गीता का मनन
कर्म का चयन
सार्थक कब होता है ?
कर्म का चयन
सार्थक कब होता है ?
जब योगेश्वर कृष्ण से
सखा अर्जुन का अंतर्द्वंद
प्रश्न पूछता है ।
सखा अर्जुन का अंतर्द्वंद
प्रश्न पूछता है ।
योद्धा अर्जुन को ज्ञात है,
युद्ध का प्रयोजन
न्याय का संधान ही है ।
युद्ध का प्रयोजन
न्याय का संधान ही है ।
पर ह्रदय धिक्कारता है,
मृत्यु का हाहाकार ही क्या
परिणति और मूल्य है न्याय का ?
मृत्यु का हाहाकार ही क्या
परिणति और मूल्य है न्याय का ?
सृष्टि के क्रम-नियम
धर्म के साक्षी गोपाल सिवा
कौन उत्तर दे सकेगा ?
धर्म के साक्षी गोपाल सिवा
कौन उत्तर दे सकेगा ?
एक निष्ठावान श्रोता
पराक्रमी वीर जब निर्भीक
अधिकार से पूछता है प्रश्न ..
पराक्रमी वीर जब निर्भीक
अधिकार से पूछता है प्रश्न ..
तब पार्थ का सारथी,
भ्रमित किन्तु समर्पित सखा के
काटता है समस्त भव फंद ।
भ्रमित किन्तु समर्पित सखा के
काटता है समस्त भव फंद ।
गीता है धर्म संहिता ।
वासुदेव ने अर्जुन को सिखाया
समय पर निर्द्वंद गांडीव उठाना ।
वासुदेव ने अर्जुन को सिखाया
समय पर निर्द्वंद गांडीव उठाना ।
ऐसा ही होता है सदा ।
जब-जब प्रश्न पूछता है अर्जुन,
तब-तब कृष्ण कहते हैं गीता ।
जब-जब प्रश्न पूछता है अर्जुन,
तब-तब कृष्ण कहते हैं गीता ।
जब निश्छल होता है संवाद
सर्वदा अपने इष्ट से हमारा,
जान पड़ता है कौनसा पथ है चुनना ।
सर्वदा अपने इष्ट से हमारा,
जान पड़ता है कौनसा पथ है चुनना ।
सत्पथ पर सत्यव्रत हो चले यदि,
जो शोभा दे, वह विजय मिलेगी ।
नीतियुक्त समृद्धि मिलेगी ।
जो शोभा दे, वह विजय मिलेगी ।
नीतियुक्त समृद्धि मिलेगी ।
श्री, विजय, विभूति, नीति, सुमति
इनका इस जगत में ध्येय एक ही
कर्मभूमि को धर्मक्षेत्र बनाना ।
इनका इस जगत में ध्येय एक ही
कर्मभूमि को धर्मक्षेत्र बनाना ।
श्री, विजय, विभूति, नीति, सुमति
जवाब देंहटाएंका इस जगत में ध्येय एक ही
कर्मभूमि को धर्मक्षेत्र बनाना ।
बहुत ही बेहतरीन रचना नुपुर जी
धन्यवाद अनुराधाजी.
हटाएंआज गीता जयंती पर मन में यह श्लोक परिक्रमा कर रहा था.
सुखद आश्चर्य इस वर्ष यह रहा कि किसी बीस-पच्चीस वर्ष के युवक ने स्मरण कराया और फिर उसी वय के एक और युवक से भी चर्चा हुई. अच्छा लगा.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-12-2018) को "आनन्द अलाव का" (चर्चा अंक-3192) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी ।
हटाएंअलाव के पास बैठ कर हाथ तापते हुए चिंतन मनन खूब होता है ।
चंद छंदो में ही गीता का पूरा सार सुना दिया आपने ,सादर नमन है आप को....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कामिनीजी.
हटाएंगीता के सार को समझने के प्रयास में संभवतः अनायास ही शब्द छंद हो जाते होंगे.
आप उदार मना हैं. आती रहिएगा.नमस्ते.
चिंतन दृष्टि!!
जवाब देंहटाएंसार्थक सुंदर सुविचार ।
धन्यवाद श्वेताजी.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कुसुमजी.
जवाब देंहटाएंसोच के सिरे मिल जाएं तो समझो सार्थक हैं.
नमस्ते.
जब निश्छल होता है संवाद
जवाब देंहटाएंसर्वदा अपने इष्ट से हमारा,
जान पड़ता है कौनसा पथ है चुनना ।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर, सार्थक...
धन्यवाद सुधाजी ।
हटाएंभगवत गीता ऐसी ही पारसमणि है ।
लोहा भी सोना हो जाता है ।
या ऐसी चिंतामणि है ।
शब्द सार्थक हो जाते हैं ।
चिंतनपरक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
आभार ज्योति खरे जी ।
हटाएंचिंतन से ही समग्र चेतना संभव है ।
आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में ।
जवाब देंहटाएंएक निष्ठावान श्रोता
पराक्रमी वीर जब निर्भीक
अधिकार से पूछता है प्रश्न ..
तब पार्थ का सारथी,
भ्रमित किन्तु समर्पित सखा के
काटता है समस्त भव फंद ।
भीड़ से अलग, प्रभावशाली सार्थक रचना।
भीड़ में से खोज निकालने के लिए आपका बार-बार आभार मीना जी । आपका स्नेह बना रहे ।
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