गुरुवार, 21 मार्च 2024

जिसे कहते हैं कविता


कमल दल पर ठहरी

ओस की पारदर्शी 

प्रच्छन्न बूंदों में ,

चेहरे की नमकीनियत में,

मिट्टी की नमी में, 

मेहनत के पसीने में, 

ठंडी छाछ में, 

गन्ने के गुङ में, 

माखन-मिसरी में,

मधुर गान में, 

मुरली की तान में, 

मृग की कस्तूरी में, 

फूलों के पराग में, 

माँ की लोरी में, 

वीरों के लहू में, 

मनुष्य के हृदय में 

जो तरल होकर 

बहता है, 

उसे कहते हैं हम

कविता ।



6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. भावनाओं के प्रसव की उपज है कविता
    और यहीं तो है भावों का अथाह समुद्र
    बहुत ही सुन्दर लाजवाब सृजन।

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  3. Read your “KAVITA” very captivating image you formed….. do keep posting your “Kavita” good to read them . God Bless

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