गुरुवार, 27 दिसंबर 2018
सचेत रहना मन
मंगलवार, 25 दिसंबर 2018
मोहब्बत के माप का ..
परदेस जाते बेटे ने
बड़े लाढ़ से पूछा है,
क्या लाऊं तुम्हारे लिए ?
तुम्हें चाहिए कुछ वहां से ?
बड़े लाढ़ से पूछा है,
क्या लाऊं तुम्हारे लिए ?
तुम्हें चाहिए कुछ वहां से ?
बेटे ने पूछ क्या लिया ..
दिमाग़ खोजी हो गया !
ऐसा क्या मंगाया जाए
जो तसल्ली हो जाए !
दिमाग़ खोजी हो गया !
ऐसा क्या मंगाया जाए
जो तसल्ली हो जाए !
याद आई वो बुढ़िया
जिससे गणेशजी ने
प्रसन्न होकर पूछा था
मांग क्या मांगती है मैया !
जिससे गणेशजी ने
प्रसन्न होकर पूछा था
मांग क्या मांगती है मैया !
बुढ़िया ने जो सूझा
सब कुछ मांग लिया
गणेशजी ने हँस कर कहा
माँ तूने तो हमें ठग लिया !
सब कुछ मांग लिया
गणेशजी ने हँस कर कहा
माँ तूने तो हमें ठग लिया !
ऐसा ही कुछ मंगाया जाए
लाने वाले का मन रह जाए
और अपने भी काम आए
कोई कसर ना रह जाए !
लाने वाले का मन रह जाए
और अपने भी काम आए
कोई कसर ना रह जाए !
क्यों बेटा ? बड़ी जगह है ना ?
वहां तो सब कुछ मिलता होगा ?
सामान जो पैसों के मोल मिले
और वो जो पैसों से भी ना मिले ?
वहां तो सब कुछ मिलता होगा ?
सामान जो पैसों के मोल मिले
और वो जो पैसों से भी ना मिले ?
कपड़ा-लत्ता, तरह-तरह के गहने,
छोड़ ! अब दिन ही कितने बचे ?
ओढ़ने-पहनने,सजने-संवरने के ?
खाने-पीने के भी अब दिन गए ।
छोड़ ! अब दिन ही कितने बचे ?
ओढ़ने-पहनने,सजने-संवरने के ?
खाने-पीने के भी अब दिन गए ।
अमां बड़ी दिक्कत है ये सोचने में
आख़िर कोई कमी हो तो कहें ना !
अच्छा सुनो भई दिल छोटा ना करना !
कोई दिलचस्प अजूबा मिले तो ले लेना !
आख़िर कोई कमी हो तो कहें ना !
अच्छा सुनो भई दिल छोटा ना करना !
कोई दिलचस्प अजूबा मिले तो ले लेना !
कोई अजूबा रहेगा पास तो जी बदलेगा ।
आने-जाने वालों का तांता लगा रहेगा ।
मजमा तो किस्से-कहानियों से भी जमेगा ।
ले आना थैला-भर, खूब माहौल बनेगा ।
आने-जाने वालों का तांता लगा रहेगा ।
मजमा तो किस्से-कहानियों से भी जमेगा ।
ले आना थैला-भर, खूब माहौल बनेगा ।
ये ना मिले तो किताबों में रख के
वहां की फूल-पत्तियां ले आना ।
वहां के बाशिंदों की तस्वीरें ले आना ।
चेहरे पढ़ के उनका भी हाल पता चले ।
वहां की फूल-पत्तियां ले आना ।
वहां के बाशिंदों की तस्वीरें ले आना ।
चेहरे पढ़ के उनका भी हाल पता चले ।
देखने सुनने में तो आया है बरसों से ये,
सुख-दुख उन्नीस-बीस होते हैं सबके ।
बहुत हो या थोड़ा फ़र्क़ नहीं ज़्यादा,
सभी के हिस्से में है कुछ न कुछ आता ।
सुख-दुख उन्नीस-बीस होते हैं सबके ।
बहुत हो या थोड़ा फ़र्क़ नहीं ज़्यादा,
सभी के हिस्से में है कुछ न कुछ आता ।
चल छोड़ ! ले बैठे कहां का किस्सा !
जो भी देख कर मेरी याद आये ना !
