शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

जो साथ चल दे




कविता तो वो है
जो झकझोर कर
जगा दे ।

कविता तो वो है
जो अपना
मंतर चला दे ।

कविता तो वो है
जो थपकी देकर
सुला दे ।

कविता तो वो है
जो जीवन को मधुर
रागिनी बना दे ।

कविता तो वो है
जो पाषाण में
प्राण प्रतिष्ठा कर दे ।

नव ग्रह चाँद सितारे
आकाश से टूटते तारे
सबसे मित्रता करा दे ।

कविता तो वो है
जो मनचले वक़्त की
नब्ज़ पढ़ना सिखा दे ।

कविता तो वो है
जो बहकने पर   
हाथ पकड़ कर
रोक ले ।

कविता तो वो है
जो डटे रहने का
साहस दे ।

कविता तो वो है
जो संवेदनशील बनाये ।

कविता तो वो है
जो जीवन
छंद में ढाल दे ।

कविता तो वो है
जो ध्रुव तारा बन
पथ प्रशस्त करे ।

कविता तो वो है
जो नतमस्तक कर दे ।

या फिर कविता वो है
जो कंधे पर हाथ रख 
घंटों बात समझाए,
और साथ चल दे ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर। कविता पर एक कविता मैंने भी लिखी है। आपके विचार बहुत पसंद आए।

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    1. धन्यवाद मीनाजी ।
      लिखते-लिखते
      पढ़ते-पढ़ते
      गुनते-गुनते
      यह बात
      हमेशा सोची जाएगी
      कि कविता क्या है ?
      और कौनसी कविता
      अच्छी है ..

      कृपया अपनी कविता भी शेयर कीजिये ।

      हटाएं
  2. वास्तव में समय के पंख होते हैं.

    काव्यांकुर ६ .. नए लिखने वालों की कविताओं का संग्रह.
    नवांकुर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित.
    पुस्तक विमोचन समारोह नौ अक्टूबर को हुआ था. सोलह कवियों ने संग्रह के लिए चुनी गई रचनाओं में से एक या दो का मंच पर काव्य पाठ किया था बरगद की छाँव में. अर्थात् गुरु जन और गुणी जनों की उपस्थिति में.

    अवसर आते हैं. बीत जाते हैं. बचता वह है जो साथ रह जाता है.और साथ-साथ चलता है. बड़े जो बातें समझाते हैं, बिजली के तार पर झूलती पतंग की तरह मन में अटक जाती हैं. स्मृति चिन्ह बन जाती हैं.

    अपनी-अपनी कवितायेँ साथ लिए लौट आये हम पर कुछ बातें रह-रह कर याद आती हैं. नए लिखने वालों के लेखन की ताज़गी, कवि का स्वाभिमान और कविता क्या है ..इसकी चर्चा आगामी पथ का पाथेय बन गईं.

    आदरणीय दीक्षित दिन्कौरीजी ने तनिक कान उमेंठ कर मज़े-मज़े में बात समझाई कि माँ सरस्वती की आराधना करते हैं हम लोग.इसका मान रखना सदा.
    खुशबू होगी तो पहुंचेगी,कोई ज़रुरत नहीं है जुगाड़ की.
    और ये कि ग़ज़ल में क्या नहीं कहना है,यह सीखना है.
    और ये कि लिखते समय राधाजू के प्यार की हेकड़ी ध्यान रखियो -
    पतली-पतली पोई हैं फुलकियाँ, तेरी गरज पड़े तो खाय जइयो !
    कविता से जीवन साधना ...
    ऐ ग़ज़ल पास आ गुनगुनाऊ तुझे
    मैं संवारूं तुझे तू सँवारे मुझे

    श्रद्धेय बालस्वरूप राही जी ने बहुत प्यार से नवांकुरों के सर पर हाथ रख कर कहा कि

    खिलती हुई कलियों से खूबसूरत कुछ नहीं होता.

    और मुझको चाहिए क्या शायरी से छोडिये
    सुन चुका हूँ मैं उसेअपनी ग़ज़ल गाते हुए

    स्वाभिमानी होना कवि की सबसे बड़ी पहचान और बुनियादी ज़रुरत है.

    तो फिर कविता क्या है ?

    जैसा श्री रामावतार बैरवा जी ने मित्रवत प्रश्न रखा और कहा कि उन्हें आज तक समझ नहीं आया. उन्होंने आकाशवाणी का किस्सा सुनाया ...परम लोकप्रिय गीतकार संतोष आनंद से जब पूछा गया कि अपनी कौनसी रचना आपको सबसे अच्छी लगती है ? तो उन्होंने कहा - वो तो अभी लिखी नहीं गई !

    राहीजी ने कहा कविता वो है जो दिल से निकलती है, दिल तक पहुँच जाती है.

    यह चिंतन करते-करते ही कविता लिखी जाती है संभवतः .....

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