माँ चली गई ।
बिटिया रानी ..
बहुत बदलेगी ज़िन्दगी अभी ।
तुम भी बहुत बदलोगी ।
माँ के लिए,
जो आंसू आंखों में आए,
उन्हें निरर्थक बहने मत देना ।
अपने हृदय में बो देना ।
फिर पूरे अधिकार से
जीवन भर सींचना ।
माँ की स्मृति को
अलमारी में मत सहेजना ।
उनकी एक-एक बात को
अपने आचरण में
जीवित रखना ।
जीवन पर्यंत ..
आराधना करना ।
उनकी व्यथा को
सृजन का रूप देना ।
उनके स्वप्नों को
अपने रंग देना ।
माँ कभी
छोड़ के जाती है क्या ?
जब जी हो ..
मन के दर्पण में
उनको देखना ।
My humble obeisance to the mother. A virakta sanyasi is not supposed to meet or touch the feet of his past family EXCEPT his monther. This is stature of mother in Sanatana Dharma.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-08-2018) को "वन्दना स्वीकार कर लो शारदे माता हमारी" (चर्चा अंक-3054) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
Bahut bhavpurn👌
जवाब देंहटाएंकुलदीपजी, आपकी स्नेह से पगी टिप्पणी ने इस रचना की शोभा बढाई. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआप सबकी सराहना का संबल बना रहे. पुनः धन्यवाद.
यदि कृष्ण होते तो अवश्य
सुदामा उनसे मिल पाते !
कृष्ण तो कृष्ण हैं,
हम सुदामा भी नहीं बन पाते.
मित्रता भी एक साधना है.
पहले अपने भीतर
सुदामा को खोजना है.
फिर जाकर
कृष्ण को पाना है.
कुलदीप जी, आभारी हूँ.
सभी को बधाई !
बेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंमाँ तो जाने के बाद भी सहेजती रहती है, यादों के रूप में !
जवाब देंहटाएंमाँ के ही शरीर का एक हिस्सा हैं हम.... फिर जैसे जैसे बड़े होते हैं उसके दिल का टुकड़ा बन जाते हैं। माँ कभी दिल से दूर नहीं जा सकती।
जवाब देंहटाएं