रविवार, 14 सितंबर 2025

हिंदी हम सबको भाती है


हिंदी अपनी-सी लगती है ।

सहज समझ आ जाती है ।

भाषा यह सबकी चहेती है ।

मिसरी की मीठी डली सी है

हर भाषा में घुल जाती है ..

हर भाषा को अपनाती है ।

हर प्रांत में बोली जाती है ।

विश्व भर में सीखी जाती है ।


जब प्रभुत्व की बारी आती है,

विदेशी भाषा चुनी जाती है ।

जिसका रुआब तगङा है !

हर क्षेत्र में डंका बजता है !

ऐसा फ़र्क आदमी करता है ।

भाषा के बाज़ लङाता है ।

लट्ठ की तरह चलाता है ।

भाषा से क्या कोई नाता है ?


भाषा तो बस भाषा ही है ।

बात कहती और सुनती है ।

वर्षा ऋतु की हरियाली है ।

स्वत: उगती, छा जाती है ।

नदी की अविरल धारा है ।

ख़ुद अपनी राह बनाती है ।

भाषा का अपना नज़रिया है ।

भाषा संस्कार वाहिनी है ।


हिंदी का अपना सलीका है ।

बोलियों का विशाल कुनबा है ।

कई भाषाओं से गहरा रिश्ता है ।

हिंदी का स्वभाव ही ऐसा है ।

हिंदी हर साँचे में ढल जाती है ..

हैदराबादी या मुंबइया हिंदी है !

कोस-कोस लहजा बदलती जाती है,

हिंदी हमारी संस्कृति की पहचान है ।



चित्र फ़्रीपिक से साभार 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ अपने मन की भी कहिए