रविवार, 24 जनवरी 2021

निरे बांस की बांसुरी

सब कुछ 
छिन जाने के बाद भी 
कुछ बचा रहता है ।

सब समाप्त 
होने के बाद भी 
शेष रहता है जीवन, 
कहीं न कहीं ।

सब कुछ 
हार जाने के बाद भी, 
बनी रहती है 
विजय की कामना ।

फिर तुम्हें क्यों लगता है,
कि तुममें कुछ नहीं बचा ?
न कोई इच्छा, 
न कोई भावना ?
न ही तुम्हारी कोई उपयोगिता  ..

अरे! इस सृष्टि में तो,
ठूंठ भी 
बेकार नहीं जाता ।

टटोलो अपने भीतर ।
संभाल कर,
और बताओ क्या 
कुछ नहीं मिला  ?

क्या कहा  ?
बस ढांचा ?
अंदर से खोखला ..
तो क्या  ?

खोखला बांस भी, 
तमाम छिद्रान्वेषण के बावजूद, 
केशव के प्राण फूंकने पर,
बांसुरी बन जाता है ।

फिर तुम तो मनुष्य हो ।
जो बन सके, वो करो ।
चरणों की रज ही बनो,
जो न बन सको ..
गिरिधारी की बांसुरी ।

30 टिप्‍पणियां:

  1. आहा। अति सुन्दर। आपने कविता में समझा दिया कि क्यों बांस की ही बांसुरी बनती है, क्यों ये सोने चांदी और रतन के जड़ाव के आभूषण से भी अधिक महत्वपूर्ण है ठाकुर जी के लिए।

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    1. हम राम बल के अभिमानी.
      हम कृष्ण बल के अभिमानी.

      बड़ी सुन्दर बात कही आपने. धन्यवाद सा.

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  2. बहुत सुन्दर और सशक्त रचना।
    राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।

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    1. नमस्ते शास्त्रीजी.
      आपके आशीर्वाद से सुमति बनी रहे.

      बेटियों से घर में हमेशा रौनक रहती है. दिल में तसल्ली रहती है.

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 25 जनवरी 2021 को 'शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं' (चर्चा अंक-3957) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. धन्यवाद, रवीन्द्र जी. वसंत की आहत सुनाई दे रही है चर्चा में.

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  4. सच कहा आपने सखी।
    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर

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    1. धन्यवाद,अनीता जी.
      आपको अच्छी लगी, यह जान कर ख़ुशी हुई.

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  5. Bahut hi sundar baisa
    Simple and sweet but with a deep meaning ♥️

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    1. ह्रदय,तल से आभार, सा.
      जितना गहरा पानी, उतना साफ़.

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  6. वाह क्या बात कही क‍ि ...अरे! इस सृष्टि में तो,
    ठूंठ भी
    बेकार नहीं जाता । बहुत खूब

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    1. सहृदय सराहना के लिए सविनय धन्यवाद. अलकनंदा जी, बहुत दिनों बाद आपका नमस्ते पर आना हुआ. आती रहिएगा. अपने विचार प्रकट करती रहिएगा.

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  7. Atyant prernadayi kavita hare pathik ko rasta dikhane wale udgar prakat kiye hain.

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    1. "दूर चलने के बटोही,बाट की पहचान कर ले."

      धन्यवाद, बुआ.

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    2. क्षमा कीजिएगा. सुधार :

      "पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले."

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  8. धन्यवाद, सखी.
    सांझ ढले मुखर हो मौन.

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  9. बिल्कुल, सब खत्म नहीं होता खत्म हो जाने के बाद भी..
    कुछ तो शेष रह जाता है..मूल में ..चाहे हो वो याद ही..
    जो ना रहे ये भी तो..ईश्वर की शरण है.. अनंतिम साध सी..

    बहुत अच्छी कविता है आपकी..शुभ संध्या

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    1. आपकी प्यार भरी समीक्षा पढ़ कर मन हर्षित हुआ.
      नमस्ते पर आपका सहर्ष स्वागत है.
      आपके विचार जानने की सदा उत्सुकता रहेगी. धन्यवाद.

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