गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

अनकहा


कुछ बातें कभी 

कही ही नहीं जाती ।

हलक तक आकर 

अटक जाती हैं ।

कंठ अवरुद्ध 

हो जाता है ।

ह्रदय टूक-टूक ..

छटपटाता है,

बार-बार 

पछाड़ खाता है,

पर एक शब्द भी 

कह नहीं पता है ।

अवाक .. टटोलता है  

अपनों की आँखें ..

शायद किसी ने देखा हो 

वो चुपचाप बहा आँसू ,

शायद किसी ने सुना हो 

अंतर का हाहाकार..

पर कहाँ ..किसी ने भी तो 

नहीं जाना, न जानना चाहा..

क्या हुआ..

धीरे-धीरे सब शांत ,

मौन हो जाता है ।

जैसे कोई बीज मिट्टी में 

दब जाता है ।

शायद इसी बीज की जब 

फिर कभी जागती है चेतना ,

अंकुर फूटता है कल्पना का ।

अव्यक्त को व्यक्त करता हुआ ।

कविता,कथा,गीत या आलाप ,

कह देता है मन की व्यथा ।

कभी चटक रंग भी लगते हैं उदास ।

कभी कीचड़ में खिलता है कमल ।

कभी कही जाती है खूबसूरत नज़्म ।

सदियों का होता है जब पक्का रियाज़ 

हर बात कह देती है किसी की आवाज़  ।

बोल उठते हैं साज़, थाम लेती है अरदास 

कोई कहानी रुला देती है अनायास,  

आख़िर कह दी हो जैसे किसी ने 

बरसों से अनकही दिल की बात, 

निकाल दी हो कलेजे में चुभी फाँस 



18 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति नुपूरं जी।
    बहुत सुंदर लेखन।
    सस्नेह।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद, श्वेता जी. बहुत जतन से संजोए गए आनंद से जोड़ने के लिए.

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  2. शायद इसी बीज की जब

    फिर कभी जागती है चेतना ,

    अंकुर फूटता है कल्पना का ।

    अव्यक्त को व्यक्त करता हुआ ।

    कविता,कथा,गीत या आलाप ,

    कह देता है मन की व्यथा ।

    "अनकहे अल्फ़ाज़"बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन नूपुरं जी,सादर नमन

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    1. आपकी भावभीनी समीक्षा पढ़ कर ह्रदय बहुत आभारी है. कोई तार किसी साज़ का झंकृत हो जाए, और क्या चाहिए ! धन्यवाद, कामिनी जी.

      हटाएं
  3. पर एक शब्द भी

    कह नहीं पता है ।

    अवाक .. टटोलता है

    अपनों की आँखें ..

    शायद किसी ने देखा हो

    वो चुपचाप बहा आँसू ,

    शायद किसी ने सुना हो

    अंतर का हाहाकार..

    पर कहाँ ..किसी ने भी तो

    नहीं जाना, न जानना चाहा..
    अन्तर की किसको पड़ी है ...बस ये मौन ना टूटे कभी ।क्योंकि ये मौन टूटते ही वे अनकहे अल्फाज़ असहनीय होंगे कर्ता धर्ता के लिए भी...।
    गूँगे होने से तो मौन भला...अंतर की पीर आँसुओं मे बहा देना ही श्रेयकर है ।
    मन मंथन करती लाजवाब रचना ।

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    1. सुधा सखी , सुना है, मंथन से अमृत मिलता है. उस अमृत की खोज में बहुत कुछ खोया और पाया भी जाता है . कोई ना सुने, फिर भी गीत गाया सदा ही. कोई न पढ़े, फिर भी जीवन ने पाठ पढ़ाया ही. बहुत-बहुत शुक्रिया.

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  4. बहुत कमाल की रचना ... भावात्मक अभिव्यक्ति ...

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    1. कभी आप भी इसी राह से गुज़रे होंगे.
      शायद इसीलिए आप समझ गए होंगे.
      हार्दिक आभार, नासवा जी.

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  5. उत्तर
    1. अनकही बातों का अनिर्वचनीय सौन्दर्य ?
      कोशिश ही की कहने की ! धन्यवाद, ओंकार जी.

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