सब कुछ
छिन जाने के बाद भी
कुछ बचा रहता है ।
सब समाप्त
होने के बाद भी
शेष रहता है जीवन,
कहीं न कहीं ।
सब कुछ
हार जाने के बाद भी,
बनी रहती है
विजय की कामना ।
फिर तुम्हें क्यों लगता है,
कि तुममें कुछ नहीं बचा ?
न कोई इच्छा,
न कोई भावना ?
न ही तुम्हारी कोई उपयोगिता ..
अरे! इस सृष्टि में तो,
ठूंठ भी
बेकार नहीं जाता ।
टटोलो अपने भीतर ।
संभाल कर,
और बताओ क्या
कुछ नहीं मिला ?
क्या कहा ?
बस ढांचा ?
अंदर से खोखला ..
तो क्या ?
खोखला बांस भी,
तमाम छिद्रान्वेषण के बावजूद,
केशव के प्राण फूंकने पर,
बांसुरी बन जाता है ।
फिर तुम तो मनुष्य हो ।
जो बन सके, वो करो ।
चरणों की रज ही बनो,
जो न बन सको ..
गिरिधारी की बांसुरी ।
बहुत बहुत सुन्दर प्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद,आलोक जी.नमस्ते.
हटाएंबहुत बहुत प्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंपुनः धन्यवाद.
हटाएंआहा। अति सुन्दर। आपने कविता में समझा दिया कि क्यों बांस की ही बांसुरी बनती है, क्यों ये सोने चांदी और रतन के जड़ाव के आभूषण से भी अधिक महत्वपूर्ण है ठाकुर जी के लिए।
जवाब देंहटाएंहम राम बल के अभिमानी.
हटाएंहम कृष्ण बल के अभिमानी.
बड़ी सुन्दर बात कही आपने. धन्यवाद सा.
बहुत सुन्दर और सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।
नमस्ते शास्त्रीजी.
हटाएंआपके आशीर्वाद से सुमति बनी रहे.
बेटियों से घर में हमेशा रौनक रहती है. दिल में तसल्ली रहती है.
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 25 जनवरी 2021 को 'शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं' (चर्चा अंक-3957) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
धन्यवाद, रवीन्द्र जी. वसंत की आहत सुनाई दे रही है चर्चा में.
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, जोशी जी.
हटाएंसच कहा आपने सखी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
सादर
धन्यवाद,अनीता जी.
हटाएंआपको अच्छी लगी, यह जान कर ख़ुशी हुई.
सुंदर।
जवाब देंहटाएंज्योति जी, धन्यवाद.
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया.
हटाएंBahut hi sundar baisa
जवाब देंहटाएंSimple and sweet but with a deep meaning ♥️
ह्रदय,तल से आभार, सा.
हटाएंजितना गहरा पानी, उतना साफ़.
वाह क्या बात कही कि ...अरे! इस सृष्टि में तो,
जवाब देंहटाएंठूंठ भी
बेकार नहीं जाता । बहुत खूब
सहृदय सराहना के लिए सविनय धन्यवाद. अलकनंदा जी, बहुत दिनों बाद आपका नमस्ते पर आना हुआ. आती रहिएगा. अपने विचार प्रकट करती रहिएगा.
हटाएंप्रभावशाली सृजन।
जवाब देंहटाएंअनेकानेक धन्यवाद.
हटाएंAtyant prernadayi kavita hare pathik ko rasta dikhane wale udgar prakat kiye hain.
जवाब देंहटाएं"दूर चलने के बटोही,बाट की पहचान कर ले."
हटाएंधन्यवाद, बुआ.
क्षमा कीजिएगा. सुधार :
हटाएं"पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले."
धन्यवाद, सखी.
जवाब देंहटाएंसांझ ढले मुखर हो मौन.
बिल्कुल, सब खत्म नहीं होता खत्म हो जाने के बाद भी..
जवाब देंहटाएंकुछ तो शेष रह जाता है..मूल में ..चाहे हो वो याद ही..
जो ना रहे ये भी तो..ईश्वर की शरण है.. अनंतिम साध सी..
बहुत अच्छी कविता है आपकी..शुभ संध्या
आपकी प्यार भरी समीक्षा पढ़ कर मन हर्षित हुआ.
हटाएंनमस्ते पर आपका सहर्ष स्वागत है.
आपके विचार जानने की सदा उत्सुकता रहेगी. धन्यवाद.