जाने कहाँ से
एक रंग-बिरंगी
चिड़िया छोटी-सी
खिड़की पर आ बैठी ।
जान ना पहचान
बिन बुलाई मेहमान !
पर जान पड़ी
अपनी-सी ।
स्वागत को
हाथ बढ़ाया ही था ..
कि उड़ गई
फुर्र !
जता गई ..
आनंद की अनुभूति
होती है क्षणिक ।
हृदय के तार
झंकृत कर जाती है,
तरंग जो एक मधुर
रागिनी बन जाती है ।
जिसे वही चिड़िया
किसी दिन
किसी और को सुनाती है ।
अनायास ही,
खिड़की पर बैठी
चहचहाती हुई ।
और फिर वही ..
एक दो तीन
और फुर्र !
बहुत सुंदर ......भावात्मक कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भारद्वाज जी ।
हटाएंभाव के पंछी का गान आपने भी सुना ।
आपका दिन भी अच्छा बीता होगा ।
बहुत सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
शुक्रिया दुबेजी ।
हटाएंपंछी ना याद दिलाएं
तो आदमी भूल जाए
गीत गाना ..
सुख-दुख में गुनगुनाना ।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/02/2019 की बुलेटिन, " डिप्रेशन में कौन !?“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार मिश्र जी.
हटाएंबहुत सुन्दर..।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
धन्यवाद सुधा जी.
हटाएंकल ही तो इस चिड़िया को आपके आँगन में गाते सुना था !
सुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंअनुराधा जी, धन्यवाद.
हटाएंशायद भाव ही हमको,आपको और इन पंछियों को जोड़ता है.
वाह बहुत सुन्दर रचना सार्थक और गहरी।
जवाब देंहटाएंजब आपने पढ़ी और समझी, कविता तभी सार्थक हो गई.
हटाएंधन्यवाद कुसुम जी.ऐसा लगता है,इस चिड़िया का पूरा कुनबा हमारे घरों की फेरी लगाता है !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (04-02-2019) को चलते रहो (चर्चा अंक-3237) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्रीजी ।
हटाएंचरैवेति चरैवेति ।
Sundar! 😊😊
जवाब देंहटाएंकोकिला जी, आपको सुन्दर लगना स्वाभाविक है ! आप स्वयं कोयल ठहरीं !
हटाएंचिड़िया और आपकी जुगलबंदी ज़रूर होती होगी !
शुक्रिया. फिर आइयेगा.
जय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंआप सभी को नव-वर्ष 2019 की पांच लिंक परिवार की ओर से अग्रिम शुभकामनाएं.....
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 05/02/2019
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद, कुलदीप ठाकुरजी. फ़ोन, टेलिविज़न धारावाहिक, सोशल मीडिया,बाकी काम ठप्प हो जाने की वजह से "बेवजह" साथ वक़्त बिताने की बाध्यता कितना सुखद अनुभव होता है. एक तरह से ध्यान लगाने जैसा होता है. बहुत ज़रूरी. हलचल के बीच कभी-कभी शांति से मनन करना भी हलचल को सार्थक बनाता है. हलचल बनी रहे !
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकारजी. चिड़िया ने आपसे कुछ कहा क्या ?
हटाएंवाह!!लाजवाब!!
जवाब देंहटाएंचिड़िया की बदौलत !
हटाएंशुक्रिया शुभा जी.
अनायास ही,
जवाब देंहटाएंखिड़की पर बैठी
चहचहाती हुई ।
और फिर वही ..
एक दो तीन
और फुर्र !
बिल्कुल सही कहा आपने ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
सुन्दर और मोहक अभिव्यक्ति आदरणीया नुपुर जी।
जवाब देंहटाएं