माँ तुम्हारा आगमन जान
जगत हुआ दैदीप्यमान !
दीप हुए प्रज्ज्वलित स्वत:
तुम्हारी कृपा की ऊष्मा पाकर
सजग हुआ समस्त भूतल ..
पुष्प पल्लव प्रफुल्ल सहज
स्वागत में पंक्तिबद्ध खिल कर,
अर्पित करते सुगंधित रंग प्रसंग,
सुवासित बयार का नमस्कार
जगत जननी माँ दुर्गा को हो स्वीकार।
दूर करो माँ अंतर का अंधकार
शुद्ध अंत:करण से कर सकूँ नमन ।
तेज से तुम्हारे नष्ट हों मनोविकार,
आलोकित भुवन में खुलें मन के द्वार
चतुर्दिक हो नवीन ऊर्जा का संचार !
करुणामयी माँ ऐसा देना आशीर्वाद
ह्रदय घट में भर देना संवेदना अपार ।
भोर का गान करता माँ का आह्वान,
सुप्त स्वर जागे हुआ नभ गुंजायमान ।
ढाक की गर्जना के मध्य हो स्थापन
माँ मन में हमारे विराजें तुम्हारे चरण ।
चेतावनी देती तुम्हारी दृष्टि भेदे तम
चित्त में छवि तुम्हारी जगमगाए जगदंब ।
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