शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

तथास्तु




कठिन तप करने पर
ठाकुरजी ने प्रसन्न होकर
भोले भक्त से कहा,
सेवा से संतुष्ट हुआ
बोल तुझे चाहिए क्या ?
भक्त ने अपना मन टटोला
फिर सकुचा कर प्रभु से बोला
अपने लिए कुछ मांगने का
आज बिल्कुल मन नहीं ।
आपने जो अनमोल जीवन दिया
मेरे लिए पर्याप्त है बस वही ।
पर यदि देने का मन है आपका
तो जो वंचित है भक्ति से आपकी
जीवन का औचित्य जो समझा नहीं,
उसे दीजिए सौंदर्य बोध जीवन का ।
ठाकुरजी हँस दिए और भक्त से कहा
वत्स तूने तो मुझे ही ठग लिया । 
मांगने योग्य जो था सब ले लिया ।
तपते-तपते अहर्निश तूने जान लिया
यदि अपना सर्वस्व मुझको सौंप दिया
तो अपने लिए मांगने को रहा क्या ?
भक्त प्रह्लाद, ध्रुव और नचिकेता
इन्होंने अपना सब कुछ भुला दिया
और जग का कल्याण मांग लिया ।
स्वयं अपना दायित्व मुझे सौंप कर
जनसेवा का संकल्प सहर्ष लिया ।
भक्त ने वरदान का मान रखा
अपने पहले दूसरों का ध्यान किया ।
अपना सर्वस्व समर्पित कर
ठाकुर कृपा को वर लिया ।


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-11-2018) को "ओ३म् शान्तिः ओ३म् शान्तिः" (चर्चा अंक-3158) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. धन्यवाद शास्त्रीजी ।
      एक दिया ॐ के उच्चारण और शांति पाठ के नाम का भी ।

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अरेसीबो मैसेज और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. उत्तर
    1. धन्यवाद अनीता जी ।
      रचना जीवन का सच हो जाए तो क्या खूब हो ।
      सुंदर से सुंदरतम मंगल हो ।

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  4. बहुत सुंदर बाईसा। सब का निचोड़ भक्ति। और उसका भी निचोड़ ये कविता।

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