चिंता
चिता समान
होती है ।
कुंठा
उससे बढ़ कर
घातक होती है ।
वार दोनों का
कभी भी
खाली नही जाता ।
दीमक
लग जाती है,
सोच की संधों में ।
धीरे-धीरे
निगल जाती है
विवेक ।
घुन
लग जाता है ।
जिससे कभी
उबर नहीं पाता
आदमी ।
सुन्न
हो जाता है
अवचेतन ।
निर्जीव
हो जाता है
चिंतन ।
इसलिए
सचेत रहना मन ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-12-2018) को "नव वर्ष कैसा हो " (चर्चा अंक-3199)) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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