गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

चलते-चलते मिलेंगी राहें


जब चल ही पङे हैं,
तो पहुँच ही जाएंगे ।
जहाँ पहुँचना चाहते थे वहाँ ,
या रास्ता जहाँ ले चले वहाँ ।

रास्ता भूल भी गए तो क्या ?
एक नया रास्ता बनता जाएगा,
अगर चलने वाला चलता जाएगा ।

चलते-चलते ही तो बन जाते हैं रास्ते, 
भले ही ना बने हों हमारे वास्ते ।
रास्तों से निकलते हैं और नए रास्ते, 
हथेली की रेखाओं से मिलते-जुलते ।

चलते-चलते आसान होती जाती हैं राहें,
सुलझाते-सुलझाते खुलने लगती हैं गिरहें ।




चित्र साभार : श्री अनमोल माथुर 

बुधवार, 3 नवंबर 2021

सूरज के सिपाही



कुम्हार के चाक पर 
मिट्टी और नमी से 
गढ़े गए हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम।

बच्चों की हठ पर 
हाट-बाज़ार से 
खरीदे गए हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

कल्पना के मुखर
कच्चे-पक्के रंगों से 
जी भर रंगे गए हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

अपनी ज़मीन पर
काजल की कोठरी में 
तन कर डटे हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

छोटा है क़द पर
सूरज की रोशनी से 
लौ लगाते हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

दिन के छुपने पर
दिनकर की किरणों के 
पैदल सिपाही हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

छोटे ही सही पर
बङे-बङे तूफ़ानों से
टकरा जाते हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

नभ के छत्र पर पैबंद
धरा पर जगमग सितारे 
छोटी-सी उम्मीद हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

अलाव की आंच पर
धीमे-धीमे सुलगते 
टिमटिमाते हौसले हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

आओ माँ !


आओ माँ !

आओ माँ करने दुष्टता का संहार !
आओ माँ हो कर सिंह पर सवार !
अपनी दुर्बलताओं से हम गए हार !
तुम पग धरो धरणी पर करो प्रहार !
हमारे प्राणों में हो शक्ति का संचार !
अपने त्रिशूल से भय पर करो वार !
खड्ग से दूर करो दारिद्र्य विकार !
क्षितिज सम भवों पर सूर्य साकार !
जगद्धात्री माँ लेकर करूणा अपार !
माँ हरो मेरे अंतर में व्याप्त अंधकार !
माँ साहस ही देना वरदान इस बार !
आओ माँ आओ मंगल हो त्यौहार !
शंखनाद जयघोष सहित हो भव पार !

रविवार, 11 जुलाई 2021

कहानी


कहानी कहानी होती है ।
कितनी भी सच्ची लगे !
जितनी भी दिल को छुए ।
कहानी कहानी होती है ।
कहानियों से क्या होता है ?

कहानियों से क्या होता है ?
हाँ , कुछ याद रह जाती हैं ।
दिल में जगह बना लेती हैं ।
नेक इरादे तराश देती हैं ।
पर सच कहाँ हो पाती हैं ?
कहानी कहानी होती है ।

ईश्वर करे ! खांटी कहानी ये
सच्ची दास्ताँ ही बन जाए ।
हर सरल स्त्री के जीवन में, 
हर उस आदमी के हिस्से में 
जो कमज़ोर माना जाता है,
थोड़ा-सा हौसला आ जाए,
तो कहानी ही बदल जाए ।


चित्र साभार : श्री रौनक़ चौहान 


मंगलवार, 15 जून 2021

प्रतिबिंब



फूल की पंखुरी
या पत्ते पर ठिठकी
पानी की इक बूँद, 
क्षणभंगुर जीवन के
अप्रतिम सौंदर्य की 
प्रामाणिक छवि है ।

ये भी हो सकता है 
यह पारदर्शी बूँद 
चुपके से ढुलका
नमकीन आंसू है,
जप माला का 
टूटा मनका है या
आस का मोती है ।

संभवतः कोई कहे
श्वास भर यह बूँद 
संवेदनशील ह्रदय का
निश्छल भाव है,
प्रकृति का हास है,
जिसे सूर्य रश्मि 
स्पर्श कर ले यदि
सतरंगीं इंद्रधनुष की 
रूपहली कोर है ।

जिसकी जैसी 
है मनःस्थिति, 
यह बूँद उसी
अनुभूति का
प्रतिबिंब है ।
 

मंगलवार, 25 मई 2021

करावलंबन

कच्ची उम्र के बच्चे
अनुभव के कच्चे
छोटे-छोटे हादसे
क्यों सह नहीं पाते ?

क्यों उनके भीतर
जवान होता बच्चा
इतना सहम गया
कि आत्मघात करना पड़ा ??

उम्मीद बर ना आये
तो जान पर बन आये ?
ऐसा क्या खो बैठे ?
जिसकी भरपाई ना हो पाए ?

उनके भीतर कहीं
गहरी खाई थी क्या ?
जो पाँव फिसले
तो संभल भी ना पाए ?

क्या अपने चूक गए
इनके भीतर उठे
भूचाल के झटके
वक़्त रहते समझने में ?

माँ-बाप ने ला-ला के
खिलौने जैसे सपने दिए
पर क्या वो देना भूल गए
सुरक्षा कवच संस्कारों के ?

फिर किसी बच्चे ने अपने
प्राण तिरोहित कर दिए
यार-दोस्त देखते रह गए
माँ-बाप स्तब्ध रह गए

दुनिया ने सिखाया कैसे
सब कुछ हासिल करना
पर किसी ने ना सिखाया
ना मिले तो आगे बढ़ें कैसे ?

खाई में गिर के वो बचेगा कैसे ?
गोविंद आपने थामा था जैसे
भक्त प्रह्लाद को अपने हाथों में
अपना लेना उसे भी अंक में भर के ।

मंगलवार, 18 मई 2021

गिरिधर


जब तब मैंने 
उलाहना दे दे 
खूब सताया है 
गोविंद को अपने,
रो-रो के व्यर्थ में 
पाथर कह डाला है,
अपने कष्ट के झोंटे में 
कान्हा को ठेल दिया है..
पर गोविन्द ने कब मुँह फेरा है ?
दिवारात्रि अनर्गल प्रलाप को मेरे
शीश पर धर कर कमल शांत किया है ।
केशव तुम्हें ज्ञात है जग में कौन अपना है ।
आसरा एकमेव एकमेव एकमेव बस तुम्हारा है ।
दुख-द्वंद मेरा था गिरिधर पर भार तुमने उठाया है ।