खिङकी
खुली रहने दो ।
आने दो हवा
आने दो धूप
खिलने दो फूल,
आने दो सुगंध ।
खुली रहने दो
खिङकी ..
धूल-मिट्टी आएगी
आने दो ।
सूखे पत्ते लाएगी
लाने दो ।
बुहार देना ।
पर खिङकी
खुली रहने देना ।
खुली होगी खिङकी
तो दीखेगा आसमान
कभी-कभी चाँद
और शीतल चाँदनी ।
तारों भरी ओढ़नी
किसी छज्जे पे अटकी,
कहीं दूर से आती
किसी की मीठी
आवाज़ में रागिनी ।
खुली रखो खिङकी ..
माना खङखङाएगी
जब आंधी आएगी,
सङक का शोर
कोई अनचाही गंध
बेमज़ा संगीत
पङोस के क्लेश,
ये सब भी देंगे दखल,
ध्यान मत देना ।
खिङकी खुली रखना ।
खिङकी खुली रखना ..
कहीं लौट ना जाए
खिङकी तक आया
नवल वसंत ।
लौट न जाए गौरैया
जो दाना चुगना
और चहचहाना
चाहती थी रुक कर
इस खिङकी पर ।
कहीं बाहर ही
ना रह जाए
बूंदों की फुहार
ठंडी बयार,
मुँह फेर कर
चला ना जाए
जल छलकाता बादल ।
एक जीवन वह जो
चलता है समानांतर
खिङकी से बाहर,
एक जीवन वह जो
रहता है अपने भीतर।
होना दोनों का सम पर
जोङ दे ह्रदय के टूटे तार ..
बनी रहे यह संभावना
इसलिए सदा रखना,
खिङकी खुली ।
खिड़की खुली रखना
ताकि भीतर आ सके
धूप, धूल, हवा ,पानी ,
और अच्छे विचार।