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रविवार, 19 जनवरी 2025

चाँद क्यों लागे फीका ?

 

कुछ फीका

कुछ हकबकाया सा

मुँह लटकाए 

बङी उहापोह में

सकुचाता सा

निकला चाँद ।


आंखों में लाल डोरे

धुंआ- धुंआ रात में

हैरान देख हर जगह

ड्योढ़ी,छत,झरोखों में

लिए पूजा का थाल

निर्जल व्रत-उपवासी 

माँ ओढ़े ओढ़नी 

लगा कर टकटकी

करती इंतज़ार..

कब आएगा चाँद ..


धन्य इस माँ की निष्ठा

और व्रत संकल्प  !

बच्चे रहें सलामत..

इस एक आस में 

सहती हैं कितना कष्ट !


बच्चों तुम भी ज़रा 

कुछ कष्ट उठाओ !

मटमैले चाँद को

तनिक चमकाओ !

हवा में घुले ज़हर को

कम कर के दिखाओ!

उजला-सा चाँद बताशा

माँ के लिए उगाओ !

चाँद को तनिक हँसाओ !

मुँह मीठा करवाओ !

माँ को शीश नवाओ !


मंगलवार, 14 जनवरी 2025

लो उङने लगी पतंग !


दुकान में टंगी थी

दुछत्ती में पङी थी

पतंग रंग-बिरंगी

बङे आराम से थी !


जब आई मकर संक्रांति

सूर्य ने करवट बदली

पवन की चाल तिरछी

पतंग की पलटी नियति !


दुकान खंगाली गई

दुछत्ती झाङी गई

पतंग बांधी गई

चरखी संभाली गई


ग्राहकों की कतार लगी

भावतोल करने लगी

कांप,सद्दा, जुगाङी गई

पतंगों की पूछ होने लगी


कोहरे से ढकी सुबह हुई 

धुंध छँटी जब धूप खिली

नीली चुनरी पर बूटियों सी

पतंगें नभ पर छाने लगीं


छतों पर टोलियाँ आ जमीं

तिल-गुङ गजक मूँगफली 

केतलियाँ गर्म चाय की

बल्लियों उछलते जोश की


पतंग जब ऊँची उङने लगी

आवाज़ें पीछे छूटने लगीं

चीज़ें छोटी दिखने लगीं

धूप सेंकती पतंग मगन हुई 


जब सूरज से लगन लगी

तब कोई पतंग कट गई 

कोई पताका सी फहराई

कोई खेल में अव्वल आई 


फसल पकी खुशियाँ लाई

जेबों में खनकी कमाई

दुनिया भर से पेच लङाती

पतंगों ने भी मौज मनाई !


मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

अलविदा, फिर आना ..


समय जो बीत गया

उसे अलविदा ।

जैसा भी बीता,

बीत गया ।

यादें और हिदायतें 

छोङ गया ।

वक्त का काफ़िला 

आगे बढ़ गया ।

बदल कर चोला

फिर लौटा,

गाता-गुनगुनाता 

हाथ लिए इकतारा ।

आने वाले समय

स्वागत है तुम्हारा ।

खोलो अपना पिटारा !

शुरु करो खेल अपना !

हमारी शुभकामना !

सिर्फ़ ख़बर मत बनना !

सबके दिलों में बसना !



शनिवार, 7 दिसंबर 2024

तासीर


हमारी समझ के बीच

ऊँचे पहाङ हैं..

समझना मुश्किल है

उस पार की समझ ।

उस तरफ़ कितनी

कङी धूप है,

कितनी छाँव है घनी ।

बंजर है भूमि,

या है हरियाली ।

कोई नदी

है भी या नहीं । 

फसल कौनसी

उगाई जाती,

कैसी होती है 

रहने की झोंपङी ।

बच्चे कौन से 

खेलते हैं खेल,

बगीचों में अक्सर

खिलते हैं कौनसे फूल ..

पर कभी-कभी 

पवन बहती है जब..

लाती है अपने साथ

सुगंध की सौगात..

और कभी-कभी

हवाओं में तैरती

किसी के गाने की 

सोज़ भरी आवाज़ ।

उस ओर जाए बिना

हम जानते हैं उन्हें ।

देखने और छूने की 

कोई ज़रुरत नहीं ।

किसी की पहचान

होती है उसकी सुगंध, 

कह देते हैं सब कुछ

उसके गाने के सुर ।




सोमवार, 2 दिसंबर 2024

भावुक मन, भावमय रहना ।



भावुक मन, 

भावमय रहना ।

मर्म समझ

अपना मत देना ।


दुखती रग पर

संभल-संभल कर

शब्दों के फाहे रखना ।


अव्यक्त व्यथा की

थाह पा कर,

मौन से मान रखना ।


क्लांत पथिक की

कठिन राह पर

शीतल जल कूप बनना ।


अश्रु जल का खारापन 

अंजुरी में भर कर,

गंगाजल सम पान करना ।


कांटों भरी 

जीवन बगिया में 

गुलाब की सुगंध बन बसना । 


सबके मन पर भार बहुत 

तुम भाव गहन कर

मन-भुवन, भारहीन कर देना । 


बुधवार, 20 नवंबर 2024

वोट डालें महानुभाव !


हे लोकतंत्र के उपासक !

वोट नहीं डाला ?

क्यों नहीं डाला ??


तुम कहते हो,

नकली है मतदान 

चुनाव में हेरफेर है !


मित्र, हेरफेर है अगर,

तो होना चाहिए सतर्क 

और भी अधिक !


वोट का अपने

करो सदुपयोग,

मत जाने दो व्यर्थ !


सुनो श्रीमान !

वोट का अपने

रखो मान !


राजनीति के उलटफेर

होते हैं सर्वत्र

क्या देश क्या घर !


घर छोङ देते हो क्या ?

भाग्य भरोसे ?

यदि नहीं ..तो देव जागो !


चेतना के कपाट खोलो !

अकर्मण्यता छोङो !

अवसरवादी ही बन लो !


हे कुंभकर्ण ! आंखें खोलो !

वोट देकर भविष्य चुनो !

पूरे हक़ से हालात बदलो !