पथिक,
चलते रहना
तुम्हारी नियति है.
चलते रहना
तुम्हारी नियति है.
पर यदा-कदा
विश्राम करना.
चना-चबैना
जो अपनों ने
साथ बांधा था,
उस पाथेय से भी
न्याय करना.
विश्राम करना.
चना-चबैना
जो अपनों ने
साथ बांधा था,
उस पाथेय से भी
न्याय करना.
छाँव घनी हो
जिस वृक्ष की
उसकी छाया में
कुछ देर बैठना.
अपने पाँव के छाले
देखना और सहलाना.
शीतल बयार की
थपकी पाकर
चैन की नींद
सो जाना.
गहरी नींद में भी
जीवन के कई
प्रश्नों के उत्तर
और समाधान
मिल जाते हैं.
कुछ पल का सुकून
बल देता है अपार,
पथ पर चलते रहने का
करते हुए जीवन का जाप.
बल देता है अपार,
पथ पर चलते रहने का
करते हुए जीवन का जाप.
आभार शास्त्रीजी.
जवाब देंहटाएंजीवन की एक आओर सच्चाई है ये
जवाब देंहटाएंआपका नेह पाकर प्रसन्नता हुई, सुनीता जी.
हटाएंसच सबसे बड़ा संबल है जीवन का.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 51वीं पुण्यतिथि - पंडित दीनदयाल उपाध्याय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंपरम सौभाग्य.
हटाएंधन्यवाद हर्षवर्धन जी.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम जिस पृष्ठ पर हो, उस के हाशिये पर जगह पाकर हमारा मां बढ़ा है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार.
हटाएंपम्मी जी, ये पड़ाव मनमोहक था.
अगले पड़ाव की प्रतीक्षा है.
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअनुराधा जी,धन्यवाद. आपका स्नेह अनमोल है.
जवाब देंहटाएंहम सबका अनचीन्हा दायित्व है
अपना जीवन बेहतरीन रचना
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जीवन.दर्शन.. वाह्ह्ह👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद श्वेता जी.
जवाब देंहटाएंचलते-चलते पुण्य पथ प्रशस्त हो जाता है.
गुनते-गुनते जीवन दर्शन मिल जाता है.