शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

संदर्भ जीवन का


इस मिथ्या जगत में 
एक सच्ची अनुभूति की
आस है मुझे, इसलिए 
हर करवट में दुनिया की
दिलचस्पी है मेरी ।

इतने शानदार खेल-तमाशे 
चप्पे-चप्पे पर जिसने सजाए,
वो जो हो हमारे-तुम्हारे लिए,
नीरस तो नहीं होगा ।

कुछ तो होगा ऐसा,
जिसके लिए जी-जान लगा के
मेंहदी की तरह रचता गया ..
रचता गया संसार चक्रव्यूह जैसा,
किसके लिए  ?
अभिमन्यु के लिए  ??
छल और बल की क्षुद्र विभीषिका 
डिगा ना पाई जिसकी सत्यनिष्ठा ।

इसीलिए मैंने कहा ना ।
इस विलक्षण अनुभूति का
मुझे भी है स्वाद चखना ।

सबके जीवन में घटती है एक लोककथा ।
हर पङाव पर मिलती है कोई संभावना ।
भ्रम को भेदने वाला कोई तो बाण होगा ।
अभिमन्यु छला गया पर परास्त ना हुआ । 
उसके प्राणों में जिस स्वर ने अलख जगाया
निर्भय चेतना का ... कभी तो भान होगा
मनमोहन की बाँसुरी के उस सम्मोहन का ।

17 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 23 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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    1. सुप्रभात श्वेता सखी ।
      बहुत धन्यवाद ।
      संध्या समय होगी मुलाक़ात ।

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  2. Netaji k janmdin par tumhari rachna parhkar Aanand aa gaya.aage hi aage barhaye ja kadam.

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  3. उत्तर
    1. आपका नमस्ते पर हार्दिक स्वागत है ।
      आभार सहित धन्यवाद ।

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  4. धन्यवाद, शास्त्री जी ।
    पराक्रम दिवस हम सब में साहस का संचार करे ।

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  5. बहुत ही सुंदर...सराहनीय दर्शन।
    सादर

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    1. धन्यवाद,अनीता जी. आपकी सराहना सर-आँखों पर. नमस्ते.

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  6. राधे राधे दीदी
    बहुत सुंदर, कविता ने अंतस् को छुआ है । जीवन के सार को समग्रता से लिए हुए मनोहर दर्शन, सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर

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    1. राधे राधे वरुण जी. नमस्ते पर आपका हार्दिक स्वागत है. आपकी भावपूर्ण समीक्षा पढ़ कर मन कृतज्ञ है. पढ़ते रहिएगा.संवाद आगे बढ़ाते रहिएगा.

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  7. संदर्भ जीवन का..
    अलौकिक शक्ति को नमन करती आपकी रचना बहुत सुंदर है मनमोहन की तरह..

    सादर प्रणाम

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