रविवार, 31 दिसंबर 2023

गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

अनकहा


कुछ बातें कभी 

कही ही नहीं जाती ।

हलक तक आकर 

अटक जाती हैं ।

कंठ अवरुद्ध 

हो जाता है ।

ह्रदय टूक-टूक ..

छटपटाता है,

बार-बार 

पछाड़ खाता है,

पर एक शब्द भी 

कह नहीं पता है ।

अवाक .. टटोलता है  

अपनों की आँखें ..

शायद किसी ने देखा हो 

वो चुपचाप बहा आँसू ,

शायद किसी ने सुना हो 

अंतर का हाहाकार..

पर कहाँ ..किसी ने भी तो 

नहीं जाना, न जानना चाहा..

क्या हुआ..

धीरे-धीरे सब शांत ,

मौन हो जाता है ।

जैसे कोई बीज मिट्टी में 

दब जाता है ।

शायद इसी बीज की जब 

फिर कभी जागती है चेतना ,

अंकुर फूटता है कल्पना का ।

अव्यक्त को व्यक्त करता हुआ ।

कविता,कथा,गीत या आलाप ,

कह देता है मन की व्यथा ।

कभी चटक रंग भी लगते हैं उदास ।

कभी कीचड़ में खिलता है कमल ।

कभी कही जाती है खूबसूरत नज़्म ।

सदियों का होता है जब पक्का रियाज़ 

हर बात कह देती है किसी की आवाज़  ।

बोल उठते हैं साज़, थाम लेती है अरदास 

कोई कहानी रुला देती है अनायास,  

आख़िर कह दी हो जैसे किसी ने 

बरसों से अनकही दिल की बात, 

निकाल दी हो कलेजे में चुभी फाँस 



रविवार, 24 दिसंबर 2023

किसकी है गीता ?


किसकी है गीता ?

सारथी कृष्ण की ?

धनुर्धर अर्जुन की ?


अथवा 

हमारे तुम्हारे 

अंतर्द्वंद्व की ?

अंतर्द्वंद से उपजे

कुुरेदते प्रश्नों की ?


प्रश्नों के उत्तर की ?

दुविधाओं के 

समाधान की ।


विसंगतियों और 

जिज्ञासाओं की

चुनौतियों का

सामना करने की ।


कृष्ण का होना यदि

धरातल है योग का,

अर्जुन की दुविधा का

उपचार है गीता ।


केशव की कही 

पार्थ की समझी

है जीवन संहिता

हम सब की ।


किसकी है गीता ?

जो समझे और जी ले..

उसकी है गीता ।



गीता गीत है जीवन का


गीता गीत है जीवन का 

बूँद-बूँद आस्वादन का ।

सृष्टि के समवेत स्वर में

अपना सुर पहचानने का ।

गीता गीत है जीवन का ।


सहज समर्पित कर्म द्वारा

जीवन का मर्म बूझने का।

कब,क्यों,कैसे,क्या करना है,

नीर-क्षीर विवेक साधने का ।

गीता गीत है जीवन का ।


अभ्यास से मन पर लगाम 

सत चित आनंद का ध्यान।

सारथी मेरे जीवन रथ का

उत्तर मेरे अनगिनत प्रश्नों का

गीता गीत है जीवन का ।


शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

कोई कोई बात


कोई बात 

दिल में सीधे

उतर जाती है ।

हृदय तल में

बस जाती है ।

हृदय ताल में

खिलती है

कमल सी,

हंस सम 

ध्यानमग्न,

कल-कल जल में

उजले पंखों से

नैया खेती,

लहर-लहर

लिखी जाती है

कविता ।

कोई कोई बात

बन जाती है 

कविता ।



गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

पीछे छूटते स्टेशन

स्टेशन से 

ट्रेन सरकते- सरकते

पीछे छूटने लगते हैं

प्लेटफ़ॉर्म और 

प्लेटफ़ॉर्म पर खङे लोग ।

प्लेटफ़ॉर्म सिर्फ़

स्टाॅप नहीं होते ।

स्टेशन केवल

साइनबोर्ड नहीं होते ।

रेलवे-स्टेशन किसी

उपन्यास के पन्नों में

छुपे कथानक होते हैं,

कथानक में गुंथे

चरित्र होते हैं,

जो पूरे सफ़र में

साथ चलते हैं ।

तब भी जब काॅल 

ड्राॅप होने लगते हैं ।

यादों से अभिषिक्त 

आँसू बहने लगते हैं ।

जो कहना-सुनना

रह गया था,

उनका गिला-शिकवा

करते-करते सफ़र

तय हो जाते हैं,

फिर उन्हीं रास्तों पर

चलते-चलते, 

बात पूरी करने की

उम्मीद में,

सफ़र होते हैं

मुकम्मल।



मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023

मनोबल दो माँ


फिर एक बार वही हुआ माँ

जो होता आया है बार-बार।

दिन तुम्हारी अष्टमी पूजा का,

अवसर उत्सव कन्या पूजन का,

जी में उत्साह नहीं रत्ती भर का,

दरस तुम्हारी तेजोमयी भंगिमा का 

झंकृत कर देता चेतना के तार,

पर सूझता न था कौनसा खोलूँ द्वार,

निविङ अंधकार ह्रदय में नहीं उजास..

सम्मुख होकर भी माँ तुम नहीं पास ।

खिन्नमना पा न सकी तुम्हारी करूणा ।


इसी समय वह कन्या आई पहली बार

सरल, मुखर और उसके मुख पर हास।

आर्द्र करता भुवन,भोलापन बालिका का ।

अनायास ही काग़ज़ उठाया और बनाया

उससे भी बनवाया छोटा-सा बुकमार्क।

जिस बिटिया को बार-बार कर याद

छलछलाते थे नयन, भर आता था मन,

उसी की पुनरावृति मानो हुई साकार,

बुझती हुई लौ को जगाती बार-बार।

अस्वीकार और स्वीकार के मध्य 

भूल कर अवसाद और तिरस्कार का प्रहार 

मन फिर हो गया, प्यार लुटाने को तैयार ।


झरने की सहज गति, उसका मुक्त प्रवाह

चट्टानों पर गिरती टूट कर जल की धार

टूटती नहीं, बिखर कर बन जाती फुहार ।

टूटना-बिखरना यदि जीवन की दक्षिणा 

तो जैसा तुम ठीक जानो..मनोबल दो माँ।