जो कह कर भी
कही ना जा सकीं,
उन बातों की छाप ही
कहलाती है कल्पना ।
कागज़ ,कैनवस या
मन का कोना,
कहीं भी
लिख डालो ,
या रंग दो . .
जो उस वक़्त सही लगता हो,
जब ह्रदय में उठा हो ज्वार
या उमड़ी हो वेदना ।
कह ना पाओ
तो कोलाज बनाओ
अनुभूतियों का ।
या सजाओ
रंगोली या अल्पना
उस रास्ते पर,
जहां से
थके-हारे मायूस लोग
गुज़रते हों ।
यह मौन अभिवादन,
शायद उन्हें
ऐसे किसी की
याद दिला दे,
जिसने हमेशा
उनकी भावनाओं का
किया था आदर ।
या काढ़ो चादर पर
रुपहले बेल,बूटे और फूल
जो उन दिनों की
स्मृति के पट खोल दे,
जब बिना बुलाये . .
माँ की गोदी में
सिर रखते ही
झट से आ जाती थी . .
सुन्दर सपनों वाली नींद ।
सोच कर नहीं,
महसूस कर
जब लिखी जाती है नज़्म,
रंगे जाते हैं
कागज़ , दुपट्टे और मन,
तब कहीं
बनती है मोने की पेंटिंग . .
तब जाकर लिखी जाती है
द लास्ट लीफ़ . .
और रचना कहलाती है
मास्टरपीस ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-04-2017) को "उड़ता गर्द-गुबार" (चर्चा अंक-2929) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय मयंक जी .
हटाएंसच है कि महसूस होता है कुछ तो कल्पना जन्म लेती है ... नया सृजन होता है किसी न किसी रूप में ....
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ...
जी . इस संसार का सारा खेल ही संवेदना और समझ का है .
हटाएंप्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ . आपकी प्रतिक्रिया हमेशा और लिखने को प्रेरित करती है . आते रहिएगा . मार्गदर्शन करने लिए .
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकारजी .
हटाएंबहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया संजय भास्कर जी .
जवाब देंहटाएंYe kavita masterpiece hai. Ismei koi sanshay nahi! Waah
जवाब देंहटाएंये आपका स्नेह बोल रहा है अनमोल .
जवाब देंहटाएंवास्तव में ये मास्टरपीस कृतियों को सलाम है . हार्दिक आभार है .
इनके सहारे जीवन कितना सहज हो जाता है और हम सुन्दरता पहचानना सीख जाते हैं विषम से विषम परिस्थितियों में भी .
धन्यवाद .
The Last Leaf
जवाब देंहटाएंby O Henry
Complete Text
http://www.pages.drexel.edu/~ina22/+270/$270-texts-last_leaf.html
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनिरंतर संघर्ष से ही सपनों को मूर्त रूप मिलता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
धन्यवाद कविता रावत जी .
हटाएंकरत - करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
रसरी आवत - जात ते सिल पर परत निसान
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 11अप्रैल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद पम्मी जी ।
हटाएंयदि संभव हो तो इस कविता के साथ ओ हेनरी की कहानी The Last Leaf और मोने का कोई मास्टरपीस अवश्य साझा करें ।
http://www.bbc.com/culture/story/20151113-your-7-favourite-claude-monet-paintings
जवाब देंहटाएंनिमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।