सब कुछ
छिन जाने के बाद भी
कुछ बचा रहता है ।
सब समाप्त
होने के बाद भी
शेष रहता है जीवन,
कहीं न कहीं ।
सब कुछ
हार जाने के बाद भी,
बनी रहती है
विजय की कामना ।
फिर तुम्हें क्यों लगता है,
कि तुममें कुछ नहीं बचा ?
न कोई इच्छा,
न कोई भावना ?
न ही तुम्हारी कोई उपयोगिता ..
अरे! इस सृष्टि में तो,
ठूंठ भी
बेकार नहीं जाता ।
टटोलो अपने भीतर ।
संभाल कर,
और बताओ क्या
कुछ नहीं मिला ?
क्या कहा ?
बस ढांचा ?
अंदर से खोखला ..
तो क्या ?
खोखला बांस भी,
तमाम छिद्रान्वेषण के बावजूद,
केशव के प्राण फूंकने पर,
बांसुरी बन जाता है ।
फिर तुम तो मनुष्य हो ।
जो बन सके, वो करो ।
चरणों की रज ही बनो,
जो न बन सको ..
गिरिधारी की बांसुरी ।
बहुत बहुत सुन्दर प्रशंसनीय
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद,आलोक जी.नमस्ते.
Deleteबहुत बहुत प्रशंसनीय
ReplyDeleteपुनः धन्यवाद.
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 24 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद, सखी.
Deleteसांझ ढले मुखर हो मौन.
आहा। अति सुन्दर। आपने कविता में समझा दिया कि क्यों बांस की ही बांसुरी बनती है, क्यों ये सोने चांदी और रतन के जड़ाव के आभूषण से भी अधिक महत्वपूर्ण है ठाकुर जी के लिए।
ReplyDeleteहम राम बल के अभिमानी.
Deleteहम कृष्ण बल के अभिमानी.
बड़ी सुन्दर बात कही आपने. धन्यवाद सा.
बहुत सुन्दर और सशक्त रचना।
ReplyDeleteराष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।
नमस्ते शास्त्रीजी.
Deleteआपके आशीर्वाद से सुमति बनी रहे.
बेटियों से घर में हमेशा रौनक रहती है. दिल में तसल्ली रहती है.
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 25 जनवरी 2021 को 'शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं' (चर्चा अंक-3957) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
धन्यवाद, रवीन्द्र जी. वसंत की आहत सुनाई दे रही है चर्चा में.
Deleteवाह
ReplyDeleteशुक्रिया, जोशी जी.
Deleteसच कहा आपने सखी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
सादर
धन्यवाद,अनीता जी.
Deleteआपको अच्छी लगी, यह जान कर ख़ुशी हुई.
सुंदर।
ReplyDeleteज्योति जी, धन्यवाद.
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया.
DeleteBahut hi sundar baisa
ReplyDeleteSimple and sweet but with a deep meaning ♥️
ह्रदय,तल से आभार, सा.
Deleteजितना गहरा पानी, उतना साफ़.
वाह क्या बात कही कि ...अरे! इस सृष्टि में तो,
ReplyDeleteठूंठ भी
बेकार नहीं जाता । बहुत खूब
सहृदय सराहना के लिए सविनय धन्यवाद. अलकनंदा जी, बहुत दिनों बाद आपका नमस्ते पर आना हुआ. आती रहिएगा. अपने विचार प्रकट करती रहिएगा.
Deleteप्रभावशाली सृजन।
ReplyDeleteअनेकानेक धन्यवाद.
DeleteAtyant prernadayi kavita hare pathik ko rasta dikhane wale udgar prakat kiye hain.
ReplyDelete"दूर चलने के बटोही,बाट की पहचान कर ले."
Deleteधन्यवाद, बुआ.
क्षमा कीजिएगा. सुधार :
Delete"पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले."
बिल्कुल, सब खत्म नहीं होता खत्म हो जाने के बाद भी..
ReplyDeleteकुछ तो शेष रह जाता है..मूल में ..चाहे हो वो याद ही..
जो ना रहे ये भी तो..ईश्वर की शरण है.. अनंतिम साध सी..
बहुत अच्छी कविता है आपकी..शुभ संध्या
आपकी प्यार भरी समीक्षा पढ़ कर मन हर्षित हुआ.
Deleteनमस्ते पर आपका सहर्ष स्वागत है.
आपके विचार जानने की सदा उत्सुकता रहेगी. धन्यवाद.