वही थोड़ा-बहुत मोहब्बत के माप का..
और मिले तो बस मुट्ठी भर चैन ले आना ।
जो भी देख कर मेरी याद आये ना !
वही थोड़ा-बहुत मोहब्बत के माप का..
और मिले तो बस मुट्ठी भर चैन ले आना ।
बुधवार, 19 दिसंबर 2018
गीता का मनन
गीता का मनन
कर्म का चयन
सार्थक कब होता है ?
कर्म का चयन
सार्थक कब होता है ?
जब योगेश्वर कृष्ण से
सखा अर्जुन का अंतर्द्वंद
प्रश्न पूछता है ।
सखा अर्जुन का अंतर्द्वंद
प्रश्न पूछता है ।
योद्धा अर्जुन को ज्ञात है,
युद्ध का प्रयोजन
न्याय का संधान ही है ।
युद्ध का प्रयोजन
न्याय का संधान ही है ।
पर ह्रदय धिक्कारता है,
मृत्यु का हाहाकार ही क्या
परिणति और मूल्य है न्याय का ?
मृत्यु का हाहाकार ही क्या
परिणति और मूल्य है न्याय का ?
सृष्टि के क्रम-नियम
धर्म के साक्षी गोपाल सिवा
कौन उत्तर दे सकेगा ?
धर्म के साक्षी गोपाल सिवा
कौन उत्तर दे सकेगा ?
एक निष्ठावान श्रोता
पराक्रमी वीर जब निर्भीक
अधिकार से पूछता है प्रश्न ..
पराक्रमी वीर जब निर्भीक
अधिकार से पूछता है प्रश्न ..
तब पार्थ का सारथी,
भ्रमित किन्तु समर्पित सखा के
काटता है समस्त भव फंद ।
भ्रमित किन्तु समर्पित सखा के
काटता है समस्त भव फंद ।
गीता है धर्म संहिता ।
वासुदेव ने अर्जुन को सिखाया
समय पर निर्द्वंद गांडीव उठाना ।
वासुदेव ने अर्जुन को सिखाया
समय पर निर्द्वंद गांडीव उठाना ।
ऐसा ही होता है सदा ।
जब-जब प्रश्न पूछता है अर्जुन,
तब-तब कृष्ण कहते हैं गीता ।
जब-जब प्रश्न पूछता है अर्जुन,
तब-तब कृष्ण कहते हैं गीता ।
जब निश्छल होता है संवाद
सर्वदा अपने इष्ट से हमारा,
जान पड़ता है कौनसा पथ है चुनना ।
सर्वदा अपने इष्ट से हमारा,
जान पड़ता है कौनसा पथ है चुनना ।
सत्पथ पर सत्यव्रत हो चले यदि,
जो शोभा दे, वह विजय मिलेगी ।
नीतियुक्त समृद्धि मिलेगी ।
जो शोभा दे, वह विजय मिलेगी ।
नीतियुक्त समृद्धि मिलेगी ।
श्री, विजय, विभूति, नीति, सुमति
इनका इस जगत में ध्येय एक ही
कर्मभूमि को धर्मक्षेत्र बनाना ।
इनका इस जगत में ध्येय एक ही
कर्मभूमि को धर्मक्षेत्र बनाना ।
रविवार, 2 दिसंबर 2018
पीले फूल
बित्ते भर के
पीले फूल !
पीले फूल !
खिड़की से झांकते
सिर हिला-हिला के
अपने पास बुलाते,
इतने अच्छे लगे...
कमबख़्त !
उठ कर जाना पड़ा !
सिर हिला-हिला के
अपने पास बुलाते,
इतने अच्छे लगे...
कमबख़्त !
उठ कर जाना पड़ा !
देखा आपस में
बतिया रहे थे,
राम जाने क्या !
बतिया रहे थे,
राम जाने क्या !
एक बार लगा ये
धूप के छौने हैं ।
फिर लगा हरे
आँचल पर पीले
फूल कढ़े हैं ।
या वसंत ने पीले
कर्ण फूल पहने हैं ।
धूप के छौने हैं ।
फिर लगा हरे
आँचल पर पीले
फूल कढ़े हैं ।
या वसंत ने पीले
कर्ण फूल पहने हैं ।
वाह ! क्या कहने हैं !
