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शनिवार, 19 अप्रैल 2025

धरोहर


अचल रहा है जो
शताब्दियों तक,
मौन साक्षी रहा है,
परिवर्तन के बीच,
प्रतिघात में अविचल,
अडिग खङा रहा है,
सुनाने युगों का वृतांत,
साक्षात प्रमाण जो
अब तक बचा है..
वह प्राचीन स्थापत्य, 
कला और परंपरा,
संस्कृति और दर्शन,
वृक्ष और नदियाँ,
भाषा और बोलियाँ..
जो अब तक टिका है,
उसके पास अब भी
कहने और देने को
बहुत कुछ शेष है ..
हमारी धरोहर है ।
बूँद-बूँद घट में संचित
मिट्टी में अमिट छाप
जिसकी, चेतना में व्याप्त 
विचारों की अविरल धारा
सींचती रहे मानस धरा~~
अतऐव संजो कर रखनी है 
अपनी यह अकूत संपदा,
घटानी नहीं, जोङनी है ।
शाश्वत मूल्यों से गढ़े शिल्प,
हमें धारण करने हैं सहज
सभ्यता के शिलालेख ।

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शिल्प छवि साभार : श्री रंगनाथ मंदिर, वृंदावन ।

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

फूल रहा अमलतास



रास्तों पर आसपास 
फूलने लगे हैं अमलतास ।
रास्ते हो जाते हैं आसान।
देख कर सुनहरी झालर ।
पैदल चलने वाले लोग
पसीना पोंछते एक ओर
ठहर कर ढूँढते हैं जब छाँव,
हिला कर हाथ बुलाता है पास
झूमर जैसा अमलतास !
उतर आता है ज़मीं पर 
उस पल स्वर्ग से नंदनवन !
तपती धूप का चंदन
सुनहरा अमलतास !
दिलाता याद, जगाता आस !
अभी तो है दूर बहुत मुकाम
पर मुश्किल रास्तों की राहत
फिर मिलेगा झूमता अमलतास !