गुरुवार, 17 मई 2018

सच्चा रामबाण नुस्खा


माँ की झिड़की में माँ का दुलार,
माँ की महिमा अपरंपार !
जितने माँ ने कान उमेंठे,
उतने मेरे भाग जागे। 
माँ का रूतबा शानदार ! 
शाही फ़रमान है होशियार !
माँ के हाथ में अदृश्य तलवार,
भागें भूत के नाना प्रकार !
माँ ने जब-जब आँख तरेरी,
टेढ़ी ग्रहदशा हो गई सीधी। 
माँ की खा-खा नित फटकार,
सुधर गया पाजी संसार !
जब भी खाई माँ से मार,
जाग गया सोया स्वाभिमान !
माँ का गुस्सा तेरह का पहाड़ा,
पर समझो तो हो जाए बेड़ा पार !      
माँ का डांटना बारंबार,
नालायकी का उत्तम उपचार !
फांकते रहिए सुबह-शाम,
पाइए स्वास्थ्य और सदाचार।    

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

हर नया दिन





हर नया दिन 
एक फूल की तरह
खिलता है,
और कहता है  . .
उठो जागो !
बाहर चलो !
शुरू करो
कोई अच्छा काम,
लेकर प्रभु का नाम 
आगे जो होगा
सो होगा,
अभी तो
कोशिश करो,
बन जाएं बिगड़े काम ।

देखो, 
मुझे भी पता है ।
कुछ देर की छटा है ।
जो खिलता है
मुरझाता है ।
पर जब तक
खिलता है,
मुस्कुराता है ।
भीतर जंगले के 
गमले में,
या मिट्टी की क्यारी में ।
जूड़े में सजे,
या अर्पित हो
देव के चरणों में ।
सेहरे में झूले
या आप ही
मिट्टी में मिल जाये ।
चाहे किताबों में
रखा सूख जाए ।
फूल जब तक 
खिलता है,
मुस्कुराता है 
फिर स्मृति में
सुगंध बन बस जाता है ।

हर नया दिन
फूल की तरह
खिलता है 
तुम भी खिलो 
जीवन के हर पल में 
सुगंध बनो,


बसो सबके मन में ।


सोमवार, 23 अप्रैल 2018

किताब




मेरे ज़हन में 
एक किताब है, 
जिसे बड़े जतन से 
संभाल कर रखा मैंने ।  
ये किताब  . . किताब नहीं 
इबादत है ।
इसमें दर्ज हैं 
वो सारी बातें, 
जो सच्चे मन से 
चाही थीं कभी  . . 
कुछ करते बनीं,
कुछ रह गईं रखी 
मेज़ की आख़िरी  
दराज में ।     
हो  सकता है, 
कभी कोई 
मेरे ज़हन को तलाशे,
और उसे मिल जाए  
यही किताब जो  मेरी है,  
पर मैंने उसके नाम की है । 


रविवार, 1 अप्रैल 2018

मास्टरपीस




जो कह कर भी 
कही ना जा सकीं,
उन बातों की छाप ही 
कहलाती है कल्पना ।

कागज़ ,कैनवस या  
मन का कोना,
कहीं भी 
लिख डालो ,
या रंग दो  . . 
जो उस वक़्त सही लगता हो, 
जब  ह्रदय में उठा हो ज्वार 
या उमड़ी हो वेदना । 

कह ना पाओ 
तो कोलाज बनाओ 
अनुभूतियों का । 
या सजाओ  
रंगोली या अल्पना 
उस रास्ते पर, 
जहां से 
थके-हारे मायूस लोग 
गुज़रते हों ।
यह मौन अभिवादन, 
शायद उन्हें 
ऐसे किसी की 
याद दिला दे, 
जिसने हमेशा 
उनकी भावनाओं का 
किया था आदर । 

या काढ़ो चादर पर 
रुपहले बेल,बूटे और फूल 
जो उन दिनों की 
स्मृति के पट खोल दे,   
जब बिना बुलाये  . .  
माँ की गोदी में 
सिर रखते ही 
झट से आ जाती थी  . .  
सुन्दर सपनों वाली नींद । 

सोच कर नहीं, 
महसूस कर 
जब लिखी जाती है नज़्म, 
रंगे जाते हैं 
कागज़ , दुपट्टे और मन, 
तब कहीं 
बनती है मोने की पेंटिंग  . .  
तब जाकर लिखी जाती है 
द लास्ट लीफ़  . . 
और रचना कहलाती है 
मास्टरपीस ।   
    

शनिवार, 31 मार्च 2018

चरैवेति चरैवेति ....


चलते रहो ।
मुसलसल सफ़र में रहो ।
मंज़िल तक पहुंचो,
ना पहुंचो ।
चलते रहो ।

मील के पत्थरों से राह पूछो ।
बरगद की छांव में कुछ देर सुस्ता लो ।
नदी के बहते पानी में तैरो ।
धूप में तपो ।
रास्ते की धूल फांको ।
बारिश में भीगो ।
आते-जाते मुसाफ़िरों का हाल पूछो ।
जिसे ज़रूरत हो,
उसकी मदद करो ।

जहां रुको,
मेहनत करो ।
चार पैसे कमाओ ।
मेहनत के पैसों को
खर्च करने का स्वाद चखो ।

राहगीरों से मिलो-जुलो ।
दुख-सुख का पाठ पढ़ो ।
फिर आगे बढ़ो ।

एक जगह मत रुको ।
हर कोस पर जहां पानी बदलता हो ।
हर कोस पर जहां बोली बदलती हो ।
उस रास्ते को एक-सा मत जानो ।
उठो ।
हर मोड़ पर बदलते जीवन को परखो ।
हर नए अनुभव को चखो ।
हर उतार-चढ़ाव का मज़ा लो ।

चलते रहो ।
कहीं पहुंचो ना पहुंचो ।
यात्रा का आनंद लो ।
कुछ नहीं तो,
बहुत कुछ जान जाओगे ।
खुद अपने-आप को,
और आसपास को
बेहतर समझ पाओगे ।

चलते रहो ।
सूर्य चंद्र तारों और समय को
साथ चलते देखो ।
कोई नहीं रुकता ।
तुम भी मत रुको ।
अपना प्रारब्ध ख़ुद रचो ।
उसे भी साथ लेकर चलो ।
चलते रहो ।

चलते रहो ।



बुधवार, 28 मार्च 2018

हमेशा दिल की बात करना




तुम एक शायर हो ।
तुम्हें पता है ? 
ना जाने 
कितने लोगों का आसरा 
तुम्हारा पता है ।
जिस पते पर 
मन ही मन में, 
इन लोगों ने 
अपने दिल का हाल 
लिख भेजा है ।  
तुम्हारे दिल तक उनका 
पैग़ाम पहुंचा है क्या ?
अगर हाँ  . . 
तो ख़याल रखना इनका । 

हज़ारों की तादाद में,
या अकेले , 
ये तुमसे 
आस लगाये,  
टकटकी बांधे 
बैठे होंगे,
कहीं मंच के सामने । 
तुम हर एक को नहीं पहचानते ।   
बेहद मामूली लोग ये . .  
ठीक से दाद देना भी 
नहीं जानते । 
इनके लिए, 
तुम ग़ज़ल कहना ।  
इनके लिए, 
तुम नज़्म पढ़ना । 

तुम्हारा कहा 
शायद इनके किसी काम आए। 
ये बावले !
तुम्हारी शायरी की 
उंगली थामे, 
एक पूरी ज़िंदगी जी लेंगे !

इसलिए, 
माइक के सामने 
जब तुम बुलाये जाओ,
तुम्हें वास्ता  
अपनी कलम का  . . 
उन तमाम बातों का 
जिन्होंने तुम्हें शायर बनाया  . .  
तुम सिर्फ़ 
उनसे मुख़ातिब होना, 
जो तुम्हारा लिखा  
जीते हैं । 
जिन्होंने शायरी से 
सच्ची मोहब्बत की है । 
जो अपने दिल की बात 
तुमसे सुनने आये हैं । 
तुम अपना कलाम 
उनके लिए पढ़ना ।  
हमेशा दिल की बात कहना । 

जीतेगा मनोबल




कौन कह सकता है ,
सूरदास देख नहीं सकते थे ?
सूर की दृष्टि से ही 
हर भक्त ने 
कृष्ण लीला का 
भावमय दर्शन किया ।

बिना जाने 
कौन मान सकता था ?
हेलेन केलर ना सुन सकती थीं ,
ना देख सकती थीं ।
पर जानती सब थीं ।    
उनसे ज़्यादा 
भरपूर जीवन किसने जिया ?
सारे संसार को उन्होंने 
प्रसन्न और कर्मठ जीवन का 
सुन्दर दर्शन दिया ।

हेलेन केलर को देखना सिखाया 
एक टीचर के विश्वास ने ।

सूरदास ने जीवन भक्ति से साधा 
और मन की आँखों से देखा ।

सामर्थ्य जब कम हो,
युद्ध मनोबल से जीते जाते हैं ।