चलो मिल कर सोचते हैं
फिर एक बार,
कैसे इस दुनिया को
बनाया जाए बेहतर ।
वो दुनिया नहीं जो हमें
तोहफ़े में मिली है,
ईश्वर ने दी है ।
वो दुनिया जिसे
हमने मनमानी कर के
बिगाङा है ख़ुद,
और कोसते रहते हैं
हालात को दिन-रात ।
जैसे चन्द्रमा
अंधेरे के पर्दे हटा,
कभी पूरा,
कभी थोङा-थोङा,
अमृत चाँदनी का
बरसाता है,
जैसे सूरज रोज़ाना
रोशनी की संजीवनी उपजा
बेनागा अलख जगाता है ..
कर सकते हैं हम भी तो
अपने-अपने कोने को
उजला रखने की चेष्टा ।
मार्जन कर चित्त का
कर्मनिष्ठा का दिया बालना
और अंधकार से लोहा लेना,
ख़ुद को आज़मा कर देखना,
शायद बेहतर बना दे दुनिया,
नज़रिया संवार दे, हमारा सोचना ।
बहुत सही लिखा
जवाब देंहटाएंनमस्ते शास्त्रीजी . बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ. बहुत प्रसन्नता हुई. सविनय आभार.
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद , जोशी जी.
हटाएंवो दुनिया जिसे
जवाब देंहटाएंहमने मनमानी कर के
बिगाङा है ख़ुद,
.. सच ही कहा है! बहुत ही सारगर्भित विमर्श को शब्द दिए हैं आपने मित्र!
अनाम पाठक की सराहना सर - आँखों पर . नमस्ते.
हटाएंकब से सोच रहे हैं डॉ. जोशी भी
जवाब देंहटाएंआप भी उसी श्रृंखला में आ गई
आभार सोच को लिए
सखी, आपका आशय समझ तो नहीं आया..पर अच्छा ही होगा !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 26 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंयशोदा जी, आपका हार्दिक आभार. नमस्ते.
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, अनीता जी. नमस्ते.
हटाएंअत्यंत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंसुंदर काव्य सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
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