हिंदी अपनी-सी लगती है ।
सहज समझ आ जाती है ।
भाषा यह सबकी चहेती है ।
मिसरी की मीठी डली सी है
हर भाषा में घुल जाती है ..
हर भाषा को अपनाती है ।
हर प्रांत में बोली जाती है ।
विश्व भर में सीखी जाती है ।
जब प्रभुत्व की बारी आती है,
विदेशी भाषा चुनी जाती है ।
जिसका रुआब तगङा है !
हर क्षेत्र में डंका बजता है !
ऐसा फ़र्क आदमी करता है ।
भाषा के बाज़ लङाता है ।
लट्ठ की तरह चलाता है ।
भाषा से क्या कोई नाता है ?
भाषा तो बस भाषा ही है ।
बात कहती और सुनती है ।
वर्षा ऋतु की हरियाली है ।
स्वत: उगती, छा जाती है ।
नदी की अविरल धारा है ।
ख़ुद अपनी राह बनाती है ।
भाषा का अपना नज़रिया है ।
भाषा संस्कार वाहिनी है ।
हिंदी का अपना सलीका है ।
बोलियों का विशाल कुनबा है ।
कई भाषाओं से गहरा रिश्ता है ।
हिंदी का स्वभाव ही ऐसा है ।
हिंदी हर साँचे में ढल जाती है ..
हैदराबादी या मुंबइया हिंदी है !
कोस-कोस लहजा बदलती जाती है,
हिंदी हमारी संस्कृति की पहचान है ।
चित्र फ़्रीपिक से साभार
शुभकामनाएं हिंदी दिवस की
जवाब देंहटाएंVery Nice Post....
जवाब देंहटाएंWelcome to my blog
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 20 सितंबर 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता और बहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंहिन्दी तो हिन्दी है, भारत माता के माथे की बिन्दी है
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