बुधवार, 27 मार्च 2019

बूंद


तुम सरल 
जल की बूंद,
ओस की बिंदी,
अश्रु का मोती,
निश्छल पारदर्शी ।

क्षणभंगुर ..
पर अमिट
पावन स्मृति
क्षीर सम ।

सूर्य रश्मि का
परस पाकर
बन जाती
पारसमणि ।

तुम कहीं
जाती नहीं ।
विलय होती ।
बन जाती
अंतर्चेतना।

सहसा
समा जाती,
सहृदय
पुष्प की
पंखुरियों में ।

तुम निरी
इक बूंद !

बूंद में ही
खिलता
सजल सतरंगी
इंद्रधनुष ।





31 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. अनमोल आभार ! अच्छा याद दिलाया आपने.
      बिंदु सागर झील है भुवनेश्वर में.और कहावत है ..बूँद बूँद में सागर.

      "हर ज़र्रा चमकता है अनवारे इलाही से,
      हर सांस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है !"

      हटाएं
    2. बहुत सुंदर नूपुर जी 🙏🌹

      हटाएं
    3. रवीन्द्रजी, झील की गहराई से सागर की गहराई तक का सफ़र है ये.

      हटाएं
  2. बहुत ही प्यारी और गहरी रचना है स्वयं बोध है आपका और बहुत सुंदर भी।
    मेरी रचना आपकी इस सार्थक रचना की प्रेरणा बनी तो मेरी रचना भी सार्थक हुई सस्नेह आभार।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बात से बात निकली.
      और बात आगे बढ़ी.

      एक संवाद हुआ.
      बहुत अच्छा लगा.

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-03-2019) को दोहे "पनप रहा षडयन्त्र" (चर्चा अंक-3289) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. सखी,पारदर्शी बूँद का सौन्दर्य अनिर्वचनीय है.
      फिर भी कुछ कह दिया है.

      हटाएं
  5. बूंद में ही
    खिलता
    सजल सतरंगी
    इंद्रधनुष ।
    बहुत ही लाजवाब...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुधा जी, हार्दिक आभार.
      कितनी अद्भुत बात है ना ! साहित्यिक भाव से देखो या विज्ञानं की दृष्टि से जानो, बूँद में इन्द्रधनुष तो समाया ही है !

      हटाएं
  6. सचमुच आपकी यह रचना बूँद में सागर ही है। इतने कम शब्दों में गहन अर्थ भर देने के लिए आप बधाई की पात्र हैं। सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मीना जी, हार्दिक आभार. आपने इतने प्यार से पढ़ा. कुसुम जी की कविता की गहराई मेरे शब्दों में छलक गई.

      हटाएं
  7. तुम सरल
    जल की बूंद,
    ओस की बिंदी,
    अश्रु का मोती,
    निश्छल पारदर्शी ।
    अलग ही अंदाज की बेहतरीन रचना हेतु साधुवाद आदरणीय । बहुत-बहुत बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सिन्हा जी, प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

      हटाएं
  8. धन्यवाद श्वेता जी.
    अवश्य मिलना होगा.

    जवाब देंहटाएं
  9. सचमुच अलग भाव समेटे बौद्धिक सृजन प्रिय नुपूर् जी। हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रेणु जी, हार्दिक आभार ।
      सहज अनुभूति थी ।
      आपका नमस्ते पर सहर्ष स्वागत है ।
      आती रहियेगा ।

      हटाएं

कुछ अपने मन की भी कहिए