गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

आओ माँ !


आओ माँ !

आओ माँ करने दुष्टता का संहार !
आओ माँ हो कर सिंह पर सवार !
अपनी दुर्बलताओं से हम गए हार !
तुम पग धरो धरणी पर करो प्रहार !
हमारे प्राणों में हो शक्ति का संचार !
अपने त्रिशूल से भय पर करो वार !
खड्ग से दूर करो दारिद्र्य विकार !
क्षितिज सम भवों पर सूर्य साकार !
जगद्धात्री माँ लेकर करूणा अपार !
माँ हरो मेरे अंतर में व्याप्त अंधकार !
माँ साहस ही देना वरदान इस बार !
आओ माँ आओ मंगल हो त्यौहार !
शंखनाद जयघोष सहित हो भव पार !

रविवार, 11 जुलाई 2021

कहानी


कहानी कहानी होती है ।
कितनी भी सच्ची लगे !
जितनी भी दिल को छुए ।
कहानी कहानी होती है ।
कहानियों से क्या होता है ?

कहानियों से क्या होता है ?
हाँ , कुछ याद रह जाती हैं ।
दिल में जगह बना लेती हैं ।
नेक इरादे तराश देती हैं ।
पर सच कहाँ हो पाती हैं ?
कहानी कहानी होती है ।

ईश्वर करे ! खांटी कहानी ये
सच्ची दास्ताँ ही बन जाए ।
हर सरल स्त्री के जीवन में, 
हर उस आदमी के हिस्से में 
जो कमज़ोर माना जाता है,
थोड़ा-सा हौसला आ जाए,
तो कहानी ही बदल जाए ।


चित्र साभार : श्री रौनक़ चौहान 


मंगलवार, 15 जून 2021

प्रतिबिंब



फूल की पंखुरी
या पत्ते पर ठिठकी
पानी की इक बूँद, 
क्षणभंगुर जीवन के
अप्रतिम सौंदर्य की 
प्रामाणिक छवि है ।

ये भी हो सकता है 
यह पारदर्शी बूँद 
चुपके से ढुलका
नमकीन आंसू है,
जप माला का 
टूटा मनका है या
आस का मोती है ।

संभवतः कोई कहे
श्वास भर यह बूँद 
संवेदनशील ह्रदय का
निश्छल भाव है,
प्रकृति का हास है,
जिसे सूर्य रश्मि 
स्पर्श कर ले यदि
सतरंगीं इंद्रधनुष की 
रूपहली कोर है ।

जिसकी जैसी 
है मनःस्थिति, 
यह बूँद उसी
अनुभूति का
प्रतिबिंब है ।
 

मंगलवार, 25 मई 2021

करावलंबन

कच्ची उम्र के बच्चे
अनुभव के कच्चे
छोटे-छोटे हादसे
क्यों सह नहीं पाते ?

क्यों उनके भीतर
जवान होता बच्चा
इतना सहम गया
कि आत्मघात करना पड़ा ??

उम्मीद बर ना आये
तो जान पर बन आये ?
ऐसा क्या खो बैठे ?
जिसकी भरपाई ना हो पाए ?

उनके भीतर कहीं
गहरी खाई थी क्या ?
जो पाँव फिसले
तो संभल भी ना पाए ?

क्या अपने चूक गए
इनके भीतर उठे
भूचाल के झटके
वक़्त रहते समझने में ?

माँ-बाप ने ला-ला के
खिलौने जैसे सपने दिए
पर क्या वो देना भूल गए
सुरक्षा कवच संस्कारों के ?

फिर किसी बच्चे ने अपने
प्राण तिरोहित कर दिए
यार-दोस्त देखते रह गए
माँ-बाप स्तब्ध रह गए

दुनिया ने सिखाया कैसे
सब कुछ हासिल करना
पर किसी ने ना सिखाया
ना मिले तो आगे बढ़ें कैसे ?

खाई में गिर के वो बचेगा कैसे ?
गोविंद आपने थामा था जैसे
भक्त प्रह्लाद को अपने हाथों में
अपना लेना उसे भी अंक में भर के ।

मंगलवार, 18 मई 2021

गिरिधर


जब तब मैंने 
उलाहना दे दे 
खूब सताया है 
गोविंद को अपने,
रो-रो के व्यर्थ में 
पाथर कह डाला है,
अपने कष्ट के झोंटे में 
कान्हा को ठेल दिया है..
पर गोविन्द ने कब मुँह फेरा है ?
दिवारात्रि अनर्गल प्रलाप को मेरे
शीश पर धर कर कमल शांत किया है ।
केशव तुम्हें ज्ञात है जग में कौन अपना है ।
आसरा एकमेव एकमेव एकमेव बस तुम्हारा है ।
दुख-द्वंद मेरा था गिरिधर पर भार तुमने उठाया है ।


सोमवार, 10 मई 2021

करम की गति न्यारी


" चाय देना एक भाई ! " कमज़ोर सी आवाज़ में अतीत बोला । चाय वाले ने अतीत की ओर देखा । डेढ़ पसली का आदमी दो-तीन दिनों में ही झटक गया था । उसका सारा परिवार कोरोना ग्रस्त अस्पताल में पङा था । ये जाने कैसे बच गया था । ख़ैर ..यहाँ तो एक से एक केस थे । बचे लोग देखभाल करने वाले, तो वे सारे अस्पताल के सामने वाले बरगद के नीचे पनाह ले चुके थे और दिन गिन रहे थे । 

चाय वाले ने अतीत के सामने चाय की गिलसिया रख दी और बोला," महाराज ! आज क्या बात है ? कोई किस्सा, कहानी, चुटकुला ..कुछ नहीं । बलब फ्यूज है क्या? सब ठीक तो है ना ? "

अतीत जैसे नींद से जागा । खीसें निपोरते हुए बोला, " क्या बताऊँ यार ! कुछ समझ में ही नहीं आता, कब सलटेगा यह मौत का कुंआ जैसा खेल !"

" क्या बोले भाईसाहब? मौत का कुंआ का खेल ?"
यह आवाज़ पास बैठे जीव से निकली थी ।

अतीत," हाँ । भैया पहले नहीं देखा । तुम्हारा भी कोई भीतर फंसा है  क्या? क्या नाम है भाई  ?"

जीव ने घोषणा की," मैं? कोरोना ।"

यह सुन कर चाय वाले के हाथ से गिलसिया छूट गई ! अतीत सन्न ! झटके से उठ खङा हुआ !  बोला,"ये कैसा नाम है ? "

जीव ठठा कर हँसा । " क्यों ? तुम तो खुद ही अतीत हो ! फिर भी अभी बीते नहीं !"

अचानक अतीत को करेंट-सा लगा और वो हाथ जोड़ कर जीव के कदमों में बैठ गया," अरे प्रभु ! आप ही हैं, जिनका डंका सारी दुनिया में बज रहा है ? भई कमाल कर दिए आप तो ! ऐसा हंटर घुमाए हो कि घर का घर बरबाद कर दिया ! कौन जनम का बदला लिए हो गुरु ? जरा दया-माया नहीं?" बोलते-बोलते अतीत की आवाज़ भर्रा उठी ।

जीव बोला," काहे इतना रो-धो रहे हो ? इतना ही दिल में इमोसन रहा तो ससुर हमें पैदा काहे किए ?"

अतीत," हम ? हम पैदा किए ?? तुमको ? हम पागल हैं क्या ? "

जीव,"छोङो यार ! तुम आदम जात की पुरानी आदत है ! कांड कर के मुकर जाना !"

अतीत हतप्रभ देख रहा था जीव की ओर , " कांड ? कौनसा कांड ? क्या बक रहे हो ?"

जीव," क्यों? मैं तो तुम्हारी ही नाजायज़ औलाद हूँ ना ? "

अतीत,"ऐ भाई ! कुछ भी बोलेगा ? तेरा कोई धरम-ईमान नहीं क्या ?"

जीव,"मैं क्या धरम-ईमान की पैदाइश हूँ?? तो फिर ये उम्मीद क्यों ?"

अतीत ऑंखें फाङ कर देखता रहा ।

जीव," क्यों? तुम ही लोग बता रहे हो कि ये तो मानव निर्मित जैविक हथियार है । अंधाधुंध प्रकृति का दोहन । आदमी भी तो इसी प्रकृति का एक हिस्सा है । समय रहते तुमने क्या किया ? शतुरमुर्ग की तरह आधुनिक सुविधाओं में मुँह छिपा लिया ? धृतराष्ट्र बने बैठे रहे । फिर दुर्योधन - दुशासन पर बस न चला ! अब महाभारत होने से कौन रोक सकता है ? इस तबाही के लिए क्या तुम ही ज़िम्मेदार नहीं हो? किसे दोष देते हो ?"

अतीत, चाय वाला और बाकी लोग भौंचक्के से खङे थे । मूर्तिवत ।

जीव बोला,"मरना तुम्हारे हाथ में नहीं । पर तुम जिओगे कैसे ? ये तो तुम तय करो ।"


मंगलवार, 4 मई 2021

ईशान कोण जीवन का


मेरे कमरे की
खिङकी का यह कोना
जिसमें फूला है मोगरा, 
धूप में जितना तपता
उतना ही बढ़िया खिलता
और सुगंध बिखेरता !

मेरे कमरे की
खिङकी का यह कोना
जिसमें फूला है मोगरा, 
खुशियों का है टोटका !
खाद,पानी,धूप का होना, 
और प्यार से यदि सींचा
मेहनत का फूल खिलेगा!

मेरे कमरे की
खिङकी का यह कोना
जिसमें फूला है मोगरा, 
समीकरण सुख-दुख का,
विसंगतियों  का टोना,
क्षणभंगुर उल्लास का 
फूल सा डिठौना !

मेरे कमरे की
खिङकी का यह कोना
जिसमें फूला है मोगरा, 
आलाप है आस्था का,
साक्षी है अंतर कथा का,
अव्यक्त भावों का ।

मेरे कमरे की
खिङकी का यह कोना
जिसमें फूला है मोगरा, 
हृदय के स्पंदन सा
आनंद की हिलोरें लेता,
ईशान कोण मेरे जीवन का ।