सीमा पर फ़ौजी तो
हमेशा ही तैनात रहा।
क्या हमें भी अपने
कर्तव्य का भान रहा ?
युद्ध
हर जगह चल रहा है।
युद्ध
हर कोई लड़ रहा है।
कोई सीमा का प्रहरी है।
कोई घर में युद्ध बंदी है।
युद्ध की कोई
सीमा है क्या ?
युद्ध की कोई
गरिमा है क्या ?
भीतर हम सबके
एक लक्ष्मण रेखा है।
अपने सिवा इसे
किसी ने नहीं देखा है।
लेकिन हम सबको पता है.
रावण क्यों बुरा है।
सीमा पर जब जवान
जान हथेली पर लिए
लड़ रहा है ..
जवान का परिवार
अपनी भावनाओं से
जूझ रहा है ..
देश के
हर नागरिक की भूमिका,
कृतज्ञ हो कर,
धैर्य धर यह सोचना ..
मुझे क्या करना है ?
मुझे क्या करना है ?
कैसे सेना के त्याग का
अभिनन्दन करना है ?
हमको अपने-अपने बल पर,
अपने-अपने मोर्चे पर
रोज़ एक युद्ध लड़ना है।
रोज़ एक युद्ध जीतना है।
अंदरूनी ताक़त से
ज़िम्मेदार भारत
बने रहना है।
दृढ़ संकल्प और मेहनत से,
खुशहाल भारत गढ़ना है.
शुक्रिया शास्त्रीजी ।
जवाब देंहटाएंबात को आगे बढ़ने के लिए ।
बहुत बहुत सुंदर भावना हर एक के मन्न और अपनाने योग्य
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति ।
धन्यवाद.मन की वीणा यह कहती है ..
हटाएंउत्तरदायित्व हम सबका साझा है.
बहुत सुंदर रचना 👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद. हम सबको मिल कर अपने भारत की सुन्दरता को सहेजना है.
हटाएंबहुत सुन्दर ,सार्थक.
जवाब देंहटाएंलाजवाब भावाभिव्यक्ति...
वाह!!!
आभार सुधाजी.
हटाएंविडंबना यह है कि हमें ख़ुद को याद दिलाना पड़ रहा है - हमारा फ़र्ज़ क्या है ?
भारत में जो होता है, उसमें हम सब की हिस्सेदारी है.
बहुत सुंदर भाव!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्वमोहन जी.
जवाब देंहटाएंइतनी बहस और तू तू मैं मैं करने वालों को ये भूलते देखा कि देशभक्ति अपेक्षा नहीं, उत्तरदायित्व और सेवा से होती है.शोर से भ्रमित आक्रोश को याद दिलाना भी ज़रूरी हो गया
है.
बहुत ही शानदार और सराहनीय
जवाब देंहटाएंअनेकानेक धन्यवाद संजय भास्कर जी.
हटाएंदेश अपना.
मसले अपने,
दूसरे क्यों सुलझायें ?
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