बुधवार, 27 मार्च 2019

बूंद


तुम सरल 
जल की बूंद,
ओस की बिंदी,
अश्रु का मोती,
निश्छल पारदर्शी ।

क्षणभंगुर ..
पर अमिट
पावन स्मृति
क्षीर सम ।

सूर्य रश्मि का
परस पाकर
बन जाती
पारसमणि ।

तुम कहीं
जाती नहीं ।
विलय होती ।
बन जाती
अंतर्चेतना।

सहसा
समा जाती,
सहृदय
पुष्प की
पंखुरियों में ।

तुम निरी
इक बूंद !

बूंद में ही
खिलता
सजल सतरंगी
इंद्रधनुष ।





रविवार, 24 मार्च 2019

ताक़त


कड़वे अनुभवों की 
खर-पतवार को
सोच की
उपजाऊ ज़मीन पर
जड़ें मत फैलाने देना ।
इनकी कड़वाहट 
जंगली बेल की तरह
तेज़ी से चारों तरफ़
फैल कर जकड़ लेती हैं ।
अच्छे ख़यालात को
पनपने नहीं देती ।

इसलिए हो सके तो
नियम से इन्हें
उखाड़ फेंको ।
अगर कुछ करना है ।
अगर कुछ पाना है ।
तो बहुत देर तक
कटुता को
टिकने मत देना ।
दफ़ा कर देना ।

दुखी करने वाला
हर वाक़या
कुछ सिखाने आता है ।

सीखना और दुख को
अपनी ताक़त बना लेना ।


बुधवार, 20 मार्च 2019

गौरैया खूब चहको तुम




नन्ही गौरैया आओ तुम ।
अपना घर बसाओ तुम ।

मेरे छोटे-से घर की
छत का कोना, खिड़की,
बालकनी, दुछत्ती, अहाता,
सब बाट जोहते हैं तुम्हारी ।

यहाँ घोंसला बनाओ ।
दिन भर दाना चुगो ।
प्यास लगे तो पानी पियो ।
ये सब यहाँ मिलेगा ।
और प्यार मिलेगा ।
ज़्यादा कुछ नहीं,
देने को
हमारे पास भी ।
तुम्हें भी तो
चाहिए बस इतना ही ।

तुम्हारा रहना आसपास
होता है शुभ ।
तुम चहचहाती हो जब,
चहकने लगता है जीवन ।




गौरैया के घर की चित्रकारी : श्रीमती रेखा शांडिल्य 

रविवार, 17 मार्च 2019

सही की बही




सही में यार !
बहुत मुश्किल है !
सही क्या ?
ग़लत क्या ?
इस सब की विवेचना ।
कोई कितना करे ?
और कब तक करे ?
किंतु परंतु का कोई
अंतिम छोर है क्या ?
निष्कर्ष कैसे निकलेगा ?

रेगिस्तान में जल दिखना
तो छलना है ।
मृगतृष्णा है ।

क्षितिज जब तक
दूर है,
सबको मंज़ूर है ।
नज़र का नूर है ।
मगर पास गए अगर
तो कुछ भी नहीं है ।
भुलावा है ।
मनमोहक है पर
मात्र दृष्टिकोण है ।

अब बताइए ।
क्या किया जाए ?
सही को कहाँ ढूंढा जाए ?

सही तो भई
परिस्थितियों की बही पर
समय के दस्तख़त हैं ।
समय के साथ
लिखा-पढ़ी करने पर
बदल भी सकते हैं ।

फिर एक दिन ऐसे ही
बैठे-बैठे अनायास ही
सब समझ में आ गया ।

असल में काम सही है वही
जिसका मंसूबा नेक हो ।

मंगलवार, 12 मार्च 2019

पार उतराई




कोई दुख
होता है ऐसा
जो कभी भी
कहते नहीं बनता। 

कविता में नहीं,
कथा में नहीं,
बंदिश में नहीं,
रंगों में नहीं,
बस चुपचाप
बहता रहता है
भीतर कहीं,
चौड़े पाट की
नदी की तरह ।

तट कभी भी
मिलते नहीं ।
पर उम्मीद भी
कभी टूटी नहीं ।
अब भी 
लहरों में ढूंढती
नाव केवट की,
जो पार उतारती
प्रभु राम को भी,
लिए बिना ही
पार उतराई ।


शुक्रवार, 8 मार्च 2019

अब हमारी बारी



अभिमन्यु की वीरगति 
कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। 
बलिदान की परिणति 
न्याय की स्थापना ही होती। 

यही इस देश की नीति .. 

समस्त विश्व से प्रीति 
पर युद्ध में चाणक्य नीति। 
विजय सदैव मानवता की 
क्यूंकि लक्ष्य केवल शांति ही। 

जवानों ने खूब निभाई ज़िम्मेदारी 

अब आई हर भारत वासी की बारी। 

इसलिए आज का प्रण हो यही 

हम भूलें ना वीरों का बलिदान कभी। 
स्वाभिमान को भारत के ठेस ना लगे कभी 
ध्वज हमारा शान से लहराए यूँ ही।