मंगलवार, 20 नवंबर 2018

रंग



कोरी मटकी देख कर
मन करता है
खड़िया-गेरू से
बेल-बूटे बना दूँ ।

कोरा दुपट्टा देख कर
मन करता है
बांधनी से
लहरिया रंग डालूँ ।

खाली दीवार देख कर
मन करता है
रोली के
थापे लगा दूँ ।

कोरा कागज़ देख कर
मन करता है
वर्णमाला से
वंदनवार बना दूँ ।

उजड़ी क्यारी में फूल खिला दूँ ।
वीराने में बस्ती बसा दूं ।
चौखट पर दिया जला दूं ।
आंगन में अल्पना बना दूं ।
हाथों में मेंहदी लगा दूँ ।
माथे पर तिलक कर दूँ ।
दूधिया हँसी को डिठौना लगा दूँ ।
भोलेपन को नज़र का टीका पहना दूँ ।
खेतों में मीलों सरसों बिछा दूँ ।

रंग से सराबोर
इस दुनिया का
कोई भी कोना
क्यों रहे कोरा ?


रविवार, 18 नवंबर 2018

जल छंद




फूल पत्तियों पर ठहरी
जल की एक बूंद
क्षणभंगुर है,
जीवन की तरह ।


पर उस एक क्षण में ही
सुंदरतम है ।


एक श्वास भर की
प्रांजल छवि है
अंतरतम की ।


इस एक पुलकित 
जल छंद पर
न्यौछावर है
सारा जीवन ।






शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

जो साथ चल दे




कविता तो वो है
जो झकझोर कर
जगा दे ।

कविता तो वो है
जो अपना
मंतर चला दे ।

कविता तो वो है
जो थपकी देकर
सुला दे ।

कविता तो वो है
जो जीवन को मधुर
रागिनी बना दे ।

कविता तो वो है
जो पाषाण में
प्राण प्रतिष्ठा कर दे ।

नव ग्रह चाँद सितारे
आकाश से टूटते तारे
सबसे मित्रता करा दे ।

कविता तो वो है
जो मनचले वक़्त की
नब्ज़ पढ़ना सिखा दे ।

कविता तो वो है
जो बहकने पर   
हाथ पकड़ कर
रोक ले ।

कविता तो वो है
जो डटे रहने का
साहस दे ।

कविता तो वो है
जो संवेदनशील बनाये ।

कविता तो वो है
जो जीवन
छंद में ढाल दे ।

कविता तो वो है
जो ध्रुव तारा बन
पथ प्रशस्त करे ।

कविता तो वो है
जो नतमस्तक कर दे ।

या फिर कविता वो है
जो कंधे पर हाथ रख 
घंटों बात समझाए,
और साथ चल दे ।

तथास्तु




कठिन तप करने पर
ठाकुरजी ने प्रसन्न होकर
भोले भक्त से कहा,
सेवा से संतुष्ट हुआ
बोल तुझे चाहिए क्या ?
भक्त ने अपना मन टटोला
फिर सकुचा कर प्रभु से बोला
अपने लिए कुछ मांगने का
आज बिल्कुल मन नहीं ।
आपने जो अनमोल जीवन दिया
मेरे लिए पर्याप्त है बस वही ।
पर यदि देने का मन है आपका
तो जो वंचित है भक्ति से आपकी
जीवन का औचित्य जो समझा नहीं,
उसे दीजिए सौंदर्य बोध जीवन का ।
ठाकुरजी हँस दिए और भक्त से कहा
वत्स तूने तो मुझे ही ठग लिया । 
मांगने योग्य जो था सब ले लिया ।
तपते-तपते अहर्निश तूने जान लिया
यदि अपना सर्वस्व मुझको सौंप दिया
तो अपने लिए मांगने को रहा क्या ?
भक्त प्रह्लाद, ध्रुव और नचिकेता
इन्होंने अपना सब कुछ भुला दिया
और जग का कल्याण मांग लिया ।
स्वयं अपना दायित्व मुझे सौंप कर
जनसेवा का संकल्प सहर्ष लिया ।
भक्त ने वरदान का मान रखा
अपने पहले दूसरों का ध्यान किया ।
अपना सर्वस्व समर्पित कर
ठाकुर कृपा को वर लिया ।


रविवार, 28 अक्तूबर 2018

शरद का चंद्रमा



झोंपड़ी में बसेरा हो
या अमीरों की बस्ती में
जहां भी बसता हो,
हर किसी के पास आज
शहद में घुला
बताशे-सा ..
शरद की नरम ठंड में
रुई के फाहों से
बादलों में दुबका..
दूधिया चाँद है ।

खुले आसमान की
बादशाहत सबके पास है ।

बेइंतेहा खूबसूरत नज़ारा
अमनो-चैन की घड़ी
और दिलों में खुशी
पाकीज़ा चांदनी सी ..
कुछ देर ही सही,
इस बेशुमार दौलत का
आज हर कोई हक़दार है ।

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

बेटी ने कहा




पापा मुझे बेटा
मत कहिए ना ।

आपकी बेटी हूँ मैं ।
बेटी ही रहने दीजिए ना ।
बेटी होना कम है क्या ?

आपकी जीवन रागिनी का
सबसे कोमल स्वर हूँ मैं ।
आपके हृदय में,
माँ के अनुराग का
सुंदरतम स्पंदन हूँ मैं ।

आप क्यों डरते हैं इतना ?
मुझे कुछ नहीं होगा ।
आप तो भैया से ज़्यादा
मुझे प्यार करते हैं ना ?
फिर बेटी को बेटा कहना
ज़्यादा फ़क्र की बात है क्या ?
या बेटी का कन्यादान करना
उसे खो देने जैसा लगता है क्या ?

पापा क्यों है ऐसा ?
भैया भी तो है आपका बेटा ।
नहीं भी है तो क्या हुआ ?

छोड़ दीजिए ना
खांचे में ढालना ।
बेटे को बेटा
बुलाते हैं ना ?
फिर बेटी को भी,
बेटी ही कहिए ना ।
आपकी
कमज़ोर नब्ज़  बने रहना,
मेरी सबसे बड़ी ताक़त है..
आप समझ रहे हैं ना ?
सारी दुनिया
मुझे नकार दे भले
नेस्तनाबूद मुझे
कर सकेगी ना !
क्योंकि चाहे जो हो जाए,
पता है मुझे
पापा मेरे
हमेशा मेरे साथ हैं ना ।

सब देख रहा है भैया ।
आपसे सीख रहा है भैया ।
उसे भी ये समझने दीजिए ना ।
बेटी को बेटी ही कहिए ना ।

अपनी फुलवारी में रंग-रंग के
बड़े जतन से पौधे लगाए आपने ।
सबको अपनी-अपनी क्यारी में
अपने रंग में खिलने दीजिए ना ।

बेटी को बेटी ही पुकारिये ना ।
पापा मुझे बेटा मत कहिये ना ।



मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

जीवन की आभा



कविता में 
जीवन की आभा है।

जीवन में 
यदि कविता 
सजीव हो उठे,

जीवन और कविता 
दोनों की शोभा है।