शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

मन भर आकाश


स्टीफ़न हॉकिंग ने कैसे 
एक अर्थपूर्ण 
शानदार जीवन जिया ?
काटा नहीं  . . जिया। 

कुछ भी तो नहीं था,
तन के नाम पर। 
पर मन भर 
असीम आकाश था। 
जिसमें जीवट नाम का 
प्रखर सूर्य चमकता था। 
संवेदनशील धैर्य का चंद्रमा 
शिफ्ट ड्यूटी करता था। 
विलक्षण प्रतिभा पंख फैलाये 
निरंतर उड़ान भरती थी। 
और एक बात थी। 

इस वैज्ञानिक ने अपने 
जीवन की रिक्तता का 
कभी अफ़सोस नहीं किया। 
मस्तिष्क की अपार संभावनाएं 
अपनी सोच में समेट कर
जीवन उत्सव की तरह जिया। 


रविवार, 2 सितंबर 2018

संभावना

क्या खूब हो अगर
तुम्हारी कमी को 
मैं पूरा कर दूं !
और मेरे खाली पन्ने को
तुम भर दो !


आओ चलो !
एक तस्वीर बनाते हैं ,
मिल - जुल कर।
अपने - अपने
रंग भर कर। 
शायद इनके मिलने से
इन्द्रधनुष बन जाये !
कितना मज़ा आये !


या तुम अपनी बात कहो।
मैं अपनी व्यथा कहूँ।
हो सकता है ,
बात - बात में
कविता रच जाये
मेहँदी की तरह
भाग्य रेखाओं में !


हो सकता है ना ..
जब - जब हम हाथ मिलाएं
गर्मजोशी से ,
अपनी - अपनी कमियों में
देख पायें,
नयी संभावनाएं !


शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

मनोबल

सब कुछ 
टूट - फूट कर 
बिखर जाये, 
छिन्न - भिन्न हो जाये, 
खो जाये  . .
कुछ भी हो जाये  . . 

आदमी चोट खाता है पर
फिर उठ खड़ा होता है। 
हिम्मत का धनी होता है। 

विसंगतियों से हारता है। 
पर हार नहीं मानता। 

वो अपाहिज हो ही नहीं सकता, 
जिसका मनोबल नहीं टूटा। 



मंगलवार, 28 अगस्त 2018

करमजला बना गोविंदा


एक था गोविंदा ।                                                 
सब कहते थे करमजला ।
माँ - बाप का इकलौता बेटा ।
पर पैरों से लाचार था ।
बैसाखी लेकर चलता था ।
किसी काम का ना था ..
खेत क्या जोतता ?

बच्चे जब खेलते थे ।
दूर बैठा तकता रहता ।
गुपचुप रोता रहता ।

एक दिन माँ ने देखा ।
गोविंदा चुपचाप बैठा
टूटे - फूटे सामान का
कुछ बना रहा था .
माँ ने सोचा ,
रोने से कुछ करना अच्छा ।

फिर एक दिन माँ ने देखा,
बच्चों ने घेर रखा था ।
गोविंदा कुछ दिखा रहा था । 
एक अटपटा खिलौना था । 
पर सबके मन को भा रहा था । 
और गोविंदा मुस्कुरा रहा था । 

बस माँ ने ठान लिया । 
अब यही करेगा मेरा बेटा । 
टूटे - फूटे को जोड़ेगा । 
फूटी किस्मत संवारेगा । 
पैरों पे खड़ा नहीं हो सकता तो क्या ?
हाथ के हुनर से अपना पेट भरेगा । 

फिर क्या था !
माँ - बाप ने बीड़ा उठाया । 
करमजले को खिलौने बनाना 
सबने मिल कर सिखाया । 
सारे गाँव ने करमजले को अपनाया । 
जो काम सहानुभूति से कभी ना होता। 
वही हुनर ने कर दिखाया । 
अब कोई बच्चे के लाचार पैर नहीं देखता । 
अब समाज बन गया है मनसुखा । 
और मनसुखा के कंधे पर बैठा 
करमजला अब गोविंदा हो गया है !



रविवार, 5 अगस्त 2018

एक आला मित्रता के नाम का

कहो मित्र,
कैसे हो ?
एक अरसा हुआ,
न सलाम न दुआ ?
सब कुशल तो है ना ?
शिकायत नहीं करता,
बस दिया उलाहना ।
जिससे तुम जान जाओ,
याद बहुत आते हो ।
मन मसोस कर
कुछ करने पर,
अब भी टोक देते हो ।
परछाईं की तरह,
साथ चलती है तुम्हारी याद ।
पक्की है,
हमारी मित्रता की बुनियाद ।
क्या फ़र्क पड़ता है ?
तुम्हारा पास होना,
ना होना ।
जब तक निरंतर
होता रहे संवाद,
मन से मन का ।
मन का कोई कोना,
हो ना सूना,
इसलिए कहा ।
एक आला
कृष्ण-सुदामा के नाम का,
एक आला
हमारी मित्रता के नाम का,
सदा संजोए रखना ।


शनिवार, 4 अगस्त 2018

माँ कभी छोड़ के जाती है क्या ?

माँ चली गई ।

बिटिया रानी ..
बहुत बदलेगी ज़िन्दगी अभी ।
तुम भी बहुत बदलोगी ।

माँ के लिए,
जो आंसू आंखों में आए,
उन्हें निरर्थक बहने मत देना ।
अपने हृदय में बो देना ।
फिर पूरे अधिकार से
जीवन भर सींचना ।

माँ की स्मृति को
अलमारी में मत सहेजना ।
उनकी एक-एक बात को
अपने आचरण में
जीवित रखना ।
जीवन पर्यंत ..
आराधना करना ।

उनकी व्यथा को
सृजन का रूप देना ।
उनके स्वप्नों को
अपने रंग देना ।

माँ कभी
छोड़ के जाती है क्या ?
जब जी हो ..
मन के दर्पण में
उनको देखना ।

रविवार, 22 जुलाई 2018

कनिष्ठा

हाथ छुड़ा कर, 
कभी भी एकाकी, 
निर्जन जीवन पथ
पार मत करना ।
ठाकुरजी की उंगली
कस के पकड़े रहना ।
ठोकर लगी भी
तो गिरोगे नहीं ।

जो कनिष्ठा पर
गोवर्धन धारण करते हैं,
पर समर्पित भाव
को डूबने नही देते ।
वो तर्जनी पर
सुदर्शन चक्र भी
धारण करते हैं,
सौवीं ग़लती पर
क्षमा नहीं करते ।

इन्हीं उंगलियों पर बाँसुरी
धारण करते हैं,
जपते हैं,
राधा नाम अविराम ।
जितनी मधुर उनकी मुस्कान,
बजाते हैं मुरली
उतनी ही सुरीली,
मिसरी-सी मीठी,
मानो लोरी ।

और प्रसन्न वदन जब
हौले से हँस कर,
नतमस्तक शीश पर
रखते हैं हस्त कमल,
सकल द्वंद, भव फंद,
हो जाते हैं दूर ।

इसलिए वत्स,
कभी मत छोड़ना,
कस कर
उंगली पकड़े रहना ।