रात्रि का निविङ अंधकार
उस पर अमावस की रात
साधक हुए ध्यान में मग्न
शेष सबके ह्रदय थे खिन्न
ऐसे में एक मिट्टी का दिया
जिसके तले रहता अंधेरा
उसने ही बीङा उठा लिया
अंधियारी से लोहा लेने का
रात भर पहरा देता रहता
जागते रहो पुकारता जाता
घोर निशा में अलख जगाता
महीन लौ से मशाल जलाता
पहले साहस की बाती बटता
गाढ़े स्नेहिल अभ्यंग में पगता
चिंतन की अडिग लौ बालता
गहन तम में निर्भय टिमटिमाता
सामर्थ्यवान जब हार मान लेता
कौशल तज हथियार डाल देता
तब धनुष तान श्री राम बन जाता
छोटा-सा निरुपाय मिट्टी का दिया
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोेमवार 04 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंरचना को पढ़ने और आज के अंक में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार, दिग्विजय जी। सभी लिंक पढ़े। त्यौहारों और मनोभावों की रौनक इस अंक में है।
हटाएंNoopur ati Sundar !!! The way described you described the diya and it has enlightened the readers. You write in such simple words yet the it touches one’s heart ❤️. Love reading all your poems. Hope you keep writing and make your readers enjoy your blogs. Thank You 🙏 Kavita Sinha
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, ओंकार जी।
हटाएंबहुत सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, दिलीप जी। बहुत दिनों में आपका आना हुआ। नमस्ते।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअनाम पाठक का हार्दिक आभार। नमस्ते।
हटाएंसुन्दर |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, जोशी जी।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसामर्थ्यवान जब हार मान लेता
जवाब देंहटाएंकौशल तज हथियार डाल देता
तब धनुष तान श्री राम बन जाता
छोटा-सा निरुपाय मिट्टी का दिया
सामर्थ्यवान तो अपने स्वार्थ में हाथ हिलाते हैं सर्वकल्याण की भावना तो मिट्टी और मिट्टी से जुडऩे वालों में होती है...और माटी के क्रंदन को श्रीराम, श्रीकृष्ण भी अनसुना नहीं करते ।
लाजवाब सृजन ।
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