सोमवार, 18 फ़रवरी 2019
सोमवार, 11 फ़रवरी 2019
रविवार, 10 फ़रवरी 2019
ऐसा वर दो माँ
सरस्वती माँ ।
वरद हस्त शीश पर रख दो माँ ।
सहस्त्र सजल नमन स्वीकार करो माँ ।
वरद हस्त शीश पर रख दो माँ ।
सहस्त्र सजल नमन स्वीकार करो माँ ।
वीणा के तार झंकृत किए
जिस वेला आपने ।
वसंत फूला जगत में
और अंतर्मन में ।
जिस वेला आपने ।
वसंत फूला जगत में
और अंतर्मन में ।
ऐसा वर दो माँ
विद्या को वरूँ
किंतु अपने तक ना रखूं
जितना मिले उतना बांटूं ।
विद्या को वरूँ
किंतु अपने तक ना रखूं
जितना मिले उतना बांटूं ।
ऐसा वर दो माँ
कला की साधना करूं
पर प्रदर्शन की परिधि में
मेरी कला सीमित ना रहे ।
कलात्मक अभिव्यक्ति से
जीवन की अनुभूति करुं ।
कला की साधना करूं
पर प्रदर्शन की परिधि में
मेरी कला सीमित ना रहे ।
कलात्मक अभिव्यक्ति से
जीवन की अनुभूति करुं ।
ऐसा वर दो माँ
जीवन को सजग जी सकूं ।
विद्या ग्रहण कर सबल बनूं ।
कीचड़ में कमल बन खिलूं ।
अंधकार में दीपक बन बलूं ।
चट्टान की तरह अडिग रहूँ ।
वट वृक्ष सम गहन धैर्य धरूँ ।
मिट्टी में घुलमिल विनय गहूँ ।
जीवन को सजग जी सकूं ।
विद्या ग्रहण कर सबल बनूं ।
कीचड़ में कमल बन खिलूं ।
अंधकार में दीपक बन बलूं ।
चट्टान की तरह अडिग रहूँ ।
वट वृक्ष सम गहन धैर्य धरूँ ।
मिट्टी में घुलमिल विनय गहूँ ।
ऐसा वर दो माँ ।
जाग्रत रहे विवेक ।
विसर्जित हों मन के क्लेश ।
विचारों की जड़ता हो दूर ।
हृदय तल हो इतना पावन ।
मन में आन बसो तुम माँ ।
जाग्रत रहे विवेक ।
विसर्जित हों मन के क्लेश ।
विचारों की जड़ता हो दूर ।
हृदय तल हो इतना पावन ।
मन में आन बसो तुम माँ ।
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019
जीवन का जाप
पथिक,
चलते रहना
तुम्हारी नियति है.
चलते रहना
तुम्हारी नियति है.
पर यदा-कदा
विश्राम करना.
चना-चबैना
जो अपनों ने
साथ बांधा था,
उस पाथेय से भी
न्याय करना.
विश्राम करना.
चना-चबैना
जो अपनों ने
साथ बांधा था,
उस पाथेय से भी
न्याय करना.
छाँव घनी हो
जिस वृक्ष की
उसकी छाया में
कुछ देर बैठना.
अपने पाँव के छाले
देखना और सहलाना.
शीतल बयार की
थपकी पाकर
चैन की नींद
सो जाना.
गहरी नींद में भी
जीवन के कई
प्रश्नों के उत्तर
और समाधान
मिल जाते हैं.
कुछ पल का सुकून
बल देता है अपार,
पथ पर चलते रहने का
करते हुए जीवन का जाप.
बल देता है अपार,
पथ पर चलते रहने का
करते हुए जीवन का जाप.
मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019
शनिवार, 2 फ़रवरी 2019
फुर्र
जाने कहाँ से
एक रंग-बिरंगी
चिड़िया छोटी-सी
खिड़की पर आ बैठी ।
जान ना पहचान
बिन बुलाई मेहमान !
पर जान पड़ी
अपनी-सी ।
स्वागत को
हाथ बढ़ाया ही था ..
कि उड़ गई
फुर्र !
जता गई ..
आनंद की अनुभूति
होती है क्षणिक ।
हृदय के तार
झंकृत कर जाती है,
तरंग जो एक मधुर
रागिनी बन जाती है ।
जिसे वही चिड़िया
किसी दिन
किसी और को सुनाती है ।
अनायास ही,
खिड़की पर बैठी
चहचहाती हुई ।
और फिर वही ..
एक दो तीन
और फुर्र !
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