ये फूल मन के गहने हैं !
ये फूल मन के गहने हैं !
खुशी का नेग हैं !
भोला-सा शगुन हैं ।
भोला-सा शगुन हैं ।
इन पर न्यौछावर
दुनिया के व्यवहार ..
दुनिया के व्यवहार ..
कम्बख़्त ये ..
बित्ते भर के
पीले फूल !
बित्ते भर के
पीले फूल !
शनिवार, 1 दिसंबर 2018
अभिनंदन
आज का दिन
हुआ बेहतरीन !
हुआ बेहतरीन !
गए हफ़्ते
जो बीज बोए थे,
उस मिट्टी में
अंकुर फूटे हैं
नन्हे-नन्हे ।
जो बीज बोए थे,
उस मिट्टी में
अंकुर फूटे हैं
नन्हे-नन्हे ।
बड़ी लगन से
सींचे थे
जो कुम्हलाते पौधे,
उनकी डाली पे
कोमल कोपल हरी-हरी
अभी देखी ।
सींचे थे
जो कुम्हलाते पौधे,
उनकी डाली पे
कोमल कोपल हरी-हरी
अभी देखी ।
एक कली है खिली हुई,
एक खिलने को है ।
एक खिलने को है ।
धूप खिली-खिली
फूलों को हँसा रही ।
पत्तियां ताज़ी-ताज़ी
हाथ हिलाती,
अभिवादन करतीं
धूप का दे-दे ताली ।
फूलों को हँसा रही ।
पत्तियां ताज़ी-ताज़ी
हाथ हिलाती,
अभिवादन करतीं
धूप का दे-दे ताली ।
ख़ुशगवार है मौसम
कम से कम इस पल ।
जिन दिनों
स्थगित हो जाता है जीवन ।
अपने बोये बीज का
अंकुरित होना,
अपने सींचे
पौधों पर फूल खिलना,
मुरझाए मन में
बो देता है मुस्कान ।
खिल उठता है अंतर्मन ।
फिर गुनगुनाने लगता है जीवन ।
स्थगित हो जाता है जीवन ।
अपने बोये बीज का
अंकुरित होना,
अपने सींचे
पौधों पर फूल खिलना,
मुरझाए मन में
बो देता है मुस्कान ।
खिल उठता है अंतर्मन ।
फिर गुनगुनाने लगता है जीवन ।
जीवन का सदा ही
अभिनंदन ।
अभिनंदन ।
मंगलवार, 20 नवंबर 2018
रंग
कोरी मटकी देख कर
मन करता है
खड़िया-गेरू से
बेल-बूटे बना दूँ ।
खड़िया-गेरू से
बेल-बूटे बना दूँ ।
कोरा दुपट्टा देख कर
मन करता है
बांधनी से
लहरिया रंग डालूँ ।
मन करता है
बांधनी से
लहरिया रंग डालूँ ।
खाली दीवार देख कर
मन करता है
रोली के
थापे लगा दूँ ।
मन करता है
रोली के
थापे लगा दूँ ।
कोरा कागज़ देख कर
मन करता है
वर्णमाला से
वंदनवार बना दूँ ।
मन करता है
वर्णमाला से
वंदनवार बना दूँ ।
उजड़ी क्यारी में फूल खिला दूँ ।
वीराने में बस्ती बसा दूं ।
चौखट पर दिया जला दूं ।
आंगन में अल्पना बना दूं ।
हाथों में मेंहदी लगा दूँ ।
माथे पर तिलक कर दूँ ।
दूधिया हँसी को डिठौना लगा दूँ ।
भोलेपन को नज़र का टीका पहना दूँ ।
खेतों में मीलों सरसों बिछा दूँ ।
वीराने में बस्ती बसा दूं ।
चौखट पर दिया जला दूं ।
आंगन में अल्पना बना दूं ।
हाथों में मेंहदी लगा दूँ ।
माथे पर तिलक कर दूँ ।
दूधिया हँसी को डिठौना लगा दूँ ।
भोलेपन को नज़र का टीका पहना दूँ ।
खेतों में मीलों सरसों बिछा दूँ ।
रंग से सराबोर
इस दुनिया का
कोई भी कोना
क्यों रहे कोरा ?
इस दुनिया का
कोई भी कोना
क्यों रहे कोरा ?
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