बशर्ते प्यार ...
क्या कहा ?
बुढ़ापे में प्यार !
क्यों भैय्या ?
प्यार का
उम्र से क्या सरोकार !
कुछ रिश्ते
दिन चढ़ते ,
बनते हैं .
कुछ नाते
दिन ढलते
पार्क की बेंच पर बैठे
सूर्यास्त देखते देखते
जुड़ते हैं .
हाँ ये सच है ,
हर उम्र का
अंदाज़ जुदा होता है ;
पर फ़लसफ़ा वही
रहता है .
यानी
कोई फ़लसफ़ा नहीं
होता है .
तट से बंध कर नहीं,
नदी का पानी
ख़ुद-ब-ख़ुद
रवां होता है .
होता है
पानी वही,
पर कहलाता है कभी
पहाड़ी झरना ..
और इसी पानी का
एक दिन
किनारों ने देखा
चुपचाप बहना .
दोनों को देखना
लगता है भला .
अहम है पानी का साफ़ होना,
फिर क्या नदी .. क्या झरना .
क्यों रहे सूना, मन का कोई कोना .
सहज है हर उम्र में, प्यार होना .