बुधवार, 19 जनवरी 2022

जिद्दी है ज़िंदगी



राह बहुत लंबी 
बाकी है अभी.
कोई बात नहीं.

कट जायेगा ये भी.
वक़्त बुरा ही सही.
एक दिन बदलेगा ही.

कभी धूप होगी.
कभी छाँव भी.
कभी घटा बरसेगी.
पवन चुभेगी तीर सी.

कभी बात निकलेगी 
बीते दिनों की.
कभी फ़िक्र होगी 
आने वाले कल की.

कभी होगी दोस्ती 
कुछ देकर जाएगी.
कभी यारी टूटेगी भी 
कुछ सिखा कर जाएगी.

ठोकर भी लगेगी 
पर संभल जाएगी.
जिद्दी है ज़िंदगी 
रास्ते ख़ुद बनाएगी.

रविवार, 16 जनवरी 2022

जीवन का स्पंदन



आज एक बङा-सा लाल गुलाब खिला
सजीले गुलाब की रंगत का क्या कहना 
प्रभात का सूरज पहने नारंगी झबला 
एक-एक पंखुरी का हौले से खिलना

उदय होते बाल सूर्य की स्वर्णिम आभा 
खिलते फूल पर ओस की बूँद का ठहरना 
कच्ची धूप के स्पर्श से इन्द्रधनुष बन जाना 
जीवन के स्पंदन का मधुर राग बन जाना 


शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

समय का अल्पविराम


हो रहा है इस बरस का
अंतिम सूर्यास्त ।
कह रहा है अलविदा 
ढलते हुए आज । 

वक्त रहते कह डालो
जी में अटकी बात ।
समय बीतने से पहले 
सुलझा लो उलझे याम ।

सांझ का पट ढल रहा
सजा रंगों के साज़ ।
क्षितिज सुर साधता
जपता सहस्रनाम ।

यायावर है फिर चल देगा
समय का अल्पविराम ।
कभी तुम्हारे कभी हमारे 
राम संवारें सबके काम ।





मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

पन्ना पलटने से पहले


पन्ना पलटने से पहले
एक बार बस
पीछे पलट कर देखना ।
कुछ पल
एकांत में पढ़ना,
लिखा प्रारब्ध का ।

क्या पीछे छूट गया,
क्या छोङ देना चाहिए ।
छोङ देना चाहिए
अफ़सोस और ग्लानि ।
ये आंसुओं से गीली
लकङियां हैं,
इनसे पछतावे का
धुआँ निकलता है बस,
चूल्हा नहीं जलता ।

पर करते-करते अभ्यास
जब-जब जले हाथ,
करना नहीं प्रलाप ।
अनुभव से सीख लेना
और निरंतर करना प्रयास ।
पन्ना पलट देना तत्पश्चात ।

खोल कर एक नया पन्ना
फिर से करना शुरूआत ।



गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

चलते-चलते मिलेंगी राहें


जब चल ही पङे हैं,
तो पहुँच ही जाएंगे ।
जहाँ पहुँचना चाहते थे वहाँ ,
या रास्ता जहाँ ले चले वहाँ ।

रास्ता भूल भी गए तो क्या ?
एक नया रास्ता बनता जाएगा,
अगर चलने वाला चलता जाएगा ।

चलते-चलते ही तो बन जाते हैं रास्ते, 
भले ही ना बने हों हमारे वास्ते ।
रास्तों से निकलते हैं और नए रास्ते, 
हथेली की रेखाओं से मिलते-जुलते ।

चलते-चलते आसान होती जाती हैं राहें,
सुलझाते-सुलझाते खुलने लगती हैं गिरहें ।




चित्र साभार : श्री अनमोल माथुर 

बुधवार, 3 नवंबर 2021

सूरज के सिपाही



कुम्हार के चाक पर 
मिट्टी और नमी से 
गढ़े गए हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम।

बच्चों की हठ पर 
हाट-बाज़ार से 
खरीदे गए हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

कल्पना के मुखर
कच्चे-पक्के रंगों से 
जी भर रंगे गए हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

अपनी ज़मीन पर
काजल की कोठरी में 
तन कर डटे हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

छोटा है क़द पर
सूरज की रोशनी से 
लौ लगाते हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

दिन के छुपने पर
दिनकर की किरणों के 
पैदल सिपाही हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

छोटे ही सही पर
बङे-बङे तूफ़ानों से
टकरा जाते हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

नभ के छत्र पर पैबंद
धरा पर जगमग सितारे 
छोटी-सी उम्मीद हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

अलाव की आंच पर
धीमे-धीमे सुलगते 
टिमटिमाते हौसले हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

आओ माँ !


आओ माँ !

आओ माँ करने दुष्टता का संहार !
आओ माँ हो कर सिंह पर सवार !
अपनी दुर्बलताओं से हम गए हार !
तुम पग धरो धरणी पर करो प्रहार !
हमारे प्राणों में हो शक्ति का संचार !
अपने त्रिशूल से भय पर करो वार !
खड्ग से दूर करो दारिद्र्य विकार !
क्षितिज सम भवों पर सूर्य साकार !
जगद्धात्री माँ लेकर करूणा अपार !
माँ हरो मेरे अंतर में व्याप्त अंधकार !
माँ साहस ही देना वरदान इस बार !
आओ माँ आओ मंगल हो त्यौहार !
शंखनाद जयघोष सहित हो भव पार !