हिंदी अपनी-सी लगती है ।
सहज समझ आ जाती है ।
भाषा यह सबकी चहेती है ।
मिसरी की मीठी डली सी है
हर भाषा में घुल जाती है ..
हर भाषा को अपनाती है ।
हर प्रांत में बोली जाती है ।
विश्व भर में सीखी जाती है ।
जब प्रभुत्व की बारी आती है,
विदेशी भाषा चुनी जाती है ।
जिसका रुआब तगङा है !
हर क्षेत्र में डंका बजता है !
ऐसा फ़र्क आदमी करता है ।
भाषा के बाज़ लङाता है ।
लट्ठ की तरह चलाता है ।
भाषा से क्या कोई नाता है ?
भाषा तो बस भाषा ही है ।
बात कहती और सुनती है ।
वर्षा ऋतु की हरियाली है ।
स्वत: उगती, छा जाती है ।
नदी की अविरल धारा है ।
ख़ुद अपनी राह बनाती है ।
भाषा का अपना नज़रिया है ।
भाषा संस्कार वाहिनी है ।
हिंदी का अपना सलीका है ।
बोलियों का विशाल कुनबा है ।
कई भाषाओं से गहरा रिश्ता है ।
हिंदी का स्वभाव ही ऐसा है ।
हिंदी हर साँचे में ढल जाती है ..
हैदराबादी या मुंबइया हिंदी है !
कोस-कोस लहजा बदलती जाती है,
हिंदी हमारी संस्कृति की पहचान है ।
चित्र फ़्रीपिक से साभार
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