समय जो बीत गया
उसे अलविदा ।
जैसा भी बीता,
बीत गया ।
यादें और हिदायतें
छोङ गया ।
वक्त का काफ़िला
आगे बढ़ गया ।
बदल कर चोला
फिर लौटा,
गाता-गुनगुनाता
हाथ लिए इकतारा ।
आने वाले समय
स्वागत है तुम्हारा ।
खोलो अपना पिटारा !
शुरु करो खेल अपना !
हमारी शुभकामना !
सिर्फ़ ख़बर मत बनना !
सबके दिलों में बसना !
नमस्ते namaste
शब्दों में बुने भाव भले लगते हैं । स्याही में घुले संकल्प बल देते हैं ।
मंगलवार, 31 दिसंबर 2024
अलविदा, फिर आना ..
शनिवार, 7 दिसंबर 2024
तासीर
हमारी समझ के बीच
ऊँचे पहाङ हैं..
समझना मुश्किल है
उस पार की समझ ।
उस तरफ़ कितनी
कङी धूप है,
कितनी छाँव है घनी ।
बंजर है भूमि,
या है हरियाली ।
कोई नदी
है भी या नहीं ।
फसल कौनसी
उगाई जाती,
कैसी होती है
रहने की झोंपङी ।
बच्चे कौन से
खेलते हैं खेल,
बगीचों में अक्सर
खिलते हैं कौनसे फूल ..
पर कभी-कभी
पवन बहती है जब..
लाती है अपने साथ
सुगंध की सौगात..
और कभी-कभी
हवाओं में तैरती
किसी के गाने की
सोज़ भरी आवाज़ ।
उस ओर जाए बिना
हम जानते हैं उन्हें ।
देखने और छूने की
कोई ज़रुरत नहीं ।
किसी की पहचान
होती है उसकी सुगंध,
कह देते हैं सब कुछ
उसके गाने के सुर ।
सोमवार, 2 दिसंबर 2024
भावुक मन, भावमय रहना ।
भावुक मन,
भावमय रहना ।
मर्म समझ
अपना मत देना ।
दुखती रग पर
संभल-संभल कर
शब्दों के फाहे रखना ।
अव्यक्त व्यथा की
थाह पा कर,
मौन से मान रखना ।
क्लांत पथिक की
कठिन राह पर
शीतल जल कूप बनना ।
अश्रु जल का खारापन
अंजुरी में भर कर,
गंगाजल सम पान करना ।
कांटों भरी
जीवन बगिया में
गुलाब की सुगंध बन बसना ।
सबके मन पर भार बहुत
तुम भाव गहन कर
मन-भुवन, भारहीन कर देना ।