप जिनकी खुशी सहेजना चाहते हैं .
आप जिनके लिए सपने बुनते हैं .
आप जिनको अपना बहुत कुछ मानते हैं ..
.. आपके बच्चे
.. आपके दोस्त
.. आपके अज़ीज़ 

उनके पास ..
आपके बारे में सोचने का,
आपके जज़्बात समझने का,
आपके अनुभव से सीखने का,
आपके ख़यालात जानने का,
आपके साथ रहने का,
आपकी उदासी पढ़ने का,
आपकी बात सुनने का,
आपका हाथ पकड़ कर बैठने का
..

वक़्त ही नहीं होता.  






nupuram@gmail.com 







बुधवार, 4 अगस्त 2010










   रेस के घोड़े

   अरे छोड़िये !
   बस भी कीजिये !
   किसी के पास नहीं है .. 
   वक़्त
   इन फ़िज़ूल बातों का ! 
   ये सब रेस के घोड़े हैं !
   बेतहाशा भाग रहे हैं !
   किसे पड़ी है कि पूछे
   पड़ोस की बूढ़ी अम्मा से,
   अम्मा घुटनों का दर्द कैसा है !
   दवा तो डाक्टर देगा !
   या नहीं ?

   दुनिया में झमेले भतेरे हैं !
   और हम इकलौती जान लगे पड़े हैं !
   दूसरों के पापड़ बेलने लगे !
   तो हमारे घर में फ़ाके होंगे !

   ये सब बातें बहुत सुन लीं हमने ...
   बच्चों से खेलो.. बहुत खुश होंगे !
   बुजुर्गों से बतियाओ.. आशीर्वाद देंगे !
   खुशी और आशीर्वाद सब खेरीज हैं.. मानिए !
   करारे नोटों की ही कीमत है..जानिये !
   बीवी से पूछने बैठे कि आँख क्यूँ नम है..
   तो पहली रेस छूट जायेगी !
   दोस्तों की खोज-ख़बर लेने लगे ..
   तो तक़दीर की सीटी बज जायेगी !

   अरे छोड़िये ! ये बेकार की बातें !
   आपको एक फ़ार्मूला समझा दें !
   मिलजुल कर रहने पर मेडल नहीं मिलेंगे !
   जो सब कुछ भूल कर.. बस ! दौड़ते रहेंगे !
   वो ही घोड़े सबसे जल्दी रेस जीतेंगे !

   आप की मर्जी ! काटते रहिये फसल ..
   भलमनसी की ! अपनेपन की !
   आपसे और कुछ नहीं बनेगा !
   चाचाजी ज़रा बीमार हैं, ले आइये..
   उनके लिए बाज़ार से फल-सब्ज़ी !
   बहन ने कसम दी है, राखी बंधवाने आना है ..
   आंसू बहाते सरपट दौड़ जाइए.. ससुराल उसके !
   दोस्त ने परेशानियों से पस्त होकर याद किया है..
   हो आइये .. घंटों उसकी व्यथा सुनिए.. दिल पर हाथ रख के !

   कुछ होना-हवाना नहीं है इन कलाबाजियों से !
   कुत्ते की दुम टेढ़ी ही रही है सदियों से !
   आप क्या तीर मार लीजिएगा कसम से !
   आपसे लाख गुना हम अच्छे !
   दांये बांये बिल्कुल नहीं देखते !

   रेसकोर्स की घास के परे जो कुछ नहीं सोचेगा !
   लिख लीजिये वही घोड़ा एक दिन रेस जीतेगा !  




The Game Show

Life..
is
like a game show.

Participants don't
choose the format.
They just
participate.

They can only
plan their moves..
follow the rules..
use the props..
and gather points.

The rounds happen one after the other.
Like a ride on a roller coaster.

Your timing decides
The verdict of the dice.

Its all vibes
that tackle your mate.
And your nerves
decide your fate.

Stumble through the puzzle
With patience and grace.
Edge out the trouble
With a smile on your face.

There will be opportunities.
But also wild card entries.
So be prepared.
Don't be scared.

Have fun.
Whatever the outcome.


Don't cheat.
And don't retreat.
Unless you play.. you will not know how...
Your time starts now !









nupuram@gmail.com

रविवार, 25 जुलाई 2010

गुरु दक्षिणा



जिससे जो सीखा
उसका माना आभार


जितना हो सका
जीवन में लिया उतार



 
nupuram@gmail.com

सोमवार, 12 जुलाई 2010

    



  दादी



दादी की यादें
दादी की बातें
मन से बंधी हैं
ताबीज़ की तरह.


दादी की बोली
दादी की ठिठोली
गाँठ से बंधी है
कमाई की तरह.


दादी की गोदी
दादी की थपकी
मन को समझाती है
लोरी की तरह.


दादी की झिड़की
दादी की उंगली
रास्ता दिखाती है
ध्रुव तारे की तरह.







nupuram@gmail.com