आपकी सराहना ने
अनुभूति के रिक्त कोने
भर दिए ।
शायद अब
कल मैं कुछ लिखूँ ।
अपनी कलम के साथ चार कदम चलूँ ।
शब्दों में अपने साफ़ - साफ़ दिखूँ ।
शायद अब
कल मैं कुछ लिखूँ ।
ऊन की सलाई पर नए फंदे बुनूँ ।
बगीचे की क्यारी में नन्हा पौधा रोपूं ।
शायद अब
कल मैं कुछ लिखूँ ।
खट्टी-मीठी गोलियों का चटपटा स्वाद चखूँ ।
बच्चों संग बच्चा बन नित नए खेल खेलूँ ।
शायद अब
कल मैं कुछ लिखूँ ।
नदी किनारे बैठ कर बाँसुरी बजाऊँ ।
खाट पर लेटे-लेटे तारों से मंत्रणा करूं ।
शायद अब
कल मैं कुछ लिखूँ ।
शायद अब कल मैं कुछ लिखूँ ।
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