रविवार, 3 मार्च 2019

शंखनाद




आज बड़े दिनों बाद 
दिलों में जोश आया है। 
अर्जुन ने आज फिर 
गांडीव उठाया है। 

आज हवाओं ने झूम कर 
फ़ख्र का परचम लहराया है। 
आज नभ में शौर्य का 
प्रखर सूर्य जगमगाया है। 

बारह रणवीरों ने आज 

अभय का कर शंखनाद 
आतंक को ललकारा है !
शठता को पछाड़ा है। 

जननी जन्मभूमि का, 
माँ भारती के अश्रुजल का, 
अपनी माँ के दूध का 
क़र्ज़ उतारा है। 

देश सेवा में  जिस-जिसने 

जीवन का बलिदान किया, 
हर उस सेनानी का 
मान बढ़ाया है।

आज बड़े दिनों के बाद 

शहीदों के अपनों को 
थोड़ा चैन आया है। 
एक आंसू ढुलक आया है। 

आज बड़े दिनों बाद 
दिलों में जोश आया है। 
अर्जुन ने आज फिर 
गांडीव उठाया है। 




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बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

जोश



जब तक होश है। 
रग-रग में जोश है। 

जिगर में 
जोश के बुलबुले नहीं ,
जोश के जुगनू भी नहीं 
जो पलक झपकने तक ही 
मौजूद रहें। 

ये जो 
कौंधता है 
मेरे वजूद में ,
बिजली की तरह  . . 

ये बरसों की तपस्या है। 
ठोकर खा-खा कर जो संभला है,
आग में तप कर जो निखरा है,
वो फ़ौलादी हौसला है। 

ये वीरता का अखंड दिया है। 
जो अलख जगाने वाला है।    
तिरंगे की सौगंध है। 
माँ से बच्चों का वादा है। 

दुष्टता का शत्रु है। 
मानवता का मित्र है। 

जब तक होश है। 
रग रग में जोश है।       



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सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

सावधान




वक़्त पर मत चूकना
इतना तैयार रहना ।

करना निरंतर अभ्यास
दिन-रात लक्ष्य साधना ।

समय पर देती है साथ
केवल अपनी साधना ।

कर्म पर करना विश्वास
सत्कर्म से स्वधर्म साधना ।

वक़्त पर मत चूकना ।
इतना तैयार रहना ।


सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

वसंत



आई वसंत ऋतु की बहार

पहन पीली सरसों के फूल


लय में बह रही शीतल बयार

धीरे धीरे बहे नदिया की धार


कोयलिया करे मीठी मनुहार

क्यारी में झूमे फूलों की कतार


उल्लास ही सबसे सुंदर श्रृंगार

मौसम में मानो घुल गया प्यार



रविवार, 10 फ़रवरी 2019

ऐसा वर दो माँ



सरस्वती माँ ।
वरद हस्त शीश पर रख दो माँ ।
सहस्त्र सजल नमन स्वीकार करो माँ ।

वीणा के तार झंकृत किए
जिस वेला आपने ।
वसंत फूला जगत में
और अंतर्मन में ।

ऐसा वर दो माँ
विद्या को वरूँ
किंतु अपने तक ना रखूं
जितना मिले उतना बांटूं ।

ऐसा वर दो माँ
कला की साधना करूं
पर प्रदर्शन की परिधि में
मेरी कला सीमित ना रहे । 
कलात्मक अभिव्यक्ति से
जीवन की अनुभूति करुं ।

ऐसा वर दो माँ
जीवन को सजग जी सकूं ।
विद्या ग्रहण कर सबल बनूं ।
कीचड़ में कमल बन खिलूं ।
अंधकार में दीपक बन बलूं ।
चट्टान की तरह अडिग रहूँ  ।
वट वृक्ष सम गहन धैर्य धरूँ ।
मिट्टी में घुलमिल विनय गहूँ ।

ऐसा वर दो माँ ।
जाग्रत रहे विवेक ।
विसर्जित हों मन के क्लेश ।
विचारों की जड़ता हो दूर ।
हृदय तल हो इतना पावन ।
मन में आन बसो तुम माँ ।


छायाचित्र साभार - आशीष शांडिल्य 


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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

जीवन का जाप


पथिक, 
चलते रहना 
तुम्हारी नियति है.

पर यदा-कदा 
विश्राम करना.
चना-चबैना 
जो अपनों ने 
साथ बांधा था,
उस पाथेय से भी
न्याय करना. 

छाँव घनी हो 
जिस वृक्ष की 
उसकी छाया में 
कुछ देर बैठना.

अपने पाँव के छाले 
देखना और सहलाना.
शीतल बयार की 
थपकी पाकर 
चैन की नींद 
सो जाना.

गहरी नींद में भी 
जीवन के कई 
प्रश्नों के उत्तर 
और समाधान 
मिल जाते हैं.

कुछ पल का सुकून 
बल देता है अपार,
पथ पर चलते रहने का
करते हुए जीवन का जाप.




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मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

चलो फिर से




चलो 
फिर से शुरु
करते हैं जीना ।

इस बार
शायद आ जाए
ठीक से जीना ।

शत-प्रतिशत
मुनाफ़े का सौदा
नहीं है जीना ।

बहुत जानो
अगर सीख पाओ
थोड़े में बसर करना ।

बहुत समझो
अगर आ जाए
हार कर जीतना ।

बूंद-बूंद
जीवन की सरसता
का आनंद लेना ।

पल-पल
भाग्य रेखाओं में
मेहंदी की तरह रचना ।

चलो
फिर से शुरु
करते हैं जीना ।