शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

फुर्र




जाने कहाँ से
एक रंग-बिरंगी 
चिड़िया छोटी-सी
खिड़की पर आ बैठी ।
जान ना पहचान
बिन बुलाई मेहमान !
पर जान पड़ी
अपनी-सी ।
स्वागत को 
हाथ बढ़ाया ही था ..
कि उड़ गई
फुर्र !


जता गई ..
आनंद की अनुभूति
होती है क्षणिक ।
हृदय के तार
झंकृत कर जाती है,
तरंग जो एक मधुर
रागिनी बन जाती है ।
जिसे वही चिड़िया
किसी दिन
किसी और को सुनाती है ।
अनायास ही,
खिड़की पर बैठी
चहचहाती हुई ।
और फिर वही ..
एक दो तीन
और फुर्र !



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24 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद भारद्वाज जी ।
      भाव के पंछी का गान आपने भी सुना ।
      आपका दिन भी अच्छा बीता होगा ।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. शुक्रिया दुबेजी ।

      पंछी ना याद दिलाएं
      तो आदमी भूल जाए
      गीत गाना ..
      सुख-दुख में गुनगुनाना ।

      हटाएं
  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/02/2019 की बुलेटिन, " डिप्रेशन में कौन !?“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. धन्यवाद सुधा जी.
      कल ही तो इस चिड़िया को आपके आँगन में गाते सुना था !

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. अनुराधा जी, धन्यवाद.
      शायद भाव ही हमको,आपको और इन पंछियों को जोड़ता है.

      हटाएं
  6. वाह बहुत सुन्दर रचना सार्थक और गहरी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जब आपने पढ़ी और समझी, कविता तभी सार्थक हो गई.
      धन्यवाद कुसुम जी.ऐसा लगता है,इस चिड़िया का पूरा कुनबा हमारे घरों की फेरी लगाता है !

      हटाएं
  7. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (04-02-2019) को चलते रहो (चर्चा अंक-3237) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्तर
    1. कोकिला जी, आपको सुन्दर लगना स्वाभाविक है ! आप स्वयं कोयल ठहरीं !
      चिड़िया और आपकी जुगलबंदी ज़रूर होती होगी !
      शुक्रिया. फिर आइयेगा.

      हटाएं
  9. जय मां हाटेशवरी...
    आप सभी को नव-वर्ष 2019 की पांच लिंक परिवार की ओर से अग्रिम शुभकामनाएं.....

    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 05/02/2019
    को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद, कुलदीप ठाकुरजी. फ़ोन, टेलिविज़न धारावाहिक, सोशल मीडिया,बाकी काम ठप्प हो जाने की वजह से "बेवजह" साथ वक़्त बिताने की बाध्यता कितना सुखद अनुभव होता है. एक तरह से ध्यान लगाने जैसा होता है. बहुत ज़रूरी. हलचल के बीच कभी-कभी शांति से मनन करना भी हलचल को सार्थक बनाता है. हलचल बनी रहे !

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. धन्यवाद ओंकारजी. चिड़िया ने आपसे कुछ कहा क्या ?

      हटाएं
  11. अनायास ही,
    खिड़की पर बैठी
    चहचहाती हुई ।
    और फिर वही ..
    एक दो तीन
    और फुर्र !
    बिल्‍कुल सही कहा आपने ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

    जवाब देंहटाएं
  12. सुन्दर और मोहक अभिव्यक्ति आदरणीया नुपुर जी।

    जवाब देंहटाएं

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