आजकल हमें
सुखांत कथा ही
भाती है ।
वजह
जो भी हो ।
चाहे ये
कि वास्तविक जीवन में तो . .
अपने चाहे से
कुछ होता नहीं ।
क्या होगा ?
उस पर बस नहीं ।
और असल बात तो
ये है भई,
सुखद और दुखद का
होता है अपना - अपना कोटा ।
ज़िन्दगी में ,
सुख के सिलसिले है कभी ,
दुःख भी डट कर बैठे हैं सभी ।
वस्तुस्थिति
परिस्थिति
यथार्थ घटनाक्रम से
जूझते हैं सभी ,
कभी न कभी ।
इसमें क्या नयी बात है ?
बात तो तब है जब
कथा से जन्मे
संवेदनशीलता ।
होनहार होकर रहे
पर आत्मबल ना झुके ।
क्योंकि मित्रवर अब सहन नहीं होते ,
हारे हुए कथानक ।
अंत में सद्भावना प्रबल हो ,
और इस तरह कथा सुखांत हो ।