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बुधवार, 25 अगस्त 2010



 
जद्दोजहद

मेरी सारी
जद्दोजहद
किसी और की
जगह
लेने के लिए 
नहीं,
अपनी जगह
ख़ुद
बनाने के लिए
है.
 

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

विडंबना

आप जिनसे बहुत प्यार करते हैं .
आप जिनकी बलाएँ लेते हैं .
आप जिनका दुःख बांचना चाहते हैं .
आप जिनकी खुशी सहेजना चाहते हैं .
आप जिनके लिए सपने बुनते हैं .
आप जिनको अपना बहुत कुछ मानते हैं ..
.. आपके बच्चे
.. आपके दोस्त
.. आपके अज़ीज़ 

उनके पास ..
आपके बारे में सोचने का,
आपके जज़्बात समझने का,
आपके अनुभव से सीखने का,
आपके ख़यालात जानने का,
आपके साथ रहने का,
आपकी उदासी पढ़ने का,
आपकी बात सुनने का,
आपका हाथ पकड़ कर बैठने का
..

वक़्त ही नहीं होता.  






nupuram@gmail.com 







रविवार, 25 जुलाई 2010

गुरु दक्षिणा



जिससे जो सीखा
उसका माना आभार


जितना हो सका
जीवन में लिया उतार



 
nupuram@gmail.com

सोमवार, 12 जुलाई 2010

    



  दादी



दादी की यादें
दादी की बातें
मन से बंधी हैं
ताबीज़ की तरह.


दादी की बोली
दादी की ठिठोली
गाँठ से बंधी है
कमाई की तरह.


दादी की गोदी
दादी की थपकी
मन को समझाती है
लोरी की तरह.


दादी की झिड़की
दादी की उंगली
रास्ता दिखाती है
ध्रुव तारे की तरह.







nupuram@gmail.com

सोमवार, 5 जुलाई 2010

मुस्तकबिल

जिंदगी में
हमेशा
दो विकल्प होंगे
तुम्हारे सामने.

एक होगा
आसान,
जाना - पहचाना ..
सब कुछ वैसा ही होगा,
जैसा तुम चाहोगे.
पर शायद तुम समझ ही नहीं पाओगे
कि तुम आख़िर चाहते क्या हो  ..

दूसरा विकल्प होगा
बिल्कुल मुश्किल,
अपरिचित,
अच्छी - बुरी संभावनाओं की
हाट लगाये बाट जोहता.
ना जाने जीवन की नैया
किस ठौर पहुंचाएगा .. 
पर तय है इतना,
तुझे ख़ुद से वाक़िफ़ ज़रूर कराएगा.
तू ख़ुद को जान पायेगा,
प्यार कर पायेगा.

चुनो  !
और अपना मुस्तकबिल
ख़ुद तय करो !






noopuram

रविवार, 4 जुलाई 2010

असंभव

कैसे ?

पत्थरों के बीच
कोपल फूटती है ?

दीवार की दरार के
बीचों - बीच
कोमल पौधा
पनपता है ?

हवा की थपकी से
हौले-हौले हिलते हुए
बोध कराता  है,

असंभव कुछ भी नहीं.





noopuram

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

रिश्ते


देखते - देखते
ना जाने कब
सारे फ़र्नीचर पर 
धूल की तह 
जम गई.

आँख की नमी
बर्फ़ हो गयी.

धमनियों में
खून की
रवानी
थम गई.

बालकनी में
फूली बेल
मुरझा गई.

बरनी के अचार में
फफूंद लग गई.

हंसती - गुनगुनाती
चारदीवारी पर
चुप्पी छा गई.

दोपहर में दो पल
झपकी-सी आ गई थी ..
बस इतने में ही
बदल गया सब कुछ ?

शाम हो चली
ठंडी हवा बह रही..
ये सब सोच कर जी
बेहद घबराता है.

पर जो हो ही गया
उसे भुला
नए सिरे से
संसार संवारना
मुझे
आता है.

चोट खाकर संभलना,
टूटी माला के मोती पिरोना,
नए बटन टांकना,
फटी जेबें सिलना,
हर हफ्ते जाले उतारना,
घर का कोना कोना
साफ़ रखना,
फटे दूध का 
छेना बनाना,
फ्यूज़ ठीक करना,
छोटी - मोटी मरम्मत करना ..
सब आता है
मुझे.

अब वो बात नहीं रही,
पर कोई बात नहीं.

जो भी बचा है उसे
बड़े ठाठ से, 
लगा कर कलेजे से,
जीना आता है मुझे.  








noopuram
कुल जमा पाई


पुरानी फोटो
पुरानी डायरीयों  
पुरानी चिट्ठियों
पुरानी स्मृतियों
पुरानी सारी बातों को,

जोड़ कर,
घटा कर,
हिसाब लगाया है ...

अतीत का बड़प्पन
भविष्य का बोध
कुल जमा पाया है.

जो हासिल हुआ है,
माथे से लगाया है.  






noopur bole

बुधवार, 30 जून 2010

ख़बर

हाँ.

तुम्हारा
ईमेल मिला.
तुम्हारा
ख़त मिला.
फ़ोन पर
झटपट
बात भी हुई.
इक्का-दुक्का
मुलाक़ात भी हुई.

पर
तुम्हारी
कोई
ख़बर नहीं मिली. 



nupuram@gmail.com

मंगलवार, 9 मार्च 2010

सौ रुपये का एक नोट


एक दिन
तुम्हें देखा था
चुपचाप अपना
काम करते
लगन से ..


और बहुत अच्छा लगा था.


तुम्हारी छोटी-छोटी बातों से
निश्छल चुहलबाज़ियों से
एक अनबूझा
नाता जुड़ गया था.


फिर एक दिन
तुमने पूछा था -
मुझे अपना रास्ता
चुनना है ..
या तो हवा का झोंका
बन कर
खुले आसमान में
उड़ना है,
या फिर
दरख़्त बन कर
तेज़ हवाओं से
जूझना है.
मुझे पता है आप
ये नहीं बताएंगी
कि क्या करना है,
पर मुझे आपसे सुनना है 
कि आपको क्या लगता है ?
हवा से बातें करना
और हवा के साथ बहना,
इन दोनों के
मायने हैं क्या ?
मेरे लिए ज़रूरी है जानना 
कि मुझे रास आएगा 
कौनसा रास्ता ?


जवाब तो मुझे भी नहीं था पता,
और तुमने ये प्रश्न पूछा भी नहीं था.
मुझे क्या आता था तुम्हें समझाना ?
बस मुझे तुम पर था इतना भरोसा
और मन था कहता ..
पच्छिमी और पुरबिया हवाओं का
लेखा-जोखा रखना
बहुतों को आता होगा,
पर तुम्हें जो ईश्वर ने हुनर है दिया,
वही तुम्हारी तदबीर और तक़दीर बनेगा.


मन जो कहता था कह दिया, 
और तुमने भी समझ लिया.
अपनी खूबी पर भरोसा किया,
और अपना फैसला खुद किया. 
पंछी को सबसे अच्छी तरह
आता है उड़ना
और तुमको था पसंद हमेशा,
अपनी आवाज़ से
बाज़ीगर का खेल रचाना,
बातें करना,
सबको हंसाना.


फिर एक दिन ऐसा भी आया
मेहनत के बल पर तुमने
अपना छोटा-सा मक़ाम बनाया.


.. अच्छा लगता है जब
काम में बेहद मसरूफ़
तुम्हारे पास वक़्त ही नहीं होता
किसी और बात के लिए.
तुम्हारी ज़िद है बस..
दिन रात
सीखना और.. सीखना.


.. अच्छा लगता है.


और फिर एक दिन तुम्हें
सामने खड़ा पाया.
क्या दूं और क्या कहूँ तुमसे
कुछ भी समझ ना आया.
इतने में तुमने हाथ में
एक सौ का नोट थमाया
और बस इतना बताया ..
नए काम की पहली तनख्वाह से
आपके लिए ..
आपके लिए और भैय्या - भाभी के लिए ..
आशीर्वाद दीजिये.


इतना सब करना 
तुम्हें याद रहा !
और तो किसी ने कभी
ऐसा नहीं किया !
तुमने ये सब कैसे सोचा ?


सबको नहीं आता,
स्नेह और आशीष का
मान रखना.
तुम सदा ऐसे ही रहना.
मन जो माने वही करना.  
मेहनत सतत करते रहना.
और सीधी राह चलना. 


सोच कर जाने क्या
तुमने ऐसा किया ..
तुम्हारी भावना ने बाला
मंदिर के आले में दिया.


जब जब मन को
लगेगी ठेस,
जब जब स्वाभिमान पर
होगी चोट,


बहुत काम आएगा
सौ रुपये का एक नोट.






noopubole.blogspot.com

सोमवार, 8 मार्च 2010

सुनो


चलते रहो.


टूटी-फूटी सड़क,
धूल  भरी पगडंडी,
एक-एक कर
पार करते रहो.


एक ना एक दिन
वो रास्ता भी आयेगा,
जहां हर तरफ़ होगी
हरियाली
और फूल ही फूल.

सोमवार, 1 मार्च 2010

संभावना 

मन की मिट्टी को
सूखने मत देना .
बंजर भूमि पर
कुछ नहीं उगता .

सींचते रहना
मन की मिट्टी को
धीरे - धीरे 
आंसुओं से,
ओस की बूँद जैसे
पावन विश्वास से .

आँख जब नम होगी,
किसी के मन की
पीड़ा समझेगी ,
तब ही 
भावुक मन की
उर्वर भूमी से  
फूटेगा अंकुर.

अंततः
फूल 
खिलें ना खिलें,
बड़ा होगा
नन्हा पौधा,
फूल खिलने की
संभावना लिए .









 

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

धुकधुकी

चलो हाथ पकड़ो !
दोनों मिल कर,
फिरकी लेते हैं
तेज़ी से !
.. लट्टू की तरह !
.. पृथ्वी की तरह !

देखें ..
चारों तरफ़ घूमती दुनिया 
हमसे कितनी  तेज़ 
चक्कर लगाती है !
या फिर यूँ ही इतराती है !
ज़िन्दगी जो रोज़ हमें नचाती है !
हमारे साथ चकराती  
कैसी नज़र आती है !

छूट ना जाये !
कस कर पकड़ना हाथ !
हाँ ! ये हुई ना कुछ बात !
एक-दूसरे के भरोसे,
एक-दूजे के साथ,
कुछ करने की
और ही है बात !

पैर धरती पर जमा कर ..
जैसे मथनी चला कर ..
जीवन की धुरी पर थिरक कर,
हर श्वास पर जप कर,
जिजीविषा का गीत ..
चख लें
चिंतन के मंथन का
नवनीत !

धिनक धिनक धिन ..
धिनक धिनक धिन ..
जी में एक धुन
ले रही है फिरकी..
कर रही है ठिठोली  ..
कहो तो सुनाऊं  !

खुशी भी
जुगनू की रोशनी सी
आँख-मिचोली है .
एक पल दीये सी टिमटिमाती है
और पलक झपकते गुम भी हो जाती है !
यही तो जीवन की अठखेली है !
कभी ना बूझी जाये वो पहेली है !

पर सुनो !
बूझ कर भी क्या होगा ?
जो होना है वही होगा !
हमारे साथ हमारा भवितव्य चलेगा .

बहरहाल इस पल का सच यही है
कि हमारे साथ ज़िंदगी भी 
चक्रम हो रही है !
हमारे कलेजे की
धुकधुकी
तेज़ हो रही है !
और कह रही है -
इस पल का हासिल यही है
कि लकीरें
तेरी-मेरी हथेली की
आपस में जुड़ रही हैं, 
मैं तेरी
और तू मेरी
सहेली है .








  

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

रंगरेज़

तुम बातों के रंगरेज़ हो .
जिस रंग में चाहो ,
रंग दो , 
अपनी बातों को .

रंग फीका ना हो .
चोखा हो ,
चटकीला हो ,
पर पक्का हो !

जब चढ़े तो
मन में तरंग हो !
पग चंग, मृदंग, पतंग हो !

जब रचे तो
मेहंदी, हल्दी ..
रोली, ठिठोली ..
टेसू, गुलमोहर  ..
फागुन  की फुहार  ..
इन्द्रधनुष  हो !

तुम बातों के रंगरेज़ हो .
ऐसे रंग में रंग दो
अपनी बातों को ,
मानो  हर  सोच
एक  छंद हो .

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

बशर्ते प्यार  ...

क्या कहा ?
बुढ़ापे में प्यार ! 
क्यों भैय्या ?
प्यार का
उम्र से क्या सरोकार !
कुछ  रिश्ते 
दिन चढ़ते ,
बनते हैं . 
कुछ नाते
दिन ढलते
पार्क की बेंच पर बैठे
सूर्यास्त देखते देखते
जुड़ते हैं .

हाँ ये सच है ,
हर उम्र का
अंदाज़ जुदा होता है ;
पर फ़लसफ़ा वही 
रहता है .
यानी
कोई फ़लसफ़ा नहीं 
होता है .
तट से बंध कर नहीं,
नदी का पानी 
ख़ुद-ब-ख़ुद
रवां होता है .

होता है 
पानी वही,
पर कहलाता है कभी
पहाड़ी झरना ..
और इसी पानी का
एक दिन
किनारों ने देखा
चुपचाप बहना .

दोनों को देखना
लगता है भला .

अहम है पानी का साफ़ होना,
फिर क्या नदी .. क्या झरना .
क्यों रहे सूना, मन का कोई कोना .
सहज है हर उम्र में, प्यार होना .




अभी

बस देर मत करो . 
जो करना है -
कर डालो,
अभी .

बस देर मत करो . 
जो कहना है -
कह डालो,
अभी .

अभी से अच्छा वक़्त 
फिर नहीं आएगा .
जो देना है - समय
इस दम दे कर जायेगा .

बस देर मत करो .

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

दृष्टिकोण

ज़रूरी नहीं
कि
हर सवाल का
जवाब मिलेगा .

ना सही .


पर ढूँढ़ते ढूँढ़ते
नया कोई
रास्ता
मिलेगा .

ज़रूर.