कहानी है ये उन दिनों की
कहलाती जो शारदीय नवरात्रि
जब पीहर आती हैं भगवती
पाठशाला की बज उठी घंटी
भागी-दौङी बच्चों की टोली
बस्ता सँभालती कक्षा पहुँची
जब आई भीतर टीचर दीदी
समवेत स्वर में दी गई सलामी
आते ही मुङ कर चाॅक उठाई
ब्लैक बोर्ड पर इक छवि बनाई
विशाल शंख-सी आँखों वाली
देवी माँ जिनकी सिंह सवारी
एक स्वर में चहक उठी फुलवारी
जय माता की बोली कक्षा सारी
बारी-बारी से सबने कथा सुनाई
आखिर में प्रश्नों की बारी आई!
महिषासुरमर्दिनी देवी माँ कहलाईं
क्यों कथा अब भी जाती दोहराई
अब भी महिषासुर है क्या दीदी ?
उत्तर में दीदी बोली बूझो पहेली !
सोच कर बताओ कौनसी बुराई
तुमको लगती महिषासुर जैसी ?
क्या सब बच्चे कर पाते पढाई ?
क्या सभी जगहों में है सफ़ाई ?
महिषासुर माने कोई भी बुराई
बाढ़, अकाल, डर, बेइमानी..
मैदान में जो डट कर करे लङाई
उसकी रक्षा करने आती है माई
बच्चों के मन में दीदी ने की गुङाई
और सोच का इक बीज बो गई
बच्चे बने माँ की सेना के सिपाही
नवदुर्गा कथा अब समझ में आई
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं