कोरी मटकी देख कर
मन करता है
खड़िया-गेरू से
बेल-बूटे बना दूँ ।
खड़िया-गेरू से
बेल-बूटे बना दूँ ।
कोरा दुपट्टा देख कर
मन करता है
बांधनी से
लहरिया रंग डालूँ ।
मन करता है
बांधनी से
लहरिया रंग डालूँ ।
खाली दीवार देख कर
मन करता है
रोली के
थापे लगा दूँ ।
मन करता है
रोली के
थापे लगा दूँ ।
कोरा कागज़ देख कर
मन करता है
वर्णमाला से
वंदनवार बना दूँ ।
मन करता है
वर्णमाला से
वंदनवार बना दूँ ।
उजड़ी क्यारी में फूल खिला दूँ ।
वीराने में बस्ती बसा दूं ।
चौखट पर दिया जला दूं ।
आंगन में अल्पना बना दूं ।
हाथों में मेंहदी लगा दूँ ।
माथे पर तिलक कर दूँ ।
दूधिया हँसी को डिठौना लगा दूँ ।
भोलेपन को नज़र का टीका पहना दूँ ।
खेतों में मीलों सरसों बिछा दूँ ।
वीराने में बस्ती बसा दूं ।
चौखट पर दिया जला दूं ।
आंगन में अल्पना बना दूं ।
हाथों में मेंहदी लगा दूँ ।
माथे पर तिलक कर दूँ ।
दूधिया हँसी को डिठौना लगा दूँ ।
भोलेपन को नज़र का टीका पहना दूँ ।
खेतों में मीलों सरसों बिछा दूँ ।
रंग से सराबोर
इस दुनिया का
कोई भी कोना
क्यों रहे कोरा ?
इस दुनिया का
कोई भी कोना
क्यों रहे कोरा ?
आहा! शब्द ही कागज़ के रंग है। बोहोत सुन्दर उपमा।बोहोत खूब!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-11-2018) को "ईमान बदलते देखे हैं" (चर्चा अंक-3162) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह्ह्ह.. खूबसूरत मासूम ख़्वाहिश👌
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,अनमोल सा और श्वेता सखी के लिए
जवाब देंहटाएंआभार सहित...
https://youtu.be/DNYsv4ihrXc
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।
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