बुधवार, 19 दिसंबर 2018

गीता का मनन




गीता का मनन
कर्म का चयन
सार्थक कब होता है ?

जब योगेश्वर कृष्ण से
सखा अर्जुन का अंतर्द्वंद
प्रश्न पूछता है ।

योद्धा अर्जुन को ज्ञात है, 
युद्ध का प्रयोजन
न्याय का संधान ही है ।

पर ह्रदय धिक्कारता है,
मृत्यु का हाहाकार ही क्या
परिणति और मूल्य है न्याय का ?

सृष्टि के क्रम-नियम 
धर्म के साक्षी गोपाल सिवा
कौन उत्तर दे सकेगा ?

एक निष्ठावान श्रोता 
पराक्रमी वीर जब निर्भीक
अधिकार से पूछता है प्रश्न ..

तब पार्थ का सारथी,
भ्रमित किन्तु समर्पित सखा के
काटता है समस्त भव फंद ।

गीता है धर्म संहिता ।
वासुदेव ने अर्जुन को सिखाया
समय पर निर्द्वंद गांडीव उठाना ।

ऐसा ही होता है सदा ।
जब-जब प्रश्न पूछता है अर्जुन,
तब-तब कृष्ण कहते हैं गीता ।

जब निश्छल होता है संवाद  
सर्वदा अपने इष्ट से हमारा, 
जान पड़ता है कौनसा पथ है चुनना ।

सत्पथ पर सत्यव्रत हो चले यदि,
जो शोभा दे, वह विजय मिलेगी ।
नीतियुक्त समृद्धि मिलेगी ।

श्री, विजय, विभूति, नीति, सुमति
इनका इस जगत में ध्येय एक ही 
कर्मभूमि को धर्मक्षेत्र बनाना ।


15 टिप्‍पणियां:

  1. श्री, विजय, विभूति, नीति, सुमति
    का इस जगत में ध्येय एक ही
    कर्मभूमि को धर्मक्षेत्र बनाना ।
    बहुत ही बेहतरीन रचना नुपुर जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद अनुराधाजी.
      आज गीता जयंती पर मन में यह श्लोक परिक्रमा कर रहा था.
      सुखद आश्चर्य इस वर्ष यह रहा कि किसी बीस-पच्चीस वर्ष के युवक ने स्मरण कराया और फिर उसी वय के एक और युवक से भी चर्चा हुई. अच्छा लगा.

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-12-2018) को "आनन्द अलाव का" (चर्चा अंक-3192) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद शास्त्रीजी ।
      अलाव के पास बैठ कर हाथ तापते हुए चिंतन मनन खूब होता है ।

      हटाएं
  3. चंद छंदो में ही गीता का पूरा सार सुना दिया आपने ,सादर नमन है आप को....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद कामिनीजी.
      गीता के सार को समझने के प्रयास में संभवतः अनायास ही शब्द छंद हो जाते होंगे.
      आप उदार मना हैं. आती रहिएगा.नमस्ते.

      हटाएं
  4. चिंतन दृष्टि!!
    सार्थक सुंदर सुविचार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. शुक्रिया कुसुमजी.
    सोच के सिरे मिल जाएं तो समझो सार्थक हैं.
    नमस्ते.

    जवाब देंहटाएं
  6. जब निश्छल होता है संवाद
    सर्वदा अपने इष्ट से हमारा,
    जान पड़ता है कौनसा पथ है चुनना ।
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर, सार्थक...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद सुधाजी ।
      भगवत गीता ऐसी ही पारसमणि है ।
      लोहा भी सोना हो जाता है ।
      या ऐसी चिंतामणि है ।
      शब्द सार्थक हो जाते हैं ।

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. आभार ज्योति खरे जी ।
      चिंतन से ही समग्र चेतना संभव है ।
      आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में ।

      हटाएं

  8. एक निष्ठावान श्रोता
    पराक्रमी वीर जब निर्भीक
    अधिकार से पूछता है प्रश्न ..

    तब पार्थ का सारथी,
    भ्रमित किन्तु समर्पित सखा के
    काटता है समस्त भव फंद ।
    भीड़ से अलग, प्रभावशाली सार्थक रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भीड़ में से खोज निकालने के लिए आपका बार-बार आभार मीना जी । आपका स्नेह बना रहे ।

      हटाएं

कुछ अपने मन की भी कहिए