विलक्षण है निस्संदेह
आपकी बहुआयामी प्रतिभा ।
किंतु क्या करें बताइए
आपकी विद्वता का ?
जिसके भार तले
साधारण जन मन
दबते चले जाते हैं ।
धराशायी हो जाता है
आत्मविश्वास इनका,
तिनका-तिनका जोङा
जो साहस जुटा कर ।
लाभ क्या हुआ?
यदि ज्ञान आपका
हमेशा आंखें तरेरता,
तत्काल कर दे स्वाहा
किसी की सीखने की
प्रबल इच्छाशक्ति ?
हमने सुना तो ये था,
फल-फूल से लदा
वृक्ष और झुक जाता है ।
जो जितना ज़्यादा
जानता है,
उतना ही विनम्र
होता चला जाता है ।
यदि लक्ष्य था विद्या का
प्रभुत्व सिद्ध करना,
तो चाबुक ही क्या बुरा था,
अज्ञानी को हांकने के लिए ?
तुम बिल्कुल भूल गए क्या ?
समाज में सबको नहीं मिलता
अवसर एक जैसा सीखने का ।
गुरुता वो नहीं जो किसी सरल सीखने वाले को
खामियां गिनवाए,अहसास कराए तुच्छता का ।
विद्या है सजल आशीष माँ का,सदा साथ रहता ।
शिक्षा है एकमात्र अनिवार्य अवलंब जीवन का ।
प्रथम संस्कार है सबसे सीखते रहने की विनम्रता ।
दीक्षा मंत्र है निर्भय हो प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता ।
अनुगत को सजग स्वालंबन में ढालने की दक्षता ।
अंतर में अंकुर आत्मविश्वास का रोपने की उदारता ।