बित्ते भर के
पीले फूल !
पीले फूल !
खिड़की से झांकते
सिर हिला-हिला के
अपने पास बुलाते,
इतने अच्छे लगे...
कमबख़्त !
उठ कर जाना पड़ा !
सिर हिला-हिला के
अपने पास बुलाते,
इतने अच्छे लगे...
कमबख़्त !
उठ कर जाना पड़ा !
देखा आपस में
बतिया रहे थे,
राम जाने क्या !
बतिया रहे थे,
राम जाने क्या !
एक बार लगा ये
धूप के छौने हैं ।
फिर लगा हरे
आँचल पर पीले
फूल कढ़े हैं ।
या वसंत ने पीले
कर्ण फूल पहने हैं ।
धूप के छौने हैं ।
फिर लगा हरे
आँचल पर पीले
फूल कढ़े हैं ।
या वसंत ने पीले
कर्ण फूल पहने हैं ।
वाह ! क्या कहने हैं !
ये फूल मन के गहने हैं !
ये फूल मन के गहने हैं !
खुशी का नेग हैं !
भोला-सा शगुन हैं ।
भोला-सा शगुन हैं ।
इन पर न्यौछावर
दुनिया के व्यवहार ..
दुनिया के व्यवहार ..
कम्बख़्त ये ..
बित्ते भर के
पीले फूल !
बित्ते भर के
पीले फूल !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 04 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशोदाजी.
हटाएंपाँच लिंकों का आनंद पर आना दिसंबर में पीलेफूलों का वसंत आने जैसा है !
एक बार लगा ये
जवाब देंहटाएंधूप के छौने हैं ।
फिर लगा हरे
आँचल पर पीले
फूल कढ़े हैं ।
या वसंत ने पीले
कर्ण फूल पहने हैं ।....वाह ...वाह...वाह
अलकनंदा नदी के किनारे ही ऐसे फूल ज़्यादा खिलते हैं !
हटाएंधन्यवाद अलकनंदा जी .
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २२५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...
जवाब देंहटाएंयादगार मुलाक़ातें - 2250 वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
कभी-कभी बुलेटिन में फूलों के खिलने का समाचार भी आ जाए तो अच्छा लगता है.
हटाएंआभार ब्लॉग बुलेटिन.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-12-2018) को "गिरोहबाज गिरोहबाजी" (चर्चा अंक-3175) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
गिरोहबाज़ गिरोह्बाज़ी में पीले फूलों का गिरोह !
हटाएंअच्छा हुआ धार लिया गया !
धन्यवाद आदरणीय शास्त्रीजी.
कभी कभी ये फूल जिंदगी बन जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है ...
..और ज़िन्दगी की खुशबू को दूना कर देते हैं !
हटाएंशुक्रिया,नसवा जी.
बहुत खूबसूरत रचना बित्ते भर के पीले फूलों की तरह.....बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंबित्ते भर के फूलों के बड़े कद्रदान !
हटाएंनमस्ते सुधा जी.धन्यवाद.
सुन्दर रचना 👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनीताजी.
हटाएंनन्हे फूलों की करामात !
वाह बहुत सुन्दर कोमल भावनाएं ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुसुमजी.
हटाएंआप ना समझेंगी तो कौन समझेगा ?
आपके तो नाम में ही फूल खिले हैं !
बहुत सुंदर नरम एहसास से परिपूर्ण रचना..वाहहह👌
जवाब देंहटाएंआभार श्वेताजी.
हटाएंजी.उबड़-खाबड़ रास्ते में फूल नज़र आ जाएं तो धुल-धूसरित पगडंडी भी भाने लगती है. नरम फूलों का एहसास नम कर देता है मन को.
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जवाब देंहटाएंhttp://www.bookrivers.com/
Thank you friends. Appreciate the name you have chosen.
हटाएंPlease share a rate card brochure for details.
Regards.
https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/12/2018-17.html?m=1
जवाब देंहटाएंरश्मि प्रभा जी पहली बार किसी ने बताया कि... मेरी जुस्तजू ही मेरी पहचान है ..
हटाएंइस बात पर नज़र ठिठक गई. आपने बड़े प्यार से पढ़ा.सो धन्यवाद.अच्छा लगा.
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर जी धन्यवाद ।
हटाएंआपको आनंद आया, यह जान कर बहुत प्रसन्नता हुई ।