परदेस जाते बेटे ने
बड़े लाढ़ से पूछा है,
क्या लाऊं तुम्हारे लिए ?
तुम्हें चाहिए कुछ वहां से ?
बड़े लाढ़ से पूछा है,
क्या लाऊं तुम्हारे लिए ?
तुम्हें चाहिए कुछ वहां से ?
बेटे ने पूछ क्या लिया ..
दिमाग़ खोजी हो गया !
ऐसा क्या मंगाया जाए
जो तसल्ली हो जाए !
दिमाग़ खोजी हो गया !
ऐसा क्या मंगाया जाए
जो तसल्ली हो जाए !
याद आई वो बुढ़िया
जिससे गणेशजी ने
प्रसन्न होकर पूछा था
मांग क्या मांगती है मैया !
जिससे गणेशजी ने
प्रसन्न होकर पूछा था
मांग क्या मांगती है मैया !
बुढ़िया ने जो सूझा
सब कुछ मांग लिया
गणेशजी ने हँस कर कहा
माँ तूने तो हमें ठग लिया !
सब कुछ मांग लिया
गणेशजी ने हँस कर कहा
माँ तूने तो हमें ठग लिया !
ऐसा ही कुछ मंगाया जाए
लाने वाले का मन रह जाए
और अपने भी काम आए
कोई कसर ना रह जाए !
लाने वाले का मन रह जाए
और अपने भी काम आए
कोई कसर ना रह जाए !
क्यों बेटा ? बड़ी जगह है ना ?
वहां तो सब कुछ मिलता होगा ?
सामान जो पैसों के मोल मिले
और वो जो पैसों से भी ना मिले ?
वहां तो सब कुछ मिलता होगा ?
सामान जो पैसों के मोल मिले
और वो जो पैसों से भी ना मिले ?
कपड़ा-लत्ता, तरह-तरह के गहने,
छोड़ ! अब दिन ही कितने बचे ?
ओढ़ने-पहनने,सजने-संवरने के ?
खाने-पीने के भी अब दिन गए ।
छोड़ ! अब दिन ही कितने बचे ?
ओढ़ने-पहनने,सजने-संवरने के ?
खाने-पीने के भी अब दिन गए ।
अमां बड़ी दिक्कत है ये सोचने में
आख़िर कोई कमी हो तो कहें ना !
अच्छा सुनो भई दिल छोटा ना करना !
कोई दिलचस्प अजूबा मिले तो ले लेना !
आख़िर कोई कमी हो तो कहें ना !
अच्छा सुनो भई दिल छोटा ना करना !
कोई दिलचस्प अजूबा मिले तो ले लेना !
कोई अजूबा रहेगा पास तो जी बदलेगा ।
आने-जाने वालों का तांता लगा रहेगा ।
मजमा तो किस्से-कहानियों से भी जमेगा ।
ले आना थैला-भर, खूब माहौल बनेगा ।
आने-जाने वालों का तांता लगा रहेगा ।
मजमा तो किस्से-कहानियों से भी जमेगा ।
ले आना थैला-भर, खूब माहौल बनेगा ।
ये ना मिले तो किताबों में रख के
वहां की फूल-पत्तियां ले आना ।
वहां के बाशिंदों की तस्वीरें ले आना ।
चेहरे पढ़ के उनका भी हाल पता चले ।
वहां की फूल-पत्तियां ले आना ।
वहां के बाशिंदों की तस्वीरें ले आना ।
चेहरे पढ़ के उनका भी हाल पता चले ।
देखने सुनने में तो आया है बरसों से ये,
सुख-दुख उन्नीस-बीस होते हैं सबके ।
बहुत हो या थोड़ा फ़र्क़ नहीं ज़्यादा,
सभी के हिस्से में है कुछ न कुछ आता ।
सुख-दुख उन्नीस-बीस होते हैं सबके ।
बहुत हो या थोड़ा फ़र्क़ नहीं ज़्यादा,
सभी के हिस्से में है कुछ न कुछ आता ।
चल छोड़ ! ले बैठे कहां का किस्सा !
जो भी देख कर मेरी याद आये ना !
वही थोड़ा-बहुत मोहब्बत के माप का..
और मिले तो बस मुट्ठी भर चैन ले आना ।
जो भी देख कर मेरी याद आये ना !
वही थोड़ा-बहुत मोहब्बत के माप का..
और मिले तो बस मुट्ठी भर चैन ले आना ।
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना नुपुर जी
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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हटाएंधन्यवाद अनुराधा जी.
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-12-2018) को "यीशु, अटल जी एंड मालवीय जी" (चर्चा अंक-3197) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार शास्त्रीजी.
हटाएंगुनगुनी धूप में चर्चा का आनंद !
मुहब्बत के माप में मुट्ठी भर चैन...वाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अलकनंदा जी.
हटाएंजिसका जितना दामन उतना चैन तो चाहिए ना.
जितनी आँचल की छाँव उतना चैन.
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 29 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशोदा जी.
हटाएंमुखरित मौन भी मोहब्बत के माप का होता होगा ..
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अभिलाषा जी.
हटाएंवाह अनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.
हटाएंये किसने सुनी दिल की सदा ?
आपका नमस्ते पर स्वागत है.
आती रहिएगा.