सही में यार !
बहुत मुश्किल है !
सही क्या ?
ग़लत क्या ?
इस सब की विवेचना ।
बहुत मुश्किल है !
सही क्या ?
ग़लत क्या ?
इस सब की विवेचना ।
कोई कितना करे ?
और कब तक करे ?
और कब तक करे ?
किंतु परंतु का कोई
अंतिम छोर है क्या ?
निष्कर्ष कैसे निकलेगा ?
अंतिम छोर है क्या ?
निष्कर्ष कैसे निकलेगा ?
रेगिस्तान में जल दिखना
तो छलना है ।
मृगतृष्णा है ।
क्षितिज जब तक
दूर है,
सबको मंज़ूर है ।
नज़र का नूर है ।
मगर पास गए अगर
तो कुछ भी नहीं है ।
भुलावा है ।
मनमोहक है पर
मात्र दृष्टिकोण है ।
दूर है,
सबको मंज़ूर है ।
नज़र का नूर है ।
मगर पास गए अगर
तो कुछ भी नहीं है ।
भुलावा है ।
मनमोहक है पर
मात्र दृष्टिकोण है ।
अब बताइए ।
क्या किया जाए ?
सही को कहाँ ढूंढा जाए ?
क्या किया जाए ?
सही को कहाँ ढूंढा जाए ?
सही तो भई
परिस्थितियों की बही पर
समय के दस्तख़त हैं ।
समय के साथ
लिखा-पढ़ी करने पर
बदल भी सकते हैं ।
फिर एक दिन ऐसे ही
बैठे-बैठे अनायास ही
सब समझ में आ गया ।
बैठे-बैठे अनायास ही
सब समझ में आ गया ।
असल में काम सही है वही
जिसका मंसूबा नेक हो ।
जिसका मंसूबा नेक हो ।
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अनुराधा जी.
हटाएंहोली की राम राम !
Waaow! ये कविता नही गीत है! बोहोत सून्दर लिखा है
जवाब देंहटाएंजिनके मन में गीत है,
हटाएंवो कविता को गीत समझते हैं.
ये ऐसे रंग हैं,
जो कभी छूटते नहीं.
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंहोली के रुपहले रंगों जैसी सुन्दर आपकी भावना.
हटाएंआभार मीना जी.
वाह !!! बहुत खूब ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंनमस्ते कामिनी जी.
हटाएंखूब फबें आप पर होली के रंग !
होली की राम राम ! आभार !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-03-2019) को "मन के मृदु उद्गार" (चर्चा अंक-3279) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी.
हटाएंमन के मृदु उद्गार जानने को मन उत्सुक है.
बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआपने पाई सुन्दरता
हटाएंसार्थक हुई रचना.
धन्यवाद. होली मुबारक !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअनीता जी, होली की राम राम !
हटाएंसुन्दरता कभी फीकी ना पड़े !
वाह बहुत सुन्दर नूपुरम जी।
जवाब देंहटाएंहोली की रंगारंग हार्दिक शुभकामनाएं ।
होली के रंग जी उठें, मन की वीणा की तान सुन कर.
हटाएंरंग छलकते रहें. वीणा बजती रहे.
हार्दिक आभार.
नमस्कार.
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसच और झूठ को अपने आईने से देखती हुई रचना, तथ्य परक व सम्यक् लगी। शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
हटाएंकिसी का सही भी किसी के लिए ग़लत होते देखा.
सोचा क्यूँ ना अपने ही मन को जाए टटोला.
आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 20 मार्च 2019 को साझा की गई है..
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।
मनवा कोरी चूनर है
जवाब देंहटाएंजीवन है रंगरेज़
रंग-रंगीली होली के रंग सर चढ़ कर बोलें !
और छुड़ाये ना छूटें !
पम्मी जी,शुक्रिया. जो इस महफ़िल में शामिल किया.
हर रंग के रचनाकारों को बधाई !