गुरुवार, 14 नवंबर 2024

बचपन


बचपन याद आता है बहुत 

जब जीवन था सहज-सरल ।

खेलते-कूदते, लङते-झगङते 

पर छोङते नहीं थे कभी हाथ ।


कङी धूप में खेलना दिन-रात 

या पानी छपछपाना बेहिसाब ।

और छोङना काग़ज की नाव

सवार कर कल्पना का संसार ।


पास थी दुनिया भर की दौलत

माचिस की डिबिया,पत्थर गोल,

कंचे, पंख, चवन्नी, डाक टिकट,

कलर, सुगंधित रबर, स्टिकर ।


खाते-खेलते,पङते बीमार,मगर

फिर भी हमेशा रहते थे बेफ़िकर ।

डाँट-फटकार, तकरार सब भूल

माँ की गोद में सोते बेसुध होकर ।



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