हर मुम्बईकर के पिता,
गणपति बप्पा मोरया ।
इनका उत्सव आया,
चतुर्दिक हर्ष छाया !
शिल्पकार की मुखर हो उठी कल्पना,
बप्पा को अनेक रूपों में देखा ।
किसी ने उन्हें मुनीमजी बनाया,
किसी ने स्कूल का यूनिफार्म पहनाया ।
किसी ने हाथों में वाद्य थमाया,
किसी ने पग में नूपुर बाँधा ।
कभी हाथ में पुस्तक,
कभी नृत्य को उत्सुक,
बप्पा ने सबका मन बहलाया,
सिर पर रखा हाथ मस्तक सहलाया ।
बप्पा के चरणों पर शीश नवाऊँ,
बप्पा की गोद में सिर रख सो जाऊं ..
तो चैन पाऊं,
बप्पा के गुण गाऊं ।
भाव विभोर हो मन कह उठा,
बप्पा हमको आशीष देना ।
मुम्बई के गणपति उत्सव का सटीक वर्णन । सुन्दर अभिव्य्क्ति ।
जवाब देंहटाएंशर्माजी धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंपढ़ते रहिएगा .