सूरज सुबह सुबह
चढ़ कर
जा बैठा है
आकाश की मुंडेर पर ।
चढ़ कर
जा बैठा है
आकाश की मुंडेर पर ।
रात की ओस से
भीजे बादल
डाल दिए हैं
अलगनी पर
एक तरफ़
सूखने के लिए ।
सूखने के लिए ।
पंछी निकले हैं
प्रभात फेरी के लिए ।
प्रभात फेरी के लिए ।
किरणों की वंदनवार
झिलमिला रही है,
धरती के इस छोर से
उस छोर तक ।
हर रोज़ की तरह
ज़िंदगी ने
खोल दी है
अपनी दुकान ।
ज़िंदगी ने
खोल दी है
अपनी दुकान ।
मेहनत करो
और जीतो
सुकून का ईनाम ।
एक नया दिन
सीना ताने
तैयार है,
ड्यूटी पर
जाने के लिए ।
सीना ताने
तैयार है,
ड्यूटी पर
जाने के लिए ।
और तुम्हें साथ
ले जाने के लिए ।
क्योंकि सूरज
बुला रहा है तुम्हें
कब से ।
चलो चलें ।
इस दिन का नेग
जुटाने के लिए ।
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
पहली बार ऐसा हुआ।
एक युवा पाठक ने
इतने मन से
पढ़ी यह बात।
ऊपर जुड़ी water colour पेंटिंग बना डाली।
देखिए क्या खूब मिला !
सबसे निराला !
इस दिन का नेग !!
Anmol Mathur नन्हे पाठक का
तहे-दिल से शुक्रिया !
जब जागो, तभी सवेरा !
जवाब देंहटाएंसुन्दर, ऊर्जावान और उत्साहवर्धक कविता और बाल-कलाकार की उस पर कलात्मक प्रतिक्रिया!
आपकी सहृदय सराहना के लिए हार्दिक आभार.
हटाएंसही कहा आपने - जब जागो तब ही सवेरा.
रोज़ ख़ुद को याद दिलाना पड़ता है.
कभी आप ही याद आ जाता है.
धन्यवाद ब्लॉग बुलेटिन और सलिल वर्माजी.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल नहीं छूटती ! कविता चीज़ ही ऐसी है !
पुनः हार्दिक आभार शास्त्रीजी. नमस्ते..
जवाब देंहटाएंआवश्यक सूचना :
जवाब देंहटाएंअक्षय गौरव त्रैमासिक ई-पत्रिका के प्रथम आगामी अंक ( जनवरी-मार्च 2019 ) हेतु हम सभी रचनाकारों से हिंदी साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित करते हैं। 15 फरवरी 2019 तक रचनाएँ हमें प्रेषित की जा सकती हैं। रचनाएँ नीचे दिए गये ई-मेल पर प्रेषित करें- editor.akshayagaurav@gmail.com
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https://www.akshayagaurav.com/p/e-patrika-january-march-2019.html
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