बुधवार, 20 मार्च 2019

गौरैया खूब चहको तुम




नन्ही गौरैया आओ तुम ।
अपना घर बसाओ तुम ।

मेरे छोटे-से घर की
छत का कोना, खिड़की,
बालकनी, दुछत्ती, अहाता,
सब बाट जोहते हैं तुम्हारी ।

यहाँ घोंसला बनाओ ।
दिन भर दाना चुगो ।
प्यास लगे तो पानी पियो ।
ये सब यहाँ मिलेगा ।
और प्यार मिलेगा ।
ज़्यादा कुछ नहीं,
देने को
हमारे पास भी ।
तुम्हें भी तो
चाहिए बस इतना ही ।

तुम्हारा रहना आसपास
होता है शुभ ।
तुम चहचहाती हो जब,
चहकने लगता है जीवन ।




गौरैया के घर की चित्रकारी : श्रीमती रेखा शांडिल्य 

रविवार, 17 मार्च 2019

सही की बही




सही में यार !
बहुत मुश्किल है !
सही क्या ?
ग़लत क्या ?
इस सब की विवेचना ।
कोई कितना करे ?
और कब तक करे ?
किंतु परंतु का कोई
अंतिम छोर है क्या ?
निष्कर्ष कैसे निकलेगा ?

रेगिस्तान में जल दिखना
तो छलना है ।
मृगतृष्णा है ।

क्षितिज जब तक
दूर है,
सबको मंज़ूर है ।
नज़र का नूर है ।
मगर पास गए अगर
तो कुछ भी नहीं है ।
भुलावा है ।
मनमोहक है पर
मात्र दृष्टिकोण है ।

अब बताइए ।
क्या किया जाए ?
सही को कहाँ ढूंढा जाए ?

सही तो भई
परिस्थितियों की बही पर
समय के दस्तख़त हैं ।
समय के साथ
लिखा-पढ़ी करने पर
बदल भी सकते हैं ।

फिर एक दिन ऐसे ही
बैठे-बैठे अनायास ही
सब समझ में आ गया ।

असल में काम सही है वही
जिसका मंसूबा नेक हो ।

मंगलवार, 12 मार्च 2019

पार उतराई




कोई दुख
होता है ऐसा
जो कभी भी
कहते नहीं बनता। 

कविता में नहीं,
कथा में नहीं,
बंदिश में नहीं,
रंगों में नहीं,
बस चुपचाप
बहता रहता है
भीतर कहीं,
चौड़े पाट की
नदी की तरह ।

तट कभी भी
मिलते नहीं ।
पर उम्मीद भी
कभी टूटी नहीं ।
अब भी 
लहरों में ढूंढती
नाव केवट की,
जो पार उतारती
प्रभु राम को भी,
लिए बिना ही
पार उतराई ।


शुक्रवार, 8 मार्च 2019

अब हमारी बारी



अभिमन्यु की वीरगति 
कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। 
बलिदान की परिणति 
न्याय की स्थापना ही होती। 

यही इस देश की नीति .. 

समस्त विश्व से प्रीति 
पर युद्ध में चाणक्य नीति। 
विजय सदैव मानवता की 
क्यूंकि लक्ष्य केवल शांति ही। 

जवानों ने खूब निभाई ज़िम्मेदारी 

अब आई हर भारत वासी की बारी। 

इसलिए आज का प्रण हो यही 

हम भूलें ना वीरों का बलिदान कभी। 
स्वाभिमान को भारत के ठेस ना लगे कभी 
ध्वज हमारा शान से लहराए यूँ ही।  




गुरुवार, 7 मार्च 2019

मुझे क्या करना है ?




सीमा पर फ़ौजी तो
हमेशा ही तैनात रहा।
क्या हमें भी अपने
कर्तव्य का भान रहा ?

युद्ध
हर जगह चल रहा है। 
युद्ध
हर कोई लड़ रहा है। 

कोई सीमा का प्रहरी है। 
कोई घर में युद्ध बंदी है। 

युद्ध की कोई
सीमा है क्या ?
युद्ध की कोई
गरिमा है क्या ?

भीतर हम सबके 
एक लक्ष्मण रेखा है। 
अपने सिवा इसे
किसी ने नहीं देखा है। 
लेकिन हम सबको पता है.
रावण क्यों बुरा है। 

सीमा पर जब जवान
जान हथेली पर लिए
लड़ रहा है  .. 
जवान का परिवार
अपनी भावनाओं से
जूझ रहा है  .. 
देश के 
हर नागरिक की भूमिका,
कृतज्ञ हो कर, 
धैर्य धर यह सोचना  .. 
मुझे क्या करना है ?

मुझे क्या करना है ?
कैसे सेना के त्याग का
अभिनन्दन करना है ?

हमको अपने-अपने बल पर,
अपने-अपने मोर्चे पर 
रोज़ एक युद्ध लड़ना है। 
रोज़ एक युद्ध जीतना है। 
अंदरूनी ताक़त से 
ज़िम्मेदार भारत 
बने रहना है।  
दृढ़ संकल्प और मेहनत से,
खुशहाल भारत गढ़ना है. 

रविवार, 3 मार्च 2019

शंखनाद




आज बड़े दिनों बाद 
दिलों में जोश आया है। 
अर्जुन ने आज फिर 
गांडीव उठाया है। 

आज हवाओं ने झूम कर 
फ़ख्र का परचम लहराया है। 
आज नभ में शौर्य का 
प्रखर सूर्य जगमगाया है। 

बारह रणवीरों ने आज 

अभय का कर शंखनाद 
आतंक को ललकारा है !
शठता को पछाड़ा है। 

जननी जन्मभूमि का, 
माँ भारती के अश्रुजल का, 
अपनी माँ के दूध का 
क़र्ज़ उतारा है। 

देश सेवा में  जिस-जिसने 

जीवन का बलिदान किया, 
हर उस सेनानी का 
मान बढ़ाया है।

आज बड़े दिनों के बाद 

शहीदों के अपनों को 
थोड़ा चैन आया है। 
एक आंसू ढुलक आया है। 

आज बड़े दिनों बाद 
दिलों में जोश आया है। 
अर्जुन ने आज फिर 
गांडीव उठाया है। 




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बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

जोश



जब तक होश है। 
रग-रग में जोश है। 

जिगर में 
जोश के बुलबुले नहीं ,
जोश के जुगनू भी नहीं 
जो पलक झपकने तक ही 
मौजूद रहें। 

ये जो 
कौंधता है 
मेरे वजूद में ,
बिजली की तरह  . . 

ये बरसों की तपस्या है। 
ठोकर खा-खा कर जो संभला है,
आग में तप कर जो निखरा है,
वो फ़ौलादी हौसला है। 

ये वीरता का अखंड दिया है। 
जो अलख जगाने वाला है।    
तिरंगे की सौगंध है। 
माँ से बच्चों का वादा है। 

दुष्टता का शत्रु है। 
मानवता का मित्र है। 

जब तक होश है। 
रग रग में जोश है।       



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