तुम सरल
जल की बूंद,
ओस की बिंदी,
अश्रु का मोती,
निश्छल पारदर्शी ।
ओस की बिंदी,
अश्रु का मोती,
निश्छल पारदर्शी ।
क्षणभंगुर ..
पर अमिट
पावन स्मृति
क्षीर सम ।
पर अमिट
पावन स्मृति
क्षीर सम ।
सूर्य रश्मि का
परस पाकर
बन जाती
पारसमणि ।
परस पाकर
बन जाती
पारसमणि ।
तुम कहीं
जाती नहीं ।
विलय होती ।
बन जाती
अंतर्चेतना।
जाती नहीं ।
विलय होती ।
बन जाती
अंतर्चेतना।
सहसा
समा जाती,
सहृदय
पुष्प की
पंखुरियों में ।
समा जाती,
सहृदय
पुष्प की
पंखुरियों में ।
तुम निरी
इक बूंद !
इक बूंद !
बूंद में ही
खिलता
सजल सतरंगी
इंद्रधनुष ।
खिलता
सजल सतरंगी
इंद्रधनुष ।
"बिंदू सागर"
जवाब देंहटाएंअनमोल आभार ! अच्छा याद दिलाया आपने.
हटाएंबिंदु सागर झील है भुवनेश्वर में.और कहावत है ..बूँद बूँद में सागर.
"हर ज़र्रा चमकता है अनवारे इलाही से,
हर सांस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है !"
बहुत सुंदर नूपुर जी 🙏🌹
हटाएंरवीन्द्रजी, झील की गहराई से सागर की गहराई तक का सफ़र है ये.
हटाएंबहुत खूब.....सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंनमस्ते कामिनी जी. बहुत धन्यवाद.
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंनमस्ते जोशीजी.
हटाएंहर बूँद एक छंद है.
बहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना सखी.
हटाएंबहुत ही प्यारी और गहरी रचना है स्वयं बोध है आपका और बहुत सुंदर भी।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना आपकी इस सार्थक रचना की प्रेरणा बनी तो मेरी रचना भी सार्थक हुई सस्नेह आभार।
बात से बात निकली.
हटाएंऔर बात आगे बढ़ी.
एक संवाद हुआ.
बहुत अच्छा लगा.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-03-2019) को दोहे "पनप रहा षडयन्त्र" (चर्चा अंक-3289) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी.
हटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद, विश्वमोहन जी.
हटाएंबहुत सुन्दर सखी
जवाब देंहटाएंसादर
सखी,पारदर्शी बूँद का सौन्दर्य अनिर्वचनीय है.
हटाएंफिर भी कुछ कह दिया है.
बूंद में ही
जवाब देंहटाएंखिलता
सजल सतरंगी
इंद्रधनुष ।
बहुत ही लाजवाब...
वाह!!!
सुधा जी, हार्दिक आभार.
हटाएंकितनी अद्भुत बात है ना ! साहित्यिक भाव से देखो या विज्ञानं की दृष्टि से जानो, बूँद में इन्द्रधनुष तो समाया ही है !
सचमुच आपकी यह रचना बूँद में सागर ही है। इतने कम शब्दों में गहन अर्थ भर देने के लिए आप बधाई की पात्र हैं। सस्नेह।
जवाब देंहटाएंमीना जी, हार्दिक आभार. आपने इतने प्यार से पढ़ा. कुसुम जी की कविता की गहराई मेरे शब्दों में छलक गई.
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंकैलाशजी, बूँद थी ही ऐसी. धन्यवाद.
हटाएंतुम सरल
जवाब देंहटाएंजल की बूंद,
ओस की बिंदी,
अश्रु का मोती,
निश्छल पारदर्शी ।
अलग ही अंदाज की बेहतरीन रचना हेतु साधुवाद आदरणीय । बहुत-बहुत बधाई ।
सिन्हा जी, प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
हटाएंधन्यवाद श्वेता जी.
जवाब देंहटाएंअवश्य मिलना होगा.
सचमुच अलग भाव समेटे बौद्धिक सृजन प्रिय नुपूर् जी। हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंरेणु जी, हार्दिक आभार ।
हटाएंसहज अनुभूति थी ।
आपका नमस्ते पर सहर्ष स्वागत है ।
आती रहियेगा ।
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअनुराधा जी, अनंत आभार ।
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