सोमवार, 23 अप्रैल 2018

किताब




मेरे ज़हन में 
एक किताब है, 
जिसे बड़े जतन से 
संभाल कर रखा मैंने ।  
ये किताब  . . किताब नहीं 
इबादत है ।
इसमें दर्ज हैं 
वो सारी बातें, 
जो सच्चे मन से 
चाही थीं कभी  . . 
कुछ करते बनीं,
कुछ रह गईं रखी 
मेज़ की आख़िरी  
दराज में ।     
हो  सकता है, 
कभी कोई 
मेरे ज़हन को तलाशे,
और उसे मिल जाए  
यही किताब जो  मेरी है,  
पर मैंने उसके नाम की है । 


22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-04-2018) को ) "चलना सीधी चाल।" (चर्चा अंक-2951) पर होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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    1. आपका बहुत आभार राधाजी .
      चर्चा का विषय दिलचस्प है . भेंट होगी .
      नमस्ते .

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 02 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 02 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 2मई2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!





    ......


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  5. शुक्रिया ।
    आपने शेल्फ़ से उठा कर किताब मेज पर रख दी ।
    उम्मीद है कुछ लोग पन्ने पलट कर भी देखेंगे ।
    सभी रचनाकारों को बधाई ।

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  6. जहन की किताब आज दराज से बाहर निकली
    खुली पढी सबने, हमने भी, वो सभी सच्ची बातें जो थी मन से निकली आपके हमारे और सभी के
    इबादत सी......
    वाह!!!

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    1. साथ पढने - पढ़ाने और सुनने में कितना मज़ा आता है ना Sudha Devrani जी ! आपने ऐसी बात कही जो बुकमार्क बना कर किताब में रख दी है हमने .

      एक खिड़की
      आपके मन की खुली.
      एक खिड़की
      मेरे मन की खुली.
      एक दूसरे का हमने
      हाथ हिला कर
      अभिवादन किया.
      आज के दिन का
      पाथेय मिल गया.
      शुक्रिया.

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  7. आपकी किताब के पन्ने पलट कर देखे अच्छे लगे.

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    1. आपने इतनी ज़हमत उठाई.
      उम्मीद है आपको पसंद आई.

      आपने कुछ इस अंदाज़ में कहा मीना भरद्वाज जी ..जैसे पाकीज़ा में राजकुमार ने मीना कुमारी के पाँव देख कर कहा था ..आपके पाँव देखे ..
      : )

      काश किसी दिन ऐसा लिख पाऊं कि आप बाकी का संवाद भी याद दिलाएं !
      धन्यवाद .

      : )

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    2. "आपकी रचनाएँ बड़ी हसीन है कोरे कागज़ पर उतर कर दिलों को ही छूयेंगी." :)

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  8. शुभ प्रभात...
    हम तारीफ करते हैं..
    इस बेहतरीन रचना की...
    सादर..

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    1. तारीफ़ क़ुबूल है आदरणीय !

      आपने जो बेहतरीन कहा है
      ये तारीफ़ नहीं दिली दुआ है

      आभारी हूँ.

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  9. भावनाओं की संपदा सहेजे बहुत ही मर्मस्पर्शी हैं दिल की किताब के पन्ने | शुभ कामनाये आदरणीय नुपुरम जी --

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    1. आप समझ पाई, ये बड़ी बात है.
      सुमन कल्यानपुर का एक गीत विविधभारती पर सुना था. वो याद आ गया.
      मन से मन को राह होती है सब कहते हैं ...
      आपका स्नेह बना रहे .
      धन्यवाद .

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    